राजा भोज का इतिहास

राजा भोज का इतिहास एवं जीवन परिचय, राजा भोज का जन्म राजा, भोज द्वारा किए गए निर्माण कार्य, राजा भोज द्वारा गजनवी से बदला, राजा भोज की मृत्यु, राजा भोज और गंगू तेली की कहानी

राजा भोज का जन्म 

राजा भोज का जन्म महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन में 980 में हुआ था इनके पिता का नाम सिंधुराज और इनकी माता का नाम  सावित्री था राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे 15 वर्ष की आयु में उनका राज्य अभिषेक मालवा के  राज सिहासन पर हुआ था प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ रेखा प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन संस्कृत साहित्य पर शोध के दौरान मलयाली भाषा में भोज की रचनाओं की खोज करने के बाद यह माना कि राजा भोज का शासन सुदूर समुद्र के तट तक था 

ग्वालियर से मिले महान राजा भोज की स्तुति पत्र के अनुसार केदारनाथ मंदिर का राजा भोज ने 1076  से 1099 के बीच  पुनर्निर्माण कराया था राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12 वीं शताब्दी का है इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते हैं सेव लोग शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं तब यह मंदिर मौजूद था कुछ इतिहासकारों अनुसार राजा भोज परमार मालवा के  पंवार वंश के नोवे राजा थे

उन्होंने 1018 से 1060 ईसवी तक शासन किया भोजराज इसी महा प्रताप भी वंश की की पांचवी  पीढ़ी थे  राजा भोज ने अपने शासनकाल में कई मंदिर बनवाए राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा हुआ है धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था कहते हैं कि उन्होंने ही मध्य प्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था इससे पहले भोज पाल कहा जाता था इन्हीं नाम से ही इन्हें भोज की उपाधि देने का प्रचलन शुरू हुआ जो इनके जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं को दी जाती थी 

राजा भोज द्वारा किए गए निर्माण कार्य 

 मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास है उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन है राजा भोज ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया जैसे कि- “ विश्व प्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्व में भारत के शिव भक्तों की श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला, भोपाल का विशाल तालाब” सभी राजा भोज की सृजनशील व्यक्ति की देन है

राजा भोज नदियों के चैन लाइज जोड़ने के कार्य के लिए भी पहचाने जाते हैं आज उनके द्वारा को दी गई नहर और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के कंजर वाटर का लाभ हम लोगों को मिल रहा है भोपाल शहर का बड़ा तालाब इसका उदाहरण है भोजराज ने भोपाल में एक सरोवर का निर्माण कराया था जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है यह सरोवर 15वीं शताब्दी तक विद्यमान था राजा भोज ने सोमनाथ, मुंडेर जैसे कई प्रसिद्ध मंदिर बनवाए जो कि हमारी संस्कृति की धरोहर है

राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ-साथ सरस्वती माता के मंदिर भी  बनवाए थे राजा भोज ने उज्जैन में सरस्वती कंटक मंदिर बनवाया जो की बहुत ही प्रसिद्ध है एक अंग्रेज अधिकारी ने 1908 में सरस्वती मंदिर का नाम भोजशाला लिखा था राजा भोज ने 1000 ईस्वी से 1055 ईसवी तक शासन किया था | राजा भोज का इतिहास |

राजा भोज द्वारा गजनवी से बदला 

राजा भोज ने 1026 में गजनवी पर हमला किया इसके बाद गजनबी क्रूर सिंध रेगिस्तान में भाग गया राजा भोज ने हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना एकत्रित करके गजनवी के पुत्र सालार मसूद को मारकर सोमनाथ का बदला लिया था इसके बाद 1026 -1054 के अवधि के बीच भोपाल से 32 किलोमीटर पर स्थित भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करके मालवा में सोमनाथ मंदिर  की स्थापना कर दी थी

राजा भोज की मृत्यु 

राजा और ने मालवा के नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर आठवीं शताब्दी से लेकर 14 शताब्दी के पूर्वार्ध में एक तक राज्य किया था उनके ही वंश में हुए परमार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 ईस्वी से 1055 ईसवी तक शासन किया था राजा भोज को मृत्यु काल के अंतिम वर्षों में  पराजय का अभियश भोगना पड़ा था गुजरात के राजा चालुक्य ने 1060 में राजा भोज को पराजित कर दिया इसके बाद ही उनकी मृत्यु हो गई | राजा भोज का इतिहास |

राजा भोज और गंगू तेली की कहानी 

इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली” इस कहावत में जो गंगू तेली है वह कोई आदमी नहीं है राजा भोज के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए दक्षिण के 2 राजाओं ने राजा भोज के राज्य में चढ़ाई कर दी थी उनमें से एक राजा थे कलचुरी के राजा कलचुरी नरेश गंगे और दूसरे थे चालुक्य प्रदेश चालू के राजा जिनका नाम था तैलंग दोनों राजाओं ने मिलकर राजा भोज के राज्य पर चढ़ाई कर दी थी

इसके बाद राजा भोज और दोनों राज्यों के बीच में भीषण युद्ध हुआ और  राजा भोज ने दोनों की सेनाओं को धूल चटा दी और दोनों राजा इस युद्ध में बुरी तरह से हार गए थेइसके बाद मध्य प्रदेश, धार और गोपाल की जनता ने यह कहावत बना दी कि “ कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली” उन्होंने गंगे राजा का नाम गंगू और तेलंग का नाम तेली कर दिया था | राजा भोज का इतिहास |

दूसरी कहानी

एक बार राजा भोज का सामना बहुत ही पराक्रमी, बलशाली ,विद्वान राजा  से हुआ था एक बार राजा भोज को खबर मिली कि एक चरवा है जो कि बहुत ही चतुर, विद्वान है उसके विद्वता के चर्चे पूरे भोजराज में फैले हुए हैं लोग उस चरवाहा की बहुत अधिक प्रशंसा करते थे कि वह बहुत ही नीति वान है लोग अपनी समस्याएं लेकर उस चरवाहा के पास जाते थे उसका नाम चंद्रभान था वह उनकी समस्याओं का हल बहुत ही सरल तरीके से निकालता था जो कि कोई भी विद्वान नहीं कर सकता था

जब इस बात का पता राजा भोज को लगा तो उन्होंने  चंद्रभान को अपने दरबार में बुलाया और सभा समाप्त होने के बाद उनसे पूछा कि तुम इन समस्याओं का हल कैसे कर लेते हो इसके बाद चंद्रभान ने कहा कि मैं जब उस टीले पर बैठता हूं तो समस्याओं का हल अपने आप निकलने लगता है यह बात राजा भोज को हजम नहीं हुई उन्होंने उस टीले की खुदाई शुरु करवा दी इसके बाद टीले के नीचे से एक बहुत ही प्रतापबी चमत्कारी सिहासन निकला जो कि राजा  भोज ने भी कभी नहीं देखा था वह सिहासन राजा विक्रमादित्य का था इसके बाद राजा भोज ने वह सिहासन अपने महल में ले जाने का आदेश दिया इसके बाद जब राजा भोज ऊंचे आसन पर बैठने लगे तो उसमें जो 32 कठपुतलियां थी

वह बोल कर कहने लगी कि तुम इसी आसन के योग्य नहीं हो यह देख राजा भोज को बहुत ही आश्चर्य हुआ उन्होंने सोचा कि यह कठपुतलियां बोल कैसे सकती है तब उन्होंने कहा कि “कहां राजा विक्रम और कहां राजा भोज” राजा भोज  उस सिहासन पर कभी भी नहीं बैठ पाए क्योंकि उसमें जो कठपुतलियां थी वह  राजा भोज से बहुत जटिल प्रश्न पूछती थी जिनका जवाब उनके पास नहीं होता था उनका जवाब केवल राजा विक्रमादित्य ही दे सकते थे 

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