पेचिश प्रवाहिका क्या है इसके लक्षण व उपचार
कई बार हमारे गलत खान-पान के कारण हमारे पेट में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है जिनसे हमें बाद में बहुत परेशानियां होती हैं लेकिन जब हम गलत चीजों का सेवन करते हैं तब हमें कई बार कब्ज़ या दस्त की भी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है या इससे जुड़े हुए और भी कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं इसी तरह से एक रोग का नाम पेचिश प्रवाहिका भी है जो कि एक खतरनाक रोग है इससे इंसान को बहुत परेशानी होती है तो आज के इस ब्लॉग में हम इसी रोग के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं.
पेचिश प्रवाहिका
सबसे पहले हम बात करेंगे कि पेचिश प्रवाहीका रोग क्या होता है जब किसी को यह रोग उत्पन्न होता है तब रोगी को बार-बार पाखाना जाने की हाजत होती है और जब रोगी को यह समस्या उत्पन्न होती है और रोगी बार-बार पाखाना जाता है तब उसको कई बार पेट में दर्द और ऐठन भी होने लगती है और उसका मल बार-बार में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में आता है जिससे बड़ी आंतों में सूजन आ जाती है या उनमें जख्म बन जाते हैं और मल के साथ ही कई बार चिकना और सफेद पदार्थ निकलता है या कई बार मल के साथ खून भी निकलने लगता है.
पेचिश प्रवाहिका के कारण
जब किसी को पेचिश प्रवाहिका रोग उत्पन्न होता है तब उसको तब इसके पीछे कई कारणों का हाथ हो सकता है अगर इसके मुख्य कारणों की बात की जाए तो आहार-विहार करना, अत्यंत गरम भोजन करना, ज्यादा तीखा भोजन करना, ज्यादा मिर्च मसालेदार भोजन का सेवन करना, ज्यादा कठोर भोजन करना, शरीर में कब्ज की शिकायत रहना, दूषित पानी पीना, अग्निमांद्य, अजीर्ण, कीटाणु संक्रमण होना अमीबा संक्रमण होना तो यह कुछ ऐसे कारण हैं जिनसे किसी भी इंसान को पेचिश प्रवाहिका रोग हो सकता है
पेचिश प्रवाहिका के लक्षण
अगर इस रोग के लक्षण के बारे में बात की जाए तो इस रोग के कई मुख्य लक्षण भी होते हैं जैसे बार बार मल आना, दस्त की शिकायत उत्पन्न होना, पेट में दर्द होना, धीरे-धीरे दस्तों की संख्या बढ़ जाना, पेट में ऐठन होना, शरीर दुर्बल होना, पाचन शक्ति कमजोर पड़ना, खाया पिया न लगना, भोजन के तुरंत बाद दस्त उत्पन्न होना, सिर में हल्का दर्द रहना, बुखार रहना, बार-बार प्यास लगना, दस्त के साथ सफेद पदार्थ व खून आना, शरीर में थकावट, आलस्य, कमजोरी महसूस होना, भोजन की खुराक घटते रहना, ये कुछ ऐसे लक्षण हैं जो कि पेचिश प्रवाहिका रोग में दिखाई देते हैं
क्या-क्या खाना चाहिए
जैसा कि हमने आपको शुरू में बताया यह एक ऐसा रोग है जो कि गलत खान-पान के कारण उत्पन्न हो सकता है इसलिए अगर किसी को इस तरह की समस्या उत्पन्न होती है तब उस रोगी को खाने पीने की चीजों के ऊपर ध्यान देना बहुत जरूरी होता है क्योंकि अगर वह खाने पीने की चीजों पर ध्यान नहीं देगा तो वह जल्दी से ठीक नहीं हो पाएगा और यह समस्या धीरे-धीरे और बढ़ जाएगी
- रोगी को पानी उबालकर पीना चाहिए वह दूध की चाय बनाकर पीनी चाहिए
- रोगी को पहले कुछ दिनों में पतली दही व लस्सी और दही के साथ चावल और खिचड़ी आदि का सेवन करना चाहिए
- रोगी को गाय और बकरी के दूध को गर्म करके तीन से छह चम्मच दिन में 3/4 बार बार पीना चाहिए
- बुखार उतरने पर रोगी को चावल का मांड अनार का रस दिन में तीन चार बार एक-एक कप पिलाना चाहिए
- रोगी को कच्चा सिंघाड़ा, भूनी लौकी, भुना हुआ कच्चा केला, पतला दलिया, धान के लावे का
- मांड अखरोट आदि खिलाना चाहिए
- रोगी को मूंग की दाल पका हुआ पपीता, संतरा ,मौसमी और बेल का मुरब्बा देना चाहिए
क्या नहीं खाना चाहिए
- रोगी को ज्यादा नए चावल, बैंगन, फूलगोभी, कटहल, मांस, अंडा और आलू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए
- रोगी को भोजन में उड़द की दाल का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए
- रोगी को ज्यादा तेल, गुड और बिना उबले पानी का सेवन नहीं करना चाहिए
- रोगी को शराब, कॉफी, चाय, गुटका, तंबाकू आदि से परहेज करना चाहिए
- रोगी को ज्यादा मिर्च मसालेदार व उत्तेजक खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए
- रोगी को तले हुए भोजन से परहेज करना चाहिए
- शुरू शुरू में रोगी को अंगूर, खट्टे संतरे, आम और नींबू आदि नहीं देनी चाहिए
क्या-क्या करना चाहिए
- रोगी को सुबह-सुबह खुली हवा में घूमना चाहिए व सैर करनी चाहिए
- रोगी को हल्के में ढीले कपड़े पहने चाहिए और आराम करना चाहिए
- रोगी को सुबह-सुबह हल्के-फुल्के व्यायाम करने चाहिए
- रोगी को आंतों की सफाई के लिए गुनगुने पानी में एनिमा लेना चाहिए
- सुबह-सुबह एक चम्मच इसबगोल एक कप गर्म पानी के साथ लेना चाहिए
- रोजाना रात को सोते समय मिट्टी की पट्टी पेडू पर बांध के सोना चाहिए
- पेट में अधिक दर्द होने पर पेट की सिकाई गर्म पानी की थैली के साथ करनी चाहिए
क्या नहीं करना चाहिए
- रोगी को हाज़त होने पर तुरंत शौचालय जाना चाहिए व अपने मल मूत्र को रोकना नहीं चाहिए
- रोगी को गंदी सब्जियों व फलों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए
- रोगी को बासी भोजन का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए
- रोगी को दूषित पानी नहीं पीना चाहिए रोगी को मल के बाद शौचालय की सफाई जरूर करनी चाहिए
- रोगी को अपने हाथ पैर साबुन से साफ करने चाहिए
पेचिश की आयुर्वेदिक दवा
फिर भी अगर किसी को यह समस्या उत्पन्न हो जाती है तब उसको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए वह डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए या आप कुछ आयुर्वेदिक औषधियों व दवाइयों का इस्तेमाल करके भी इससे पीछा छुड़वा सकते हैं जिनके बारे में हमने आपको नीचे बताया है इन सभी को आप डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इस्तेमाल करें.
- एसेप्टिक लीवरडेक्स : 1-2 चम्मच दवा दिन में 3 बार सेवन करायें। प्रवाहिक (डिसेण्ट्री ) में उपयोगी अन्य कुछ आयुर्वेदिक पेटेण्ट औषधियाँ
- वैद्यनाथ ग्रहणी कपाट वटी : 2-2 गोली दिन में 3-4 बार दें।
- हिमालय डायोरेन टेबलेट : 1-2 गोली दिन में 3 बार दें।
- J & J DeChane डियासिन टेबलेट : वयस्क रोगियों को 1-2 गोली 4-4 घंटे के अन्तराल पर तथा बच्चों को 1/2 से 1 गोली प्रत्येक 4-4 घंटे पर सेवन करायें। यह अमीबिक और बैसिलरी डिसेण्ट्री, डायरिया, म्यूकस कोलायटिस, इन्फेण्टाइल डायरिया में उपयोगी है।
- हिमालय डायारेक्स टेबलेट : 1-2 गोली दिन में 3 बार। तीव्रावस्था में 2-3 गोली दिन में 3 बार । बच्चों को उनकी आयुनुसार सेवन करायें।
- रेट्रोट डायररेट लिक्विड : बच्चों को 1 वर्ष आयु तक 1/4 से 1/2 चाय वाला चम्मच भर दवा दिन में 2-3 बार प्रतिदिन तथा 5 वर्ष आयु तक के बच्चों को 1/2 से 1 चाय वाला चम्मच भर दवा दिन में 2-3 बार दें। यह डायरिया, अमीबियासिस. जियार्डियासिस तथा बच्चों के कोलायटिस में अतिशय गुणकारी है।
पेचिश के घरेलू उपाय
लवण भास्कर चूर्ण 2 ग्राम, सोंठ का चूर्ण 1 ग्राम, सफेद फिटकरी की भस्म 1 ग्राम-एक मात्रा । ऐसी 1-1 मात्रा प्रत्येक 4-4 घंटे के अन्तराल पर अनार के स्वरस या ठंडे पानी के साथ सेवन करने से आमातिसार तथा रक्तातिसार में लाभ होता है।
ईसबगोल और मिश्री 10-10 ग्राम लेकर दोनों को भलीप्रकार मिलाकर दिन में 12 बार अच्छी तरह चबाकर खाने से साधारण प्रवाहिका (डिसेण्ट्री) में लाभ हो जाता है।
अफीम और स्वच्छ चूना समान मात्रा में लेकर मसूर या काली मिर्च दाने के बराबर आकार (साइज) की गोलियाँ बना लें। यह गोली 1-1 दिन में 2 बार (सबहशाम) गरम पानी के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है।
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