कल्कि अवतार का रहस्य चारों युगों का आरंभ कैसे हुआ त्रेता युग का आरंभ द्वापर युग का आरंभ कलयुग का आरंभ कली पुरुष का रहस्य
कल्कि अवतार का रहस्य
वेदों के अनुसार इस सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने कीऔर इसके पालनहार भगवान विष्णु है और संहार करता भगवान शिव शंकर है इस सृष्टि को चलाने के लिए भगवान विष्णु के अनेकों अवतार होते रहते हैं भगवान विष्णु ने कहा कि जब भी पृथ्वी पर धर्म की हानि होगी और पाप का उत्थान होगा तब तब मैं जन्म लूंगा | कल्कि अवतार का रहस्य |
चारों युगों का आरंभ कैसे हुआ
हिंदू पुराणों के अनुसार कालखंड को चार युगों में बांटा गया है इन चार युगों कों सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग और कलयुग के नाम से जाना जाता है हिंदू पुराणों में ऐसा माना जाता है कि जब भी किसी कालखंड में धर्म की हानि होती है उस समय भगवान श्रीहरि अधर्म करने वालों का विनाश करने के लिए जन्म लेते हैं इसके बाद तीनों लोकों में धर्म की स्थापना करते हैं जिसके बाद एक नए युग का आरंभ होता है
सृष्टि के आरंभ में सबसे पहला युग सतयुग था सतयुग की काल अवधि 4800 दिव्य वर्ष अर्थात 17 लाख 28 हजार मानव वर्ष मानी जाती है ऐसा माना जाता है कि इस युग में मनुष्य की आयु 1 लाख वर्ष के करीब थी साथ ही सतयुग में मनुष्य की लंबाई भी आज की तुलना में काफी अधिक होती थी इस युग में पाप की मात्रा 0% थी जबकि इस युग में पुण्य की मात्रा 100% होती है फिर भी इस युग में श्री हरि नरसिंह रूप में अवतरित हुए थे सवाल ये उठता है कि जब सतयुग में पाप नहीं था तो फिर श्रीहरि इन रूपों में क्यों अवतरित हुए जब परम पिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो दे देवों, नागो, राक्षसों, गंधर्व आदि के साथ राक्षसों की भी उत्पत्ति हुई थी ताकि सृष्टि का संतुलन बना रहे इस संतुलन को बनाए रखने के लिए सतयुग में श्री हरि शंखासुर, हिरण्याक्ष दैत्य और हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए विभिन्न रूपों में अवतरित हुए थे उस समय मनुष्य अपने विकास की ओर अग्रसर हो रहा था अर्थात मनुष्य जानवरों से धीरे-धीरे अपने वास्तविक रूप में आ रहा था इसके अलावा भगवान श्रीहरि का यह अवतार मानव के विकास का प्रतीक माने जाते हैं | कल्कि अवतार का रहस्य |
त्रेता युग का आरंभ
सतयुग की समाप्ति के बाद त्रेता युग आया इस युग में श्री हरि ने वामन और श्री राम का अवतार लिया जबकि परशुराम के रूप में उन्होंने अंश अवतार लिया था इस युग के काल की अवधि 1296000 मानव वर्ष मानी जाती है इस युग में मनुष्य की उम्र 10000 वर्ष हुआ करती थी इस युग में मनुष्य की लंबाई 100 से 150 फीट हुआ करती थी इस युग में पाप की मात्रा 25% और पुण्य की मात्रा 75% हुआ करती थी इस युग में रावण, कुंभकरण, बाली, अहिरावण जैसे अत्याचारी राजा हुआ करते थे जो अपने अहंकार में आकर तीनों लोको के प्राणियों को प्रताड़ित करते थे या उन पर अत्याचार करते थे जिस कारणवश भगवान श्री हरि राम का रूप लेकर बल और अहंकार को मिटाने के लिए अवतरित हुए और इन अत्याचारों का नाश किया जब श्री राम अयोध्या वापस आए तो उन्होंने कई वर्षों तक वहां शासन किया फिर देवी सती के पृथ्वी में समा जाने के कुछ वर्षों के बाद उन्होंने भी अपना देह का त्याग कर दिया
द्वापर युग का आरंभ
प्रभु श्री राम के देह त्याग करने के बाद फिर से एक नए युग का आरंभ हुआ जिसे द्वापर युग कहा जाता है द्वापर युग मैं श्री हरि ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया इस युग के काल की अवधि 864000 मानव वर्ष मानी जाती है इस युग में मनुष्य की आयु हजार वर्ष हुआ करती थी इस युग में पाप की मात्रा 50% थी द्वापर युग को युद्धों का युग कहा जाता है इस युग में धर्म की तेजी से हानि होने लगी थी और और अधर्म अपना पांव तेजी से पसारने लगा था तब भगवान श्रीकृष्ण ने पापियों का एक-एक कर नाश कर दिया था और जब महाभारत युद्ध के पश्चात् अधर्म का नाश हो गया तो युधिष्ठिर को हस्तिनापुर और हस्तिनापुर का राजा घोषित किया जिस समय युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था
उसी समय गांधारी अपने सभी पुत्रों की मृत्यु का जिम्मेदार मानते हुए “ भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया ” गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप देते हुए कहा था- कि कृष्ण जिस तरह तुमने मेरे कुल का नाश किया उसी तरह तुम्हारे कुल का विनाश होगा उसके बाद पांडवों ने 36 साल तक हस्तिनापुर पर राज किया फिर गांधारी के दिए गए एक श्राप के कारण भगवान श्री कृष्ण की द्वारका नगरी की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी द्वारिका के लोग मदिरा पीकर आपस में लड़ने लगे और एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए यह देखकर भगवान श्री कृष्ण बहुत दुखी हुए
वह एक दिन एक वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम कर रहे थे उसी समय एक शिकारी ने भगवान श्रीकृष्ण पर अपना निशाना साधा क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने मृत्यु लोक में जन्म लिया था इसलिए एक ना एक दिन इस मनुष्य शरीर को छोड़ना ही था इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने देह का त्याग कर दिया और वैकुंठ चले गए जब इस बात का पता युधिष्ठिर को चला दो उन्हें समझ आ गया कि अब जीवन का कोई भी उद्देश्य नहीं रहा द्वापर युग इस समय अपनी समाप्ति की ओर था और कलयुग का प्रारंभ होने वाला था
कलयुग का आरंभ
इस बात को ध्यान में रखते हुए युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर का राजपाट त्याग दिया और वह अपने चारों भाइयों और अपनी पत्नी द्रोपती के साथ हिमालय पर्वत की यात्रा पर निकल पड़े उनके यात्रा पर निकलते ही कलयुग का आरंभ हो गया इस युग में पाप की मात्रा 75% और पुण्य की मात्रा 25% है यह समय कलयुग का प्रथम चरण चल रहा है कलयुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था कलयुग ने अब तक 5120 वर्ष ही पूरा किया है जबकि इसके अंत होने में अभी 426880 वर्ष बाकी है परंतु कलयुग का अंत कैसे होगा इसका वर्णन पहले ही ब्रह्मपुराण में किया जा चुका है
ब्रह्मपुराण के अनुसार “ मनुष्य की आयु केवल 12 वर्ष रह जाएगी ” इस दौरान लोगों में द्वेष और दुर्भावना बढ़ेगी जैसे कलयुग की उम्र बढ़ती जाएगी वैसे ही नदियां सूख जाएगी धन के लोग में मनुष्य किसी की भी हत्या करने में डरेंगे इंसान धार्मिक कार्य करना बंद कर देगा और गाय दूध देना बंद कर देगी इस युग में जब पाप की सभी सीमाएं पार हो जाएगी तब भगवान श्री हरि कल्कि के अवतार में अवतरित होंगे वह धर्म करने वालों का नाश करेंगे इसके बाद एक नए युग का आरंभ होगा
ब्रह्मपुराण के अनुसार युग परिवर्तन का यह है 22 वां चक्कर चल रहा है | कल्कि अवतार का रहस्य |
कली पुरुष का रहस्य
कली पुरुष कलयुग में भगवान विष्णु का शत्रु होने वाला है एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्रदेव से मिलने के लिए स्वर्ग लोक गए हुए थे परंतु उस समय इंद्रदेव वहां पर नहीं थे वह किसी राक्षस का वध करने के लिए गए थे कुछ समय के बाद जब वह स्वर्ग लोक आ रहे थे तो ऋषि दुर्वासा ने उन्हें स्वागत के लिए फूलों की माला दी उस समय इंद्रदेव अपनी जीत की खुशी में मगन थे और उन्होंने वह माला अपने हाथी को पहना दी जब दुर्वासा ऋषि ने यह देखा कि वह माला हाथी के पैरों में पड़ी है तो उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने इंद्रदेव को श्राप दिया कि जिस ऐश्वर्या में तुमने मेरे उपहार का अपमान किया है वह तुमसे छीन जाएगा
देवता कमजोर होने लगेंगे इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और भगवान विष्णु ने उन सभी को समुद्र मंथन के लिए कहा- आप लोगों को पुनः पहले जैसा होने के लिए छीर सागर की अमृत की आवश्यकता पड़ेगी क्योंकि देवता भी कमजोर थे इसलिए इंद्रदेव ने असुरों के राजा राजा बलि से समुद्र मंथन के लिए मदद मांगी पहले तो राजा बलि ने देवताओं को मना कर दिया वे जानते थे कि देवता असुरों के साथ छल करेंगे परंतु शुक्राचार्य के कहने पर राजा बलि इस शर्त के लिए तैयार हुए जो भी समुद्र मंथन में निकलेगा उसका बटवारा होगा तब मंदराचल पर्वत को गरुड़ देव ने अपनी चौच में उखाड़कर शिव सागर में रख दिया और सरपराज वासुकी को उस पर्वत में लपेटकर एक रास्ते के रूप में राक्षस गण बासुकीनाथ के मुख की ओर और देवता गण उसकी पूछ कीओर थे परंतु मंथन हो नहीं पा रहा था क्योंकि मंदराचल पर्वत का आधार घूम नहीं रहा था
तब भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर इस प्रकार मंथन की शुरुआत की थी उसमें बहुत सारे कीमती आभूषण के साथ पहले हलाहल विष निकला भगवान विष्णु को इसके बारे में पहले ही पता था देवताओं को इस बारे में पहले नहीं बताना चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि अगर उन्हें बता दिया तो वह विष के कारण इस को नहीं करते इसलिए उन्हें सिर्फ अमृत के बारे में बताया गया परंतु पहले हलाहल विष निकल गया था और सभी इसके वेग में मूर्छित होने लगे थे परंतु शर्त के अनुसार इसे आधा देवता और आधा असुरों को पीना था परंतु दोनों में हलाहल विष को सहन करने की शक्ति नहीं थी
फिर भगवान भोलेनाथ ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया इसकी कुछ बूंदे कली के मुंह में जा गिरी जिसके कारण उसका शरीर नष्ट हो गया सबसे अंत में जब अमृत निकला तो अमृत की कुछ बूंदें राक्षस कली के मुंह में गई जिसके कारण वह फिर से जीवित हो गया परंतु वह अपने भौतिक रूप में नहीं आ सका | कल्कि अवतार का रहस्य |