देव सूर्य मंदिर का इतिहास, देव सूर्य मंदिर की पौराणिक कथा , मंदिर का निर्माण किसने किया, देव सूर्य महोत्सव
देव सूर्य मंदिर का इतिहास
बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में स्थित है राज्य की धरोहर सूची में शामिल यह मंदिर उमगा नामक पहाड़ी पर स्थित है इसलिए दूर से देखने पर यह और भी आकर्षक नजर आता है ऐतिहासिक सूर्य मंदिर इस मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की और खुलता है यह मंदिर त्रेता काल का है यह मंदिर अपनी भव्यता के साथ साथअपने इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण देव श्री भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया है इस मंदिर के बाहर लिखे हुए संस्कृत श्लोक के अनुसार 12लाख16 हजार वर्ष के त्रेता युग गुजर जाने के बाद राजा इलापुत्र पुरुरवा ऐल ने इस सूर्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया था शिलालेख से पता चलता है कि सन 2014 ईस्वी में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को 150014 वर्ष पूरे हो गए हैं
दुनिया का एकमात्र पश्चिमी मुखी इस मंदिर में भगवान सूर्य देव की मूर्ति तीनों रूपों में विद्यमान है भगवान सूर्य की मूर्तियां तीनों रूपों में स्थापित है सूर्य देव की मूर्तियां उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल रूप में स्थापित की गई है यह मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है यह मंदिर पूर्वामुख ना होकर पश्चिमाभीमुख है त्रेता कालीन इस ऐतिहासिक सूर्य मंदिर को देवार्क भी कहते हैं इस मंदिर का निर्माण बिना चुना सीमेंट के आयताकार, वर्गाकार और गोलाकार आकार में पत्थरों को काटकर किया गया है इस मंदिर की भव्यता को देखकर व्यक्ति आकर्षित हो जाता है
इस मंदिर का निर्माण 9 वीं सदी में किया गया था यह मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलता जुलता है 100 फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर दो भागों में बना हुआ है पहला गर्भ ग्रह है जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर बना हुआ है और शिखर के ऊपर सोने का कलश बना हुआ है इस मंदिर का दूसरा भाग मुख्य मंडप है जिसके ऊपर पिरामिड पिरामिडनुमा छत है और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तंभ है यह मंदिर हर मनोकामना पूर्ण करने वाला है | देव सूर्य मंदिर का इतिहास |
देव सूर्य मंदिर की पौराणिक कथा
एक बार एल नाम के एक राजा थे जो किसी ऋषि के श्राप के कारण सफेदकुष्ठ रोग से पीड़ित थे वह एक बार शिकार करने के लिए देव प्रांत वन में पहुंचे उस वन में वह अपना रास्ता भटक गए थे इसके बाद भूखे प्यासे उस राजा को एक सरोवर दिखाई पड़ा इसके बाद वह राजा सरोवर के नजदीक पानी पीने के लिए गए और उन्होंने अंजलि में भरकर पानी पिया इसके बाद पानी पीते समय उस राजा ने देखा कि उनके शरीर पर जहां भी पानी गिरा है वहां पर वह सफेद कुष्ठ के दाग नष्ट हो गए थे इसके बाद वह राजा प्रसन्न होकर उस गंदे पानी में स्नान करने लगे स्नान करने के बाद उस राजा का सफेद कुष्ठ रोग पूरी तरह से खत्म हो गया था
उनका शरीर एक सामान्य व्यक्ति की तरह हो गया था इसके बाद खुश होकर उस राजा ने इसी वन में रात्रि को विश्राम करने का निर्णय लिया जब राजा रात्रि को विश्राम कर रहे थे तब उन्हें स्वपन आया कि इस सरोवर में भगवान भास्कर की प्रतिमा दबी हुई है उस प्रतिमा को निकालकर मंदिर बनवाने और उसको प्रतिष्ठित करने का आदेश उन्हें सपने में प्राप्त हुआ इसके बाद राजा एल ने उस मूर्ति को निकाल कर उसको स्थापित करने का काम किया और सूर्य कुंड का निर्माण करवाया था | देव सूर्य मंदिर का इतिहास |
मंदिर का निर्माण किसने किया
देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में यह मंदिर बनाया था देव के सूर्य मंदिर में विजय चिन्ह और कलश अंकित है मंदिर की स्थापत्य कला से यह प्रतीत होता है कि इसमें नागर शैली का प्रयोग किया गया है यह मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है यह दुनिया का एक ऐसा मंदिर है जिसका मुख्य पश्चिम की ओर है बाकी सभी सूर्य मंदिरों का मुख पूर्व की ओर है इस मंदिर में अस्ताचल की किरणें सूर्य का अभिषेक करती है
मंदिर ने क्यों बदली दिशा
एक बार औरंगजेब मूर्तियों वह मंदिरों को तोड़ता हुआ वह यहां पहुंचा तो देव मंदिर के पुजारियों ने उससे बहुत ही विनती की कि वह यह मंदिर ना तोड़े तब उसने हंस कर कहा कि यदि तुम्हारे देवता में इतनी ही शक्ति है तो मैं आज रात का समय देता हूं यदि इसका मुख पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाएगा तो मैं इस मंदिर को नहीं तोडूंगा इसके बाद देव मंदिर के पुजारियों ने इसे सिर झुका कर इसे स्वीकार कर लिया जब उन्होंने सुबह उठकर देखा कि सच में मंदिर का मुख पूर्व से पश्चिम की ओर हो गया था उसके बाद इस मंदिर का मुख पश्चिम की ओर है कार्तिक मास के छठ को यहां विभिन्न स्थानों से आकर लोग भगवान भास्कर की आराधना करते हैं | देव सूर्य मंदिर का इतिहास |
देव सूर्य महोत्सव
देव सूर्य महोत्सव के नाम से विश्व प्रख्यात सूर्य जन्म महोत्सव 1998 से लगातार प्रशासनिक स्तर पर दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव आयोजन किया जाता है जिसे हर वर्ष सूर्य देव के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है यह बसंत पंचमी के दूसरे दिन सप्तमी को पूरे शहर वासी नमक को त्याग कर बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं इस दिन के अवसर पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है इस दिन सूर्य कुंड में भव्य गंगा आरती भी होती है जिसे देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं इसी दिन देव शहर वर्ष की पहली दिवाली मनाता है | देव सूर्य मंदिर का इतिहास |