राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास

राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास

राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास 

रानी हाड़ी ने विवाह के 7 दिन बाद अपना शीश खुद अपने हाथों से काटकर अपने पति को निशानी के तौर पर रणभूमि में भिजवा दिया था ताकि उसका पति उसके रूप यौवन के ख्यालों में खो कर कहीं अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से ना निभा पाए आज तक के इतिहास में पत्नी के द्वारा अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए किया गया सबसे बड़ा बलिदान है | राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास |

हाड़ी रानी का जन्म 

हाड़ी रानी का जन्म बसंत पंचमी के दिन हुआ था यह रानी बूंदी के हड़ा शासक की बेटी थी  और उदयपुर के सलूंबर के सरदार राव रतन चुंडावत की रानी थी इन का पुराना नाम सहल कवर था इतिहास में यह हाड़ी रानी के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है

 हाड़ी रानी का विवाह 

इनका विवाह सलूंबर के जागीरदार और मेवाड़ राज्य के सेनापति रावत रतन सिंह चुंडावत के साथ हुआ था  शादी को महज 1 सप्ताह हुआ था ना हाथों की मेहंदी छुट्टी थी और ना ही पैरों का आलता  सुबह का समय था और हाड़ा सरदार गहरी नींद में थे रानी सज धज कर सरदार को जगाने आई इसी बीच दरबार आकर वहां खड़ा हो गया सरदार का ध्यान न जाने पर रानी ने कहा मेवाड़ के महाराणा हुकुम का दूत काफी देर से खड़ा है वह ठाकुर से तुरंत मिलना चाहता है आपके लिए कोई आवश्यक पत्र लेकर आया होगा असल में दूत के आगमन का समाचार सुनकर ठाकुर हक्का-बक्का रह गया वह सोचने लगे कि अवश्य कोई विशेष बात होगी

राणा श्री को तो पता है कि वह अभी ही विवाह करके लौटे हैं कठिनाई की घड़ी हो सकती हैं उसने हाड़ी रानी को तुरंत अपने कक्ष में जाने को कहा और बोला कि दूत को तुरंत अंदर बुला कर बैठा दो हाल-चाल पूछने के बाद ठाकुर ने दूत से कहा ऐसी क्या कठिनाई पड़ी थी 2 दिन तो चैन की बंसी बजा लेने देते इसके बाद वह बोले राणा श्री ने मुझे क्यों याद किया है  राणा का संदेश लाने वाला दरबान गहरी चिंता में खोया हुआ था दरबान ने कहा हुकुम मेवाड़ धरा पर संकट के काले बादल छाए हैं सचमुच बड़ी संकट की घड़ी आ गई है मुझे भी तुरंत वापस लौटना है दरबान के चेहरे पर छाई गंभीरता की रेखाओं को देख कर हाडा सरदार का मन आशंकित हो उठा सचमुच कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई है दूत संकोच कर रहा था कि इस समय राणा की चिट्ठी हाडा सरदार को दे या नहीं

हाड़ा सरदार को तुरंत युद्ध के लिए अपनी सेना के साथ मेवाड़ दरबार में उपस्थित होने का राणा का आदेश वाले यह संदेश लेकर वह दरबान सरदार के पास आया था क्या लिखा था पत्र में- वीरवर, अविलंब अपनी सैनिक टुकड़ी को लेकर औरंगजेब की सेना के सामने दीवार बन जाओ दूसरे राज्यों की सेना उसकी सहायता के लिए आगे बढ़ रही है इस समय मैंने औरंगजेब को अपनी सेना के साथ चारों ओर से घेर लिया है अब उसकी सहायता के लिए दूसरे राज्यों की सेना आ रही है | राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास |

मुगलों का मेवाड़ के बीच युद्ध

ठाकुर तुमको दुश्मन फौज को कुछ समय के लिए उलझा कर रखना है ताकि वह शीघ्र ही आगे ना बढ़ सके तब तक मैं पूरा काम निपटा लूंगा तुम इस कार्य को बड़ी कुशलता से कर सकते हो  यह बड़ा खतरनाक है जान की बाजी भी लगानी पड़ सकती है और मुझे तुम पर पूरा भरोसा है हाडा सरदार के लिए परीक्षा की घड़ी थी एक और मुगलों की विशाल सेना और इधर उसकी छोटी सी सैनिक टुकड़ी फिर भी खून में डूबा आंधी की तरह उठने लगा और तुरंत सेना तैयार करने का आदेश दिया इस समय मेवाड़ में राणाराज सिंह का शासन हुआ करता था जो बादशाह औरंगजेब के कट्टर दुश्मन थे राणा राजसिंह ने मेवाड़ के कई किलो को अपने छतर के नीचे ला दिया था

अब संपूर्ण मेवाड़ में केसरिया ध्वज लहर चुका था और पश्चिम में मेवाड़ एक ताकत बनकर उभर रहा था इस बढ़ती हुई ताकत का जवाब देने के लिए विशाल मुगल सेना ने मेवाड़ पर हमला कर दिया राणा राजसिंह ने सेना के तीन भाग कर दिए थे मुगल सेना को अरावली में न घुसने देने का दायित्व अपने बेटे को जय सिंह को सौंपा था अजमेर की ओर से बादशाह को मिलने वाली सहायता को रोकने का काम दूसरे बेटे भीम सिंह का था और वे खुद अफगान सरकार और दुर्गादास राठौड़ के साथ मुगल सेना पर टूट पड़े थे तीनों पर विजय प्राप्त हुई थी बादशाह औरंगजेब की बड़ी बेगम को बंदी बना लिया गया था मेवाड़ के महाराणा  की यह जीत ऐसी थी कि उनके जीवन काल में दोबारा कभी भी किसी दुश्मन ने सर उठाने की हिम्मत नहीं की थी

 संपूर्ण राजपूताना मैं राणा के जयकारे और डर कायम हो चुका था  जब मुगल बादशाह  चारों ओर से राजपूतों से गिर गए उनकी बेगम को भी  कैद कर लिया गया तो उसका बचकर निकलना मुश्किल हो गया था तब मुगल बादशाह ने दिल्ली से एक विशाल सेना मंगवा ली थी | राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास |

 हाड़ा सरदार द्वारा युद्ध की तैयारी 

हाड़ा सरदार ने उसी समय अपने सैनिकों को युद्ध के लिए चलने के लिए आदेश दिया इसके बाद वह केसरिया बाना पहन कर अपनी पत्नी के पास अंतिम विदाई लेने के लिए गए अपने पति को युद्ध वेश में देखकर हाड़ी रानी अचंभित हो गई इसके बाद  हाड़ा सरदार ने अपनी रानी से कहा कि मुझे विजय श्री के लिए जल्दी निकलना है हंसते-हंसते विदा करो पता नहीं फिर हम मिलेंगे भी या नहीं उस समय हाड़ा सरदार का मन आशंकित था वह मन में सोच रहे थे यदि मैं सच में नहीं लौटा तो मेरी पत्नी का क्या होगा उनके सामने दो रास्ते थे एक तरफ अपने कर्तव्य का पालन करना और दूसरी तरफ  पत्नी का प्रेम इन दोनों के बीच में खड़ा सरदार का मन अटका हुआ था

उनके मन की बात हाड़ा रानी समझ गई थी कि वह रणभूमि में तो जा रहा है परंतु मोह ग्रस्त होकर पति विजयश्री प्राप्त करें इसके लिए उसने कर्तव्य की वेदी पर अपने  प्रेम की बलि दे दी वह पति से बोली स्वामी ज़रा ठहरीय मैं अभी आई वह दौड़ी-दौड़ी अंदर गई आरती का थाल सजाया पति के मस्तक पर टीका लगाया उस की आरती उतारी और पति से बोली मैं धन्य हो गई है ऐसा वीर पति पाकर आप जाएं और युद्ध की हुंकार भरिए मैं विजय माला लिए द्वार पर आपकी प्रतीक्षा करूंगी चलते चलते पति उससे बोला प्रिय में तुमको कोई सुख तो ना दे सका बस इसका ही दुख है कि मुझे भूल तो नहीं जाओगी यदि मैं ना रहा तो रानी ने कहा आप निश्चित होकर प्रस्थान करें मेवाड़ धरा के शत्रुओं के दांत खट्टे करें यही मेरी प्रार्थना है | राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास |

हाड़ी रानी का बलिदान 

 हाड़ा सरदार ने घोड़े को ऐड लगाई और निकल पड़े रणभूमि की तरफ रानी उसे एकटक निहारती रही जब तक वह आंखों से ओझल ना हो गया हाड़ा सरदार अपनी सेना के साथ हवा से बातें करता उड़ा जा रहा था किंतु उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि कहीं सचमुच मेरी पत्नी मुझे  विशार ना दे वह मन को समझाता पर बार-बार उसका ध्यान उधर ही चला जाता अंत में उससे रहा न गया उसने आधे मार्ग से अपने विश्वस्त सैनिकों को रानी के पास भेजा उसको फिर से स्मरण करवाया कि मुझे भूलना मत मैं जरूर लौटूंगा संदेशवाहक को आश्वस्त कर रानी ने वापस लौटया इसके बाद तीसरे दिन फिर एक वाहक आया इस बार वह पत्नी के नाम सरदार का पत्र भी लाया था पत्र में लिखा था कि प्रिय-

 मैं यहां शत्रुओं से लोहा ले रहा हूं अंगद के समान पैर जमा कर उनको रोक दिया है मजाल है कि वे जरा भी आगे बढ़ जाए यह तो तुम्हारे रक्षा कवच का प्रताप है पर तुम्हारी बड़ी याद आ रही है पत्र वाहक के साथ इस बार कोई अपनी प्रिय निशानी अवश्य भेज देना उसे ही देख कर मन को हल्का कर लिया करूंगा हाडी रानी पत्र को पढ़कर सोच में पड़ गई युद्ध में गए हुए पति का मन यदि मेरी याद में ही रमा रहा उनके नेत्रों के सामने यदि मेरा ही मुखड़ा घूमता रहा तो वह शत्रुओं से कैसे लड़ेंगे उसके मन में एक विचार आया वह सैनिक से बोली वीर मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी दे रही हूं इसे ले जाकर उन्हें दे देना थाल में सजाकर सुंदर वस्त्र से ढक कर अपने वीर सेनापति के पास पहुंचा देना किंतु इसे कोई और ना देखें 

 वही इसे खोल कर देखें साथ में मेरा यह पत्र भी दे देना हाड़ी रानी ने पत्र में लिखा था प्रिय -मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं तुम्हारे मोह के सभी बंधुओं को काट रही हूं अभी अपने बेफिक्र होकर अपने कर्तव्य का पालन करें मैं तो चली स्वर्ग में तुम्हारी बाठ जोऊंगी पलक झपकते ही हाड़ी रानी ने अपने कमर में बंदी तलवार निकाल एक ही झटके में अपने सर को उड़ा दिया कर्तव्य कर्म कठोर होता है सैनिक ने स्वर्ण थाल में हाड़ी रानी के कटेसर को सजाया सुहाग की चुनरी से उसको ढका भारी मन से युद्ध भूमि की ओर सरदार, सरदार चिल्लाता हुआ दोड़ा उसको देख कर सरदार स्तब्ध रह गया उसे समझ में ना आया कि उसकी आंखों में आंसुओं की धारा क्यों बह रही है

धीरे से वह बोला क्यों यदु सिंह रानी की निशानी ले आए उसने हाथों से थाल उसकी और बढ़ा दिया सरदार फटी आंखों से पत्नी का सिर देखता रह गया उसके मुख से केवल इतना निकला हाय रे- मेरी हाड़ी रानी तुमने यह क्या कर डाला सरदार के सारे बंधन टूट चुके थे वह शत्रुओं पर काल के समान टूट पड़ा इतना अप्रतिम शौर्य दिखाया था कि उसकी मिसाल मिलना बड़ा ही कठिन हो जाता है जीवन के आखिरी सांस तक लड़ता रहा मुगल बादशाह की सहायक सेना को उसने आगे नहीं बढ़ने दिया जब तक मुगल बादशाह मैदान छोड़कर दिल्ली नहीं लौट गया था 

| राजस्थान के हाड़ी रानी का इतिहास |

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top