रानी कमलापति का इतिहास, रानी कमलापति का जन्म, रानी कमलापति का महल का निर्माण, रानी कमलापति की मृत्यु, गिन्नौरगढ़ का किला
रानी कमलापति का इतिहास
भोपाल शहर में बहुत ही खूबसूरत झील हैं यह झीले जितनी खूबसूरत है उतनी ही रहस्यमई भी है भोपाल में मौजूद बड़े तालाब और छोटे तालाब के बीच में एक सात मंजिला महल है जो की रानी कमलापति का महल था भोपाल में हवाई अड्डे जैसी सुविधाओं वाला रेलवे स्टेशन बनकर तैयार हो गया है और इसका उद्घाटन 15 नवंबर 2021 को पीएम मोदी ने किया है पहले इस स्टेशन को हबीबगंज स्टेशन के नाम से जाना जाता था परंतु अब इसका नाम बदलकर ‘रानी कमलापति’ कर दिया गया है अब यह स्टेशन रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा यह भोपाल की अंतिम हिंदू रानी थी | रानी कमलापति का इतिहास |
रानी कमलापति का जन्म
रानी कमलापति का जन्म लगभग 1700 ईसवी में माना जाता है रानी कमलापति का जन्म गोंड परिवार में हुआ था रानी कमलापति को घुड़सवारी और तलवारबाजी में महारत हासिल थी रानी कमलापति के पिताजी का नाम कृपाल सिंह था रानी कमलापति ने अपने पिताजी के साथ कई युद्धों में हिस्सा लिया था और आक्रमणकारियों से अपने राज्य की रक्षा की थी
उस समय गोंड सम राज्य महाराष्ट्र से लेकर तेलंगाना,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा तक फैला हुआ था इन इलाकों में जो लोग रहते थे उन्हें गोंड कहा जाता था इनकी पहचान मध्य भारत से जुड़ी हुई थी जो मूल रूप से आदिवासी थे रानी कमलापति भारत की एक आदिवासी रानी थी रानी कमलापति को मध्यप्रदेश की पद्मावती भी कह सकते हैं जैसे पद्मावती ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जोर किया था ठीक वैसे ही रानी कमलापति ने भी जल समाधि ली थी सोलवीं सदी में समूचे भोपाल क्षेत्र पर हिंदू गोंड राजाओं का ही शासन हुआ करता था रानी कमलापति का विवाह गिन्नौरगढ़ के राजा ‘सूरजमल’ के बेटे निजाम शाह से हुआ था | रानी कमलापति का इतिहास |
रानी कमलापति का महल का निर्माण
निजाम शाह ने भोपाल में 17वीं शताब्दी में सात मंजिला महल का निर्माण करवाया था यह महल उनके और रानी कमलापति के प्रेम की निशानी था कमलापति गोंड राजा निजाम शाह की पत्नी थी भोपाल के पास गिन्नौरगढ़ से राज्य का संचालन होता था फिर गद्दी का मोह कुटुंबयों में आया निजाम शाह का एक भतीजा था आलम शाह वह गिन्नौरगढ़ को हड़पना चाहता था वह लड़ तो सकता नहीं था ,इसलिए उसने दूसरी रणनीति अपनाई आलम शाह की निजाम शाह की संपत्ति पर नजर थी और साथ ही वह रानी कमलापति को अपनी रानी बनाना चाहता था परंतु रानी ने इस बात का विरोध किया
इसके बाद आलम शाह ने निजाम साहब को खाने पर बुलाया और उनके खाने में जहर मिलाकर उनको मार डाला इसके बाद रानी कमलापति अपने बेटे नवलशाह की रक्षा के लिए बेटे को लेकर गिन्नौरगढ़ से भोपाल आ गई भोपाल के छोटे तालाब के पास रानी का महल था रानी ने अफगानिस्तान से आए हुए मोहम्मद खान से अपने पति के हत्यारे आलम शाह को सबक सिखाने की बात कही, मोहम्मद खान ₹100000 के बदले यह काम करने को तैयार हुआ और उसने आलम शाह को मौत के घाट उतार दिया परंतु रानी के पास उस समय धन की पूरी व्यवस्था न हो पाने के कारण रानी ने भोपाल का एक हिस्सा मोहम्मद खान को दे दिया
मोहम्मद खान और नवल शाह के बीच युद्ध
कुछ समय बाद मोहम्मद खान की भी स्वार्थी और विश्वासघाती प्रवृत्ति बड़ी होकर सामने आ गई उसकी नियत पूरे भोपाल पर कब्जा करने की थी और इससे भी बुरी बात यह थी कि रानी पर भी उसकी कुदृष्टि थी रानी कमलापति बहुत ही खूबसूरत रानी थी इसके बाद रानी के चिरंजीवी नवल शाह और मोहम्मद खान के बीच भयंकर युद्ध हुआ यह युद्ध जिस घाटी पर हुआ था वह घाटी लाल हो गई भोपाल में आज भी उसे लालघाटी के नाम से जाना जाता है रानी माता की मान रक्षा के लिए अन्य सैनिकों के साथ नवल शाह का भी बलिदान हो गया | रानी कमलापति का इतिहास |
रानी कमलापति की मृत्यु
युद्ध के बाद केवल दो लोग बचे उन्होंने लालघाटी से धूआ छोड़ा महल में बैठी रानी इसका अर्थ समझ गई उन्होंने अपने निजी सेवकों को तालाब की नहर का रास्ता अपने महल की ओर मोड़ने के आदेश दिए रानी अपने संपूर्ण वैभव के साथ महल के सबसे नीचे वाले तल में जाकर बैठ गई और अपने शील की रक्षा के लिए जल समाधि ले ली इसे जल समाधि की जगह जल जोहर भी कह सकते हैं1723 में रानी कमलापति की मृत्यु हो गई जैसे रानी पद्मिनी के साथ है अनगिनत महिलाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया वैसे ही रानी कमलापति ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए अपने आप को जल को समर्पित कर दिया आज भी रानी के महल की 5 मंजिले पानी में डूबी हुई है केवल 2 मंजिले ही पानी से बाहर है
गिन्नौरगढ़ का किला
भोपाल से 65 किलोमीटर दूरी पर स्थित ऐतिहासिक गिन्नौरगढ़ का किला है जो अशर्फी पहाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है इस किले को बनाने के लिए अन्य स्थान से मिट्टी मंगाई गई थी मिट्टी की डलिया लाने वाले प्रत्येक मजदूर को एक अशर्फी दी जाती थी किले का निर्माण विद्यांचल की पहाड़ियों के मध्य से 1975 फीट ऊंचाई पर किया गया है प्रकृति की गोद में बसे और हरियाली से घिरे इस किले की संरचना अद्भुत है इस किले का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने किया था इसके बाद निजाम शाह ने इसे अपनी राजधानी बनाया था और शासन की स्थापना निजाम शाह ने की थी 800वर्ष पहले यह ऐतिहासिक किला अस्तित्व में आया
यहां पर परमार और गोंड शासकों के बाद मुगल तथा पठानों ने भी शासन किया था प्राकृतिक वन संपदा से परिपूर्ण इस स्थान पर जंगली जानवर देखे जा सकते हैं किले और उसके आसपास 25 कुएं बावड़ी और 4 छोटे तालाब है इतना होने के बाद भी यहां पर पानी भरपूर मात्रा में है किले की दीवार 82 फीट ऊंची और 20 फीट चौड़ी है यहां पहाड़ी पर काले और हरे पत्थर बिखरे हुए हैं यहां के महल आकर्षक स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है यहां पर सुंदर बावड़ी ,बादल, महल जैसे महत्वपूर्ण महल देखने के योग्य है
किले के नीचे सदियों पुरानी एक गुफा है इस गुफा में शीतल जलकुंड है, जिसकी वजह से यहां गर्मियों में भी ठंडक बनी रहती है इस किले को तीन हिस्सों में बांटा गया है पहला भाग किले से 3 मील दूर का एरिया है, जिसे बाहर की घेराबंदी के नाम से जाना जाता है किले का दूसरा भाग 2 मिल दूर का इलाका है, जहां कभी बस्ती आबाद थी यहीं पर एक तलाब भी है तीसरे भाग में किला है इसके मुख्य द्वार के पास रानी महल है जिसे निजाम शाह ने अपनी पत्नियों के लिए बनवाया था | रानी कमलापति का इतिहास |