वीरवर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास और जीवन परिचय हिंदी
कल्लाजी राठौड़ का जन्म
आश्विन शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत 1544 ईसवी को सामियाना गांव मेड़ता नागौर में हुआ था इनके पिता का नाम अचल सिंह राठौड़ था इनकी माता जी का नाम श्वेत कवर था इनकी माताजी ने इन्हें शिव पार्वती के आशीर्वाद से प्राप्त किया था वीर कल्लाजी जयमल मेड़तिया तथा मीराबाई के भतीजे थे जब अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तब वीर कल्लाजी और जयमल मेड़तिया ने अद्भुत साहस दिखाया और वहां से अपने परिवार को चित्तौड़ लेकर आ गए तब उनका महाराणा उदयसिंह ने स्वागत किया और जयमल को बदनोर की जागीर देकर सेनापति नियुक्त किया और कल्लाजी को बदनोर की जागीर देकर गुजरात के आसपास के क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया था | वीरवर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास हिंदी
कल्लाजी राठौड़ का गुरु
कल्लाजी राठौड़ के गुरु का नाम भैरवनाथ था इनसे कला जी ने योग शिक्षा का ज्ञान प्राप्त किया था कल्लाजी राजस्थान के एक राजपूत योद्धा थे जिन्हें लोक देवता भी माना जाता है कल्लाजी ने गुरु भैरवनाथ की कृपया से एक परम तेजस्वी योगीराज हुए और गुरु की कृपया से कला जी ने भविष्य दर्शन की कला सीखी इस कला के माध्यम से कल्लाजी अपने जीवन की भावी घटनाओं की जानकारी जान लेने पर भी उसे सहज भाव से स्वीकार किया करते थे |वीरवर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास हिंदी
कल्लाजी का विवाह
कल्लाजी का विवाह शिवगढ़ के शासक कृष्ण दास की बेटी राजकुमारी कृष्णकांता के साथ हुआ था शादी के दिन चित्तौड़गढ़ के महाराजा उदय सिंह ने संदेश भेजा कि अकबर ने धावा बोल दिया है और आपको सेना सहित मेवाड़ की रक्षा के लिए आगे आना पड़ेगा कल्लाजी रनेला की शासन व्यवस्था को संभालने के कारण व्यस्त हो जाते हैं जिससे कृष्णकांता कल्लाजी के पत्र, संदेश ,समाचार ,और मिलन के अभाव से चिंतित तथा उदासी रहती है जब कृष्ण दास को राजकुमारी की चिंता और उदासी का राज पता चला तो कृष्ण दास ने कुंवर कल्लाजी को राजकुमारी के योग्य समझते हुए कल्लाजी को संबंध श्री फल भेजा कुंवर कल्लाजी ने श्री फल स्वीकार किया |वीरवर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास हिंदी
कल्लाजी द्वारा मारवाड़ से प्रस्थान
कुंवर कला जी अपनी युवावस्था के प्रारंभ में अकबर द्वारा थोपी गई कूपन का विरोध में मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ जाने का फैसला करते हैं इसके बाद कल्लाजी ने मां मरुधरा जननी व भाभी को अंतिम परिणाम कर वायु वेग से मेवाड़ की तरफ प्रस्थान किया कुंवर कल्लाजी अपने मित्रों और साथी बंधुओं के लिए प्राण समान थे उनके घर हत्या के समाचार सुना भ्राता तेज सिंह एवं मित्र रणधीर सिंह, विजय सिंह ने अपने साथियों सहित कल्लाजी के मार्ग पर निकल गए इस प्रकार सभी वीर मेवाड़ की तरफ बढ़ने लगे
कल्लाजी द्वारा भोराईगढ़ पर फतह
एक दिन डाकू ने रनेला क्षेत्र से करीब 200 गाय बैल आदि चुरा कर भाग गए कल्लाजी ने जब दुखी जनता का यह वृत्तांत सुना तब कल्लाजी ने अपनी मर्यादा को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत रूप से पैमला को समझाने के लिए अपना दूत भेजा लेकिन वह नहीं माना इसके बाद कल्लाजी ने अपनी जनता को पैमला के आंतक से मुक्त कराने के लिए भोराईगढ़ पर चढ़ाई कर दी इसके बाद कल्लाजी के सेनापति रणधीर सिंह ने पैमला के सिर कोधड़ से अलग कर दिया लगभग 4000और 500 राजपूतों की बलि देकर रणचंडी की तृप्ति हुई इस प्रकार कल्लाजी ने अपने राज्य की प्रजा की पैमला दस्यु से रक्षा की इस प्रकार कल्लाजी ने 56 धरा के राव की उपाधि धारण की थी
अकबर द्वारा चित्तौड़ पर आक्रमण
जब कल्लाजी का विवाह कृष्ण कुमारी चौहान से हो रहा था 1567 ईसवी में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था उस समय चित्तौड़ का शासक महाराणा उदय सिंह था इसके बाद महाराणा उदयसिंह ने कल्लाजी के पास पत्र लिखा जिसमें लिखा था कि अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर लिया है आप अपनी सेना लेकर तुरंत चित्तौड़ पहुंचे यह पढ़कर कल्लाजी विवाह संपन्न कर अपनी पत्नी को वचन दिया कि “ मैं आपसे कैसे भी हालत में मिलने आऊंगा” और फिर कल्लाजी और जयमल अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंचे 13 फरवरी 1567 -68 ईस्वी को जयमल और कल्लाजी ने केसरिया धारण किया और हजारों स्त्रियों ने जौहर किया इस युद्ध में वीर जयमल मेड़तिया कल्लाजी ने अद्भुत वीरता दिखाई थी \वीरवर कल्लाजी राठौड़ का इतिहास हिंदी
कल्लाजी राठौड़ को चारभुजा वाला देवता का दर्जा मिला
जब जयमल युद्ध कर रहे थे उस समय पांव में तीर लगने से घायल हो गए थे तब वीर कल्लाजी ने अपने काका जयमल को अपने कंधों पर उठा लिया और मुगलों की सेना को दांतो तले लोहे के चने चबा दिए थे इसलिए अकबर ने इन्हें चार भुजा वाले देवता कहा था इसके बाद कल्ला जी ने पीछे मुड़कर देखा कि मैंने कितने सैनिक मारे तब उन्होंने अपना वचन तोड़ दिया जो कि माताजी नागणेची को दिया था कि पीछे मुड़कर नहीं देखा तो जीत निश्चित उनकी है और पीछे से इनको कोई नहीं मार पाएगा लेकिन जैसे ही वचन टूटा कला जी ने अपना शीश काटकर माताजी को अर्पण कर दिया जिससे माता जी ने आशीर्वाद दिया और कहा तुम्हें अपनी छाती से भी दिखेगा और तुम्हारा धड़ युद्ध करता रहेगा इसके बाद माताजी कल्लाजी का शीश लेकर अंतर्ध्यान हो गई इसके पश्चात जहां कल्ला जी का शीश कटा वहां आज भी चित्तौड़ जिले के” भैरव पॉल “में इनकी समाधि बनी हुई है
कल्लाजी राठौड़ की मृत्यु
जब युद्ध पूर्ण हुआ तब कल्लाजी का बिना सीसवाल आधार चित्तौड़ से चलकर 180 मील दूर सलूंबर के पास रनेला आया और पत्नी के पास आकर शांत हो गया आखिर अपने पति के इस गौरवशाली बलिदान से गौरवान्वित होकर कृष्ण कुंवारी चौहान अपने पति के धड़ को लेकर जलती हुई चिता में बैठ गई और उनका सौंदर्य पति के शौर्य और वीरता में विलीन हो गया कल्लाजी विक्रम संवत 1624 ईसवी को वीरगति को प्राप्त हुए थे कल्लाजी का मुख्य धाम चित्तौड़ में है राजस्थान के प्रमुख लोक देवता हैं इनकी कुल देवी नागणेची माता के प्रसिद्ध मंदिर नागाणा में वीर कल्लाजी का सिद्ध पीठ है कल्लाजी अस्त्र-शस्त्र पारंगत होने के साथ औषधि विज्ञान और योग क्रियाओं को जानते थे वीर कल्लाजी को चारभुजा वाला देवता, बाल ब्रह्मचारी ,के आदि नामों से भी जाना जाता है इनकी भील जाति के लोग उनकी प्रतिमा पर केसर , बांग, अफीम चढ़ाते हैं और कला जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है