सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
ईसा के जन्म के बाद 500 साल बाद उत्तर भारत के हरियाणा में एक शक्तिशाली राज्य का जन्म हुआ जिसका नाम धनेश्वर था धनेश्वर राज्य में राजा प्रभाकर वर्धन राज करते थे वह बड़े वीर पराक्रमी और योग्य शासक थे राजा प्रभाकर वर्धन ने महाराज के स्थान पर महाराजाधिराज और परम बटारा की उपाधि धारण की थी साल 570 ईसवी तक राजा प्रभाकर वर्धन ने मालवा, गुर्जरों और गुणों पर लगातार हमले किए इन हमलों में राजा को अकूत सम्मान और विजय मिली किंतु राज्य की उत्तर पश्चिमी सीमा पर कभी कबार गुणों के छुटपुट उपद्रव होते रहते थे पर राजा प्रभाकर वर्धन अपने समय के एक महा योद्धा सिद्ध हुए यह दुश्मनों पर कहर बनकर टूट पड़ते थे युद्धों से जूझते हुए उत्तर भारत की सहरदे अभी की नई करवट लेने वाली थी महान कहे जाने वाले साम्राज्य को थानेश्वर के सामने नजरें झुकानी थी क्योंकि अब एक महा योद्धा शूरवीर का जन्म होना था |सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन का जन्म
590 ईसवी में सम्राट हर्षवर्धन का जन्म हुआ उस समय भारत की स्थिति काफी दयनीय थी साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय राजनीतिक उथल-पुथल हो चुकी थी चीन के जंगलों की तरफ से आई विदेशी सेनाओं ने अपनी तलवारों के बल पर भारत भूमि पर अधिकार स्थापित करने की फिराक में थी इस समय भारत की सरहदों की रक्षा करने वाला कोई वीर नहीं था यही बालक आगे चलकर भारत के इतिहास में सम्राट हर्षवर्धन के नाम से विख्यात हुआ इनके पिता जी का नाम प्रभाकर वर्धन था और इनकी माता जी का नाम यशोमती था यह तीन भाई बहन थे इनके बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन और छोटी बहन का नाम राज्यश्री था इन तीनों में आपस में बहुत प्रेम था कुछ समय के बाद राजा प्रभाकर की मृत्यु हो गई इसके बाद इनके बड़े पुत्र राज्यवर्धन को सिहासन पर बिठाया गया इसके बाद बंगाल के राजा संशाक एवं मालवा के राजा देव गुप्त ने थानेश्वर पर आक्रमण कर दिया जिसकी वजह से इनके बड़े भाई की मृत्यु हो गई इस युद्ध में राजा संशाक ने राजा राज्यवर्धन को मौत के घाट उतार दिया था |सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन का राजतिलक
राजा हर्षवर्धन का 606 ईस्वी में 16 वर्ष की उम्र में थानेश्वर राज्य के राज्य सिंहासन पर राजतिलक किया गया था राजा बनते ही हर्ष के मन में अपने बड़े भाई की मौत का बदला लेने की आग धधक रही थी इसी के साथ बालक हर्षवर्धन ने कन्नौज और थानेश्वर राज्यों का एकीकरण करके कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई और अपनी बहन का विवाह मोखेरी के राजा ग्रह वर्धन से करवा चुके थे अब हर्ष ने युद्ध को अपना साथी चुन लिया था इसी के साथ उन्होंने मालवा पर हमला करके मालवा के शासक देव गुप्त से उसका संपूर्ण राज्य छीन लिया था इसी जीत के बाद उन्होंने राजा संशाक पर भयभीत करने वाला हमला किया इस हमले में राजा संशाक युद्ध को छोड़कर गोंडी इलाके की तरफ भाग गया इन हमलों में हर्ष की जीत के बाद संपूर्ण भारत में सम्राट हर्षवर्धन की ख्याति फैलने लगी सम्राट ने अपनी लगातार जीत के बाद एक लाख की विशाल सेना और 60 हजार हाथियों की महा सेना का निर्माण किया|सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन द्वारा विजय अभियान की शुरुआत
सेना के साथ सम्राट हर्षवर्धन ने अपना विजय अभियान शुरू किया उन्होंने बलबी, मगध, कश्मीर, गुजरात और सिंध पर ताबड़तोड़ दावों के साथ हमले किए और अपनी विदाई के झंडे बुलंद किए थे संपूर्ण उत्तर भारत पर अपना दबदबा कायम कर लिया था जल्दी हर्षवर्धन का साम्राज्य गुजरात से लेकर असम तक और कश्मीर से लेकर नर्मदा नदी के दक्षिण तक फैल गया सम्राट ने आर्यव्रत को भी अपने अधीन कर लिया था हर्ष के कुशल शासन से भारत तरक्की की ऊंचाइयों को छू रहा था हर्ष के शासन काल में भारत ने आर्थिक रूप से बहुत प्रगति की थी इतने विशाल साम्राज्य के अधिपति सम्राट हर्षवर्धन की निगाहें अब दक्षिण भारत की तरफ थी दक्षिण में सम्राट हर्षवर्धन की टक्कर का एक महा योद्धा राज करता था जिसका नाम पुलकेशिन द्वितीय था
चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय युद्ध की तरह- तरह की जानकारी जानता था इस राजा को हरा पाना एक सपने के समान था राजा हर्षवर्धन ने इन सब बातों को ताक पर रखकर उस पर हमला कर दिया दक्षिण विजय अभियान पर निकले सम्राट हर्ष की सेना को पुलकेशिन द्वितीय की सेना से कांटे की टक्कर मिली पुलकेशिन ने सम्राट हर्षवर्धन को ऐसा करारा जवाब दिया कि सम्राट ने भविष्य में कभी भी दक्षिण विजय के बारे में नहीं सोचा सम्राट हर्षवर्धन के चीन के साथ बेहतर संबंध थे महाराज हर्ष ने 641 में एक ब्राह्मण को अपना दूत बनाकर चीन भेजा 643ईस्वी में चीनी सम्राट ने लियाम गुहाई नाम के एक दूत को हर्ष के दरबार में भेजा लगभग 646 में एक चीनी दूध मंडल लियाम के नेतृत्व में सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में आया इतिहास के मुताबिक चीन के मशहूर चीनी यात्री के राजा हर्षवर्धन के दरबार में 8 साल तक उनके दोस्त की तरह रहे |सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
सम्राट हर्ष के समय की सांस्कृतिक स्थिति
राजा हर्ष के समय में,, क्षेत्रीय सांस्कृतिक इकाइयों जैसे, गुजरात ,उड़ीसा ,राजस्थान,आदि का निर्माण शुरू हुआ था राजा हर्षवर्धन काफी साहित्यिक अभिरुचि और प्रतिभाओं के व्यक्ति थे और अपने प्रशासनिक कर्तव्यों के बावजूद वे नाटक लिखने में कामयाब रहे जैसे- “ रत्नावली, प्रियदर्शिका, और नागानंद ” उन्होंने एक शानदार दरबार बना रखा था जहां पर कवि, नाटककार और चित्रकार रहते थे हर्षचरित और “ कादंबरी के लेखक बाना ”, हर्ष के दरबारी कवि थे सम्राट हर्षवर्धन शुरुआत में शिव भगत थे परंतु अपनी बहन राजश्री और बौद्ध संत दिवाकर मित्रा के प्रभाव के कारण उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था |सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु
तीसरे दूत के भारत पहुंचने से पूर्व ही साल 647 में सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई सम्राट हर्षवर्धन की अपनी पत्नी दुर्गावती से 2 पुत्र थे उनका नाम था “ वाग्य वर्धन और कल्याण वर्धन ” उनके दोनों बेटों की अनुसरा नामक मंत्री ने हत्या कर दी इस वजह से हर्ष का कोई भी वारिस जिंदा नहीं बचा हर्ष के मरने के बाद उनका साम्राज्य भी धीरे-धीरे बिखरता चला गया एक संपूर्ण साम्राज्य समाप्त हो गया सभी धर्मों का सम्मान करने वाले हर्षवर्धन ने हीं प्रयाग का मशहूर कुंभ मेला शुरू करवाया था प्रयाग में हर साल होने वाला कुंभ मेला जो सदियों से चला आ रहा है और हिंदू धर्म के प्रचार के बीच काफी प्रसिद्ध है माना जाता है कि वह राजा हर्ष ने शुरू करवाया था माना जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन ने अरब पर भी चढ़ाई कर दी थी लेकिन रेगिस्तान के क्षेत्र में उनको रोक दिया गया सम्राट हर्षवर्धन अखंड भारत की एकता को साकार करने के स्वप्न को छूने वाला राजनीतिज्ञ था हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तरी पश्चिमी भारत में राजपूतों के छोटे-छोटे राज्य स्थापित हो गए थे|सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास