महाराज राणा सांगा का इतिहास और जीवन परिचय हिंदी
महाराज राणा सांगा का जन्म
राणा सांगा का जन्म सिसोदिया वंश में 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ में हुआ था इनका पूरा नाम “महाराणा संग्राम सिंह” था इनके पिता जी का नाम राणा रायमल था जो कि एक बलशाली योद्धा थे इनकी माता जी का नाम महारानी रतन कंवर था महाराणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष कहा जाता था क्योंकि उनके शरीर पर 80 घाव थे राणा सांगा ने युद्ध में एक आंख 1 हाथ और एक पैर के खराब हो जाने के बाद भी वे युद्ध में आगे रहते थे
राणा सांगा अपने हौसले को युद्ध भूमि में कभी भी कमजोर पड़ने नहीं देते थे इनके दादा जी का नाम राणा कुंभा था राणा कुंभा ने दिल्ली में मोहम्मद शहद को हराकर अपना राज्य स्थापित किया था इन्हें के पोता राणा सांगा को मेवाड़ का राजा बनने के लिए पहले अपने भाइयों से युद्ध लड़ना पड़ा था राणा सांगा के दो भाई थे पृथ्वीराज और जयमल | राणा सांगा के समय मेवाड़ बहुत ही समृद्ध था राणा सांगा ने भारतीय राजाओं को एकजुट करने के लिए कई विवाह किए थे | महाराज राणा सांगा का इतिहास हिंदी
महाराज राणा सांगा का राज्य अभिषेक
जब राणा सांगा के दोनों भाई दुश्मन बन गए थे तो वह आम आदमी की तरह जंगलों में जाकर रहने लगा वहां उनकी मुलाकात एक करमचंद नाम के व्यक्ति से हुई एक दिन करमचंद और उनके साथी ने देखा कि महाराणा सांगा की एक सांप छांव किए हुए उनकी रक्षा कर रहा है तो उन्होंने उनसे पूछा कि तुम कौन हो तो महाराणा सांगा ने जवाब दिया कि मैं महाराणा रायमल का पुत्र हूं जब रायमल को इस बात का पता चला कि उनका पुत्र राणा सांगा जीवित है तो उन्होंने उसे अपने राज्य में बुलाया और उनका 24 मई 1509 को मेवाड़ में राज्याभिषेक किया था
महाराज राणा सांगा द्वारा युद्ध
राणा सांगा सभी ताकतों को एक साथ लाना चाहते थे उन्होंने हिंदू मुस्लिमों में कोई भी भेदभाव नहीं किया था वह चाहते थे कि सभी एक साथ मिलकर विदेशी ताकतों का मुकाबला करें राणा सांगा ने बहुत से युद्ध लड़े थे और दिल्ली ,गुजरात, मालवा बाकी मुस्लिम शासकों मेवाड़ की रक्षा की थी दिल्ली में उनका दुश्मन सिकंदर लोदी, गुजरात में महमूद सा ,और मालवा में उनका मुकाबला नसीर उद्दीन खिलजी से था तीनों मिलकर राणा सांगा को परास्त करने की रणनीति बना रहे थे
लेकिन राणा ने इन तीनों को पराजित कर दिया था मांडू और सुल्तान महमूद के साथ हुए युद्ध में महमूद बुरी तरह घायल हो गया था राणा ने उसे अपने पास रखा और उसका इलाज करवाया दो-तीन महीने तक राणा की कैद में रहा और बाद में फौज का खर्च लेकर उसे छोड़ा गया इस बात से खुश होकर सुल्तान ने भी महाराणा की अधीनता स्वीकार कर ली थी सुल्तान ने राणा को रत्नों से जुड़ा हुआ मुकुट और सोनी कमर पेटी भेंट के रूप में दी इस तरह महाराणा संग्राम सिंह का पूरा जीवन ही युद्ध में बिताता उनका देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना भी अधूरा था जिसके लिए उन्हें बहुत से लड़ाई और लड़नी थी | महाराज राणा सांगा का इतिहास हिंदी
इब्राहिम लोदी से राणा सांगा का युद्ध
महाराणा सांगा ने बहुत लड़ाई लड़ी लेकिन कुछ लड़ाई है जो राणा सांगा ने लड़ी थी वह उनके जीवन और भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाइयां थी एक लड़ाई थी खतौली की लड़ाई जिसमें राणा सांगा का मुकाबला इब्राहिम लोदी के साथ हुआ और दूसरी लड़ाई जो कि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है जिसके बाद भारत में मुगल राज पूरी तरह से स्थापित हो गया था वह थी खानवा की लड़ाई |
खतौली की लड़ाई की उस समय उत्तर भारत में तो बड़ी ताकते थी एक इब्राहिम लोधी और दूसरे राणा सांगा राणा अपनी क्षेत्र के विस्तार में लगे थे और सभी हिंदू राजाओं को एकजुट करना चाहते थे जब इब्राहिम लोदी को इस बात का पता चला कि राणा सांगा सभी राजाओं को एकत्रित कर रहा है तो उसने राणा सांगा को रोकने का प्रयास किया इसके बाद दोनों में भयंकर युद्ध हुआ और इस लड़ाई में राणा सांगा जीत गए थे इस लड़ाई में राणा सांगा ने एक लोदी राजकुमार को पकड़ लिया था जिसे बाद में मोटी रकम लेकर छोड़ा गया था इस लड़ाई में लड़ते समय राणा सांगा का एक हाथ और एक पाव खराब हो गया था
महाराज राणा सांगा द्वारा धौलपुर की लड़ाई
राणा सांगा से हारने के बाद इब्राहिम लोदी बहुत अधिक क्रोधित हो जाता है दिल्ली का शासक होने के बावजूद भी राणा सांगा को नहीं हरा पाया था वह अपनी हार का बदला लेने के लिए अपनी सेना को फिर से तैयार करता है और इसके बाद व राणा सांगा पर हमला कर देता है वह राणा सांगा को मारने के लिए बहुत बड़ी विशाल सेना को भेजता है इसके बाद लोधी की विशाल सेना राणा सांगा पर जबरदस्त हमला करती है परंतु धौलपुर की इस लड़ाई में भी लोधी की हार हो जाती है इब्राहिम लोदी के बार-बार हारने के बाद उनके रिश्तेदार ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दे दिया था जिसके बाद भारत में दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया और मुगल राज्य की शुरुआत हो गई थी | महाराज राणा सांगा का इतिहास हिंदी
महाराज राणा सांगा और बाबर के बीच युद्ध
राणा सांगा और बाबर के बीच 16 मार्च 1527 को आगरा से 35 किलोमीटर दूर में “खानवा” की लड़ाई लड़ी गई थी पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हरा दिया था परंतु भारत में मुगल साम्राज्य को स्थापित करने की जंग अभी बाकी थी | राणा सांगा चाहते थे कि बाबर इब्राहिम लोदी को कमजोर कर दें ताकि उसे युद्ध में आसानी से हराया जा सके पानीपत की पहली लड़ाई के बाद बाबर पूरे भारत पर राज करने का सपना देख चुका था बाबर भारत में हमेशा के लिए रहना चाहता था जिसके कारण राणा सांगा और बाबर के बीच युद्ध हुआ क्योंकि राणा सांगा सभी हिंदू राजाओं को एकजुट करके हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाहता था और बाबर के रहते ऐसा नहीं हो सकता था
इब्राहिम लोदी के अलावा अफगानी भी बाबर से बदला लेना चाहता था सिकंदर लोधी के छोटे बेटे महमूद लोदी ने राणा सांगा से हाथ मिला लिया और एक लाख अफगानी की फौज उससे जुड़ गई और बाबर से लड़ने के लिए राणा सांगा राजपूतों को अपने साथ में लाना शुरू कर दिया मालवा के मेदनी राहों “ हसन खान” भी राणा के साथ जुड़ गए दूसरी तरफ बाबर ने भी कई राजाओं को अपने साथ मिलाया परंतु फिर भी उसकी सेना राणा सांगा की सेना से बहुत छोटी थी इसके बाद राणा सांगा और बाबर ने सीकरी के निकट खानवा में युद्ध लड़ा था इसमें राणा सांगा को लगा कि वह बाबर को आसानी से हरा सकता है क्योंकि उनकी सेना बाबर की सेना के मुकाबले बहुत अधिक बढ़ी है बाबर के पास उस समय तोपे थी उसने राणा सांगा की सेना पर तोप से हमला कर दिया था जिसमें बहुत से सैनिक मारे गए थे इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा पर एक तीर चलाया जिसके कारण वह बेहोश हो गए थे और जब बाद में होश आया तो उनकी एक आंख चली गई थी इस युद्ध में बाबर की जीत हुई थी
महाराज राणा सांगा की मृत्यु
खानवा की लड़ाई में बाबर और राणा सांगा के बीच जब युद्ध हुआ तो इस युद्ध में उन्हीं के एक विश्वासघात पात्र ने उन्हें विष देकर मार दिया था इसके बाद बाबर ने 12,000 सैनिकों के साथ इब्राहिम लोदी को हराया जिसके पास 100000 सैनिक थे खानवा की लड़ाई में राणा सांगा बहुत ही वीरता के साथ लड़े थे परंतु उनका राष्ट्र को एकजुट करने का सपना अधूरा रह गया था भारत का यह राजपूत 30 जनवरी 1528 को वीरगति को प्राप्त हो गया था 47 वर्ष की आयु में महाराणा सांगा का देहांत हुआ था राणा सांगा के 28 रानियां थी इनमें से ज्यादातर रानियां सती हो गई थी
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