| स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय इतिहास |
स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय और इतिहास
हरिदास जी का व्यक्ति तो बड़ा ही विलक्षण था वह बचपन से ही एकांत प्रिय थे उन्हें ग्रस्त जीवन में से विमुख देकर उनकी पतिव्रता पत्नी ने उनकी साधना में विघ्न उपस्थित न करने के उद्देश्य से योगा अग्नि के माध्यम से अपना शरीर त्याग दिया और उनका तेज स्वामी हरिदास के चरणों में लीन हो गया था | स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय इतिहास |
स्वामी हरिदास जी का जन्म
यशोहर जिले में एक छोटा सा गांव वुडन था उसी गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार रहता था इसी परिवार में विक्रम सावंत 1535 में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हरिदास का जन्म हुआ था इनके पिता का नाम सुमति तथा माता का नाम गोरी था पूर्व जन्म के संस्कार ही थे की बाल्यकाल से ही हरिदास की श्रद्धा हरि नाम जपने में थी हरिदास ने 25 वर्ष की आयु में वैराग्य ले लिया और गृह त्याग कर दिया और 1 ग्राम के समीप जंगल में कुटिया बनाकर रहने लगे वह बड़े ही शांतिप्रिय व धैर्यवान साधु थे
क्षमा उनका गुण था तो निर्भयता उनका आभूषण थी उनकी आवाज में बड़ा ही माधुर्य था वह प्रतिदिन तीन लाख बार हरि नाम का जाप करते थे हरिदास तेज स्वर में जाप में करते थे किसी ने जोर-जोर से जाप करने का कारण पूछा महाराज क्या भगवान को कम सुनाई देता है जो आप इतने उच्च स्वर में जाप करते हैं या अन्य कोई कारण है इसके बाद हरिदास ने जवाब दिया की हरि नाम बड़ा ही अलौकिक है इसका श्रवण मात्र भी प्राणी को इस नरक से मुक्त कर देता है
मैं इसी कारण इसका जाप उच्च स्वर में करता हूं कि इस निर्जन वन में जितने भी जीव जंतु है वातावरण में कितने ही प्रकार के अदृश्य कीट पतंगे हैं वह सब भी इसका श्रवण करें और भव से पार हो जाए उनकी बात से वह व्यक्ति संतुष्ट हो गया उनकी ख्याति बढ़ती जा रही थी इतने ही लोग उन्हें अपना आदर्श मानकर भगत कथ हो गए
हरिदास जी के शिष्य
हरिदास जी के शिष्य का नाम तानसेन था वह बादशाह अकबर के दरबार में संगीतकार था बादशाह अकबर एक बार तानसेन के साथ हरिदास जी का भजन सुनने के लिए गए थे उन्हें उनका वजन बहुत ही अच्छा लगा इसके बाद अकबर वेश बदलकर हरिदास जी के भजन सुनने के लिए जाया करते थे | स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय इतिहास |
हरिदास जी के साथ घटी घटना
हरिदास जी की ख्याति से कुछ लोग जलने लगे थे जिनमें रामचंद्र खान नाम का एक जमीदार था उसने उनकी साधना और कीर्ति को नष्ट करने का षड्यंत्र रचा और एक वैश्या को धन का लालच दिया उसने तत्काल सहमति दे दी रूप और सौंदर्य की साक्षात मूर्ति उस वेश्या ने सिंगार किया और रात्रि के समय हरिदास जी की कुटिया में पहुंच गई वह तो भगवान की आराधना में लीन थे उनका मनोहर रूप देखकर वैश्या उन पर आसक्त हो गई एक तो उसका उद्देश्य भी ऐसा ही था दूसरे हरिदास जी की तेजस्वी मुख् मदा से उसके मन में काम का विकार आ गया वह निर्लज्ज होकर निर्वस्त्र हो गई और रात भर उनके साथ कुछ चेष्टा करने का प्रयास करती रही थी
रात्रि भर वह वेश्या हरिदास जी की साधना को भंग करने का प्रयास करती रही परंतु सफल ना हो सकी और प्रत्यय काल उसने अपने वस्त्र पहने और चलने की तैयारी हुई इसके बाद हरिदास जी ने समाधि से उठकर देखा कि एक वेश्या उनके पास खड़ी है और वह बोले देवी मैं माफी चाहता हूं समाधि में लीन होने के कारण आपसे बात नहीं कर सका आप किस प्रयोजन से आई थी वह मुस्कुराकर चली गई 3 रात लगातार वह अपने प्रयास में विफल रही थी उस वेश्या के इतने प्रयास के बाद भी हरिदास जी अपनी तपस्या से बिल्कुल भी नहीं हटे थे जब तक उस वेश्या के कानों में निरंतर हरि नाम की आवाज गूंजने से उसका अंत करण शुद्ध हो गया था
वह चौथी रात्रि भी आई हरिदास जी उस वक्त भी पूर्ण भक्त भजन में लीन थे इतने लीन थे कि उनकी आंखों से अश्रु धारा बह रही थी हरिदास जी की इस दशा को देख कर उस वेश्या के मन में आत्म ग्लानि हो उठी वह साधारण साधु नहीं है वह सोचने लगी जो मुझ जैसी परम सुंदरी की उपस्थिति का आभास तक नहीं करता और अपनी ही धुन में लीन रहता है तो निश्चय ही इसे किसी अलौकिक आनंद की प्राप्ति हो रही है अवश्य ही इसे कोई अन्य ऐसा आनंद प्राप्त है जिसके समक्ष संसार के सब रूप से फीके लगते हैं
वेश्या द्वारा सत्य मार्ग अपनाना
वह वेश्या हरिदास जी के भक्ति पथ को भ्रष्ट करने आई थी और वह स्वयं ही सतमार्ग पर चल पड़ी वह इच्छाओं पर विजय चरणों पर गिर पड़ी और अपना अपराध क्षमा करने के लिए आशु स्वर में याचना करने लगी पुण्यात्मा हे-महात्मा मुझ जैसी पापन का उद्धार करो मेरा अपराध क्षमा करो मुझे अपनी शरण में ले लो उसके पश्चाताप भरे शब्दों से हरिदास जी ने समाधि थोड़ी देवी मानव जीवन मुक्ति मार्ग का एकमात्र रास्ता है कोई इसे भोग मानकर जीता है तो कोई योग मानकर उठो और अपने हृदय में हरी नाम धारण करो तुम्हारा उद्धार हो जाएगा
इसके बाद वह वेश्या तत्काल सच्चे मन से प्रभु का स्मरण करने लगी उसे हरिदास जी ने दीक्षित करके तपस्विनी बना दिया उन्होंने उस स्थान को उसे ही सौंपा और स्वयं हरि नाम प्रचार करने चल पड़े या उसी कुटिया में हरी नाम आने लगी वह साधु संत और हरी नाम श्रवण का प्रताप था कि वही वैश्या आगे चलकर भगवान की परम भक्त बनी हरिदास जी वहां से चलकर शांतिपुर पहुंचे शांतिपुर में मुस्लिम शासक था उस शासक के कारण हिंदुओं को अपने धर्म का आचरण करने में कठिनाई हो रही थी
हरिदास को जेल की सजा
हरिदास जी मुस्लिम होकर भी हिंदू आचरण करते हरि नाम लेते हैं कुछ मुस्लिम अधिकारियों को यह बात बुरी लगी उन्होंने बादशाह को यह बात बढ़ा चढ़ाकर बताई बादशाह सलामत जबकि नगर में आपके हुकुम नाम से इस इस्लाम को सर्वव्यापी करने की मुहिम चलाई जा रही है ऐसे में हमारा ही एक मुस्लिम फकीर हिंदू धर्म के गीत गाता फिर रहा है इससे हमारी मुहिम पर बुरा असर पड़ता है उस फकीर को सजा ना दी गई तो हिंदू ताकतवर हो जाएंगे बगावत हो जाएगी
बादशाह ने तत्काल हरिदास जी की गिरफ्तारी का हुक्म दिया उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया यह खबर आग की तरह हरिदास जी के भक्तों में फैली सब बड़े दुखी हुए और ऐसे अन्याय बादशाह की सर्वत्र भर्त्सना होने लगी इधर हरिदास जी जेल में भी हरी नाम का जाप करते थे जेल के अन्य बंदी भी उनके भक्त हो गए स्थिति काबू से बाहर होती देख कर अधिकारियों ने मुकदमा चलाया
उन्हें अदालत में काजी के सामने लाया गया हरिदास तुम बड़े भाग्य से तो मुसलमान के घर में जन्मे फिर भी काफिरों के देवता का नाम लेते हो उन्हीं जैसा आचरण करते हो हम तो हिंदू के घर का पानी भी नहीं पीते यह महापाप तुम ना करो इसके लिए तुम्हें जहन्नुम की आग में झुलसना होगा अब तुम कलमा पढ़ लो तो तुम पाक हो जाओगे इसके बाद हरिदास जी ने कहा काजी साहब इस संसार का मालिक एक है उसकी दृष्टि में मानव की अलग-अलग कॉम नहीं है हमने ही उसे बांट रखा है
उसी हरि ने प्रत्येक मानव को यह अधिकार दिया है कि वह चाहे जिस से भी जैसे नाम से उसकी आराधना कर सकता है जब अल्लाह भगवान की दृष्टि में मैं अपराधी नहीं हूं तो आपके अनुसार में कैसे अपराधी हुआ यह अपराध है इसकी तुम्हें सख्त सजा मिलेगी या तो तुम कलमा पढ़ो या सजा के लिए तैयार रहो काजी गुस्से से बोला कोई किसी मानव को धर्म बदलने के लिए बाध्य नहीं करता यह तो मानव की अपनी दृष्टि होती है कि वह किस दृष्टि से प्रभु के पास जाता है
इसके बाद हरिदास जी ने कहाजो भी सजा दे मुझे मंजूर है परंतु शरीर के टुकड़े टुकड़े होने पर भी हरिनाम छोड़ना स्वीकार नहीं यह काफिर है इसे इसके गुनाह के लिए 22 बाजारों में घुमाया जाए और इसके इतने कोड़े लगाएं जाएं कि इसकी सांसें इसका साथ छोड़ दें काजी ने क्रोध में उन्हें सजा सुना दी हरिदास जी को घुमाते हुए बाजारों में कोड़े लगाए जाने लगे हरि नाम में लीन उन्होंने अपने प्राण को केंद्र में स्थित कर लिया मारने वाले थक गए परंतु पीटने वाला नहीं थका था
क्योंकि उन्होंने अपने प्राण केंद्र में स्थिर किए थे इसलिए सिपाहियों ने उन्हें मरा जानकर गंगा में फेंक दिया परंतु जिसके जीवन की डोरी स्वयं जगन्नाथ ने पकड़ी है उसे कौन मार सकता है इसके बाद हरिदास जी चेतन होकर जीवित गंगा से निकल आए अधिकारियों ने जब यह सुना तो भयभीत होकर हरिदास जी के चरण पकड़ लिए और क्षमा याचना करने लगे साधु संत क्षमाशील होते हैं
इसी समय श्री कृष्ण रूप स्वामी चैतन्य महाप्रभु नवद्वीप में हरी नाम की पावन सुधा बरसा रहे थी हरिदास जी भी वही पहुंच गए और महाप्रभु के सानिध्य में हरी नाम लेते रहे फिर महा प्रभु की आज्ञा से वे एक अन्य सन्यासी नित्यानंद जी के साथ नगर में हरि कीर्तन करते घूमने लगे फिर वह पूरी में आ गए और वहीं कुटिया बनाकर जीवन पर्यंत करने के भक्तों की संख्या असंख्य कर दी थी उनके शिष्य थे वह उन भक्तों में से थे जो अपने हाथों समस्त मानव जाति के उधार में प्रयास कर रहे और अपने शत्रु को भी हरी नाम की दीक्षा दी
हरिदास जी की मृत्यु
हरिदास जी की मृत्यु वृंदावन के निधिवन में 1630 विक्रम सावंत को हुई थी
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