सूरदास जी का जीवन परिचय और इतिहास हिंदी
सूरदास जी का जन्म
सूरदास जी कृष्ण भक्ति काव्य धारा के प्रमुख कवि थे सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में दिल्ली के निकट “ सीही” नामक गांव में सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था सूरदास जी के पिताजी का नाम पंडित रामदास था सूरदास जी जन्म से ही नेत्रहीन है इस विषय में विद्वानों में मतभेद है इस मतभेद का कारण यह माना जाता है कि सूरदास जी ने अपनी काव्य रचनाओं में मानव स्वभाव का, बाल लीलाओं एवं प्रकृति का ऐसा सजीव एवं स्पष्ट वर्णन किया है जो कि आंखों से प्रत्यक्ष देखे बिना किसी भी साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं है सूरदास की श्रीमद भगवत गीता के गायन में बचपन से रुचि थी | सूरदास जी का जीवन परिचय और इतिहास हिंदी
सूरदास जी के गुरु का नाम
सूरदास जी की 1509 में पारसोली में गुरु वल्लभाचार्य से भेंट हुई सूरदास जी वल्लभाचार्य के संपर्क में आने पर पुष्टिमार्ग से दीक्षित हुए इसके बाद सूरदास जी के पदों को सुनकर वल्लभाचार्य ने उनको अपना शिष्य बना लिया और श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन करने लगे अष्टछाप के कवियों में सूरदास जी सर्वश्रेष्ठ कवि माने गए हैं अष्टछाप का संगठन वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने किया था सूरदास जी वल्लभाचार्य की प्रेरणा से दास्य एवं दैन्य के पदों की रचना छोड़कर वात्सल्य, माधुर्य है, और शाखा भाव के पदों की रचना की सूरदास जी सगुण भक्ति धारा के कवि थे सूरदास और वल्लभाचार्य के जन्म में केवल 10 दिन का अंतर था | सूरदास जी का जीवन परिचय और इतिहास हिंदी
सूरदास जी की रचनाएं
वल्लभाचार्य से शिक्षा लेने के बाद सूरदास जी पूरी तरह कृष्ण भक्ति में लीन हो गए सूरदास ने अपनी भक्ति को ब्रज भाषा में लिखा सूरदास ने अपनी जितनी भी रचनाएं कि वह सभी ब्रजभाषा में कि इसी कारण सूरदास को ब्रजभाषा का महान कवि बताया गया है बृज भाषा हिंदी साहित्य की एक बोली है जो कि भक्ति काल में ब्रज क्षेत्र में बोली जाती थी इसी भाषा में सूरदास के अलावा रहीम, रसखान, केशवा, बिहारी, इत्यादि का योगदान हिंदी साहित्य में है सूरदास जी की प्रमुख तीन रचनाएं मानी जाती है पहली सूरसागर, सुर सारावली और साहित्य लहरी के नाम से जानते हैं
- सूरसागर- सूरसागर श्रीमद भगवत गीता के आधार पर रचित है जिसमें सवा लाख पद थे और इसमें अब लगभग 10000 पद उपलब्ध है सूरसागर सूरदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है इसमें भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओ, गोपियों से उनका प्रेम, गोपियों से उनके बिरहा, उद्धव -गोपी संवाद का बड़ा ही सरल एवं मनोवैज्ञानिक वर्णन किया गया है संपूर्ण सूरसागर को एक गीतिकाव्य माना जाता है जिस के पद तन्मया के साथ गाए जाते हैं और इसी ग्रंथ को सूरदास जी कि कीर्ति स्तंभ माना जाता है
- सुर-सारावली- सुरसा रावली में 1107 पद है सुर सरावली को सूरसागर का भाग माना जाता है सुरसुरावली में कहीं-कहीं पर भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया हुआ है तो कुछ स्थानों पर महाभारत की कथा के अंशु की झलक भी देखने को मिलती है सूरदास जी ने सुर सरावली की रचना 67 वर्ष की आयु में की थी
- साहित्य लहरी- साहित्य लहरी सूरदास जी की काव्य रचनाओं का एक संग्रह है जिसमें 118 कूट पदों को संग्रहीत किया गया है साहित्य लहरी में किसी एक विषय की विवेचना नहीं हुई है बल्कि इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं और अलंकारों की विवेचना की गई है इस ग्रंथ की सबसे खास बात यह है कि इसके अंतिम पद में सूरदास ने अपने वंश वृक्ष के बारे में बताया है जिसके अनुसार सूरदास का नाम सूरदास पड़ा और वह चंदबरदाई के वंशज है चंदबरदाई वही हैं जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की थी साहित्य लहरी में श्रृंगार रस की प्रमुखता है
- | सूरदास जी का जीवन परिचय और इतिहास हिंदी
सूरदास जी का साहित्य में स्थान
सूरदास हिंदी साहित्य के महा कवि हैं क्योंकि उन्होंने न केवल भाव और भाषा की दृष्टि से साहित्य को सजाया है बल्कि कृष्ण काव्य की विशिष्ट परंपरा को भी जन्म दिया है सूरदास जी का हिंदी काव्य स्थान “ साहित्यकाश” में सूर्य के समान ही है | सूरदास जी का जीवन परिचय और इतिहास हिंदी
सूरदास जी की मृत्यु
सूरदास जी ने भक्ति करते हुए अपने आप भौतिक शरीर का त्याग सन 1580 ईसवी में गोस्वामी विट्ठलनाथ के सामने गोवर्धन की तलहटी के परसोली नामक गांव में किया और पंचतत्व में विलीन हो गए थे परसोली वही गांव है जहां पर भगवान कृष्ण ने अपनी रास लीला रचाते थे सूरदास ने जिस जगह अपने प्राण त्यागे उस जगह उस जगह आज एक सुर श्याम मंदिर की स्थापना की गई है| सूरदास जी का जीवन परिचय और इतिहास हिंदी