शुकदेव मुनि का इतिहास, शुकदेव मुनि की पौराणिक कथा, राजा परीक्षित को सुनाई थी यह कथा
शुकदेव मुनि का इतिहास
शुकदेव महाभारत काल के मुनि थे वह वेदव्यास जी के पुत्र थे इनकी माता जी का नाम वटिका था वह बचपन में ही ज्ञान प्राप्ति के लिए वन में चले गए थे इन्होंने ही राजा परीक्षित को श्रीमद भगवत पुराण की कथा सुनाई थी शुकदेव जी ने वेदव्यास जी से महाभारत भी पढ़ा था और उसे देवताओं को सुनाया था ऋषि शुकदेव अपनी माता के गर्भ में 12 वर्ष तक रहे थे इन्होंने अपनी माता के गर्भ में ही तपस्या करना आरंभ कर दिया था
शुकदेव मुनि पूर्व जन्म में एक तोता थे उन्होंने छल से भगवान शिव से अमर कथा सुन ली थी शुकदेव मुनि बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे महर्षि सुखदेव को वेद, उपनिषद ,दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान था सुखदेव मुनि के राजा जनक गुरु थे सुखदेव मुनि की पत्नी का नाम पीवरी था जिनसे उन्हें 5 पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई थी इनके पुत्र भी अपने पिता की तरह विद्वान थे. जिस जगह सुखदेव महाराज ब्रह्मलीन हुए थे, वर्तमान समय में वह जगह हरियाणा में कैथल के गांव सजुमा में स्थित है | शुकदेव मुनि का इतिहास |
शुकदेव मुनि की पौराणिक कथा
एक बार ब्रह्मा जी ने एक सभा बुलाई और उसमें सभी देवी देवता पहुंचे ब्रह्मा जी ने सभी से पूछा कि दुनिया की सबसे जरूरी चीज क्या है सभी ने अपने अपने ढंग से प्रश्न का उत्तर दिया इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि दुनिया की सबसे जरूरी चीज है निस्वार्थ प्रेम यानी कि जिस में कोई स्वार्थ ना हो इसके बाद देवता कहते हैं कि यदि निस्वार्थ प्रेम है, तो वह केवल शिव और पार्वती में है इसके बाद नारद जी कहते हैं कि ऐसा नहीं है
मैं उन दोनों के बीच में झगड़ा करवा सकता हूं पर उनकी बात पर कोई भी यकीन नहीं करता है फिर 1 दिन माता पार्वती अकेली बैठी हुई थी और भगवान शिव बाहर कहीं गए हुए थे तब वहां नारद जी पहुंचे और उन्होंने माता पार्वती से भगवान शिव के बारे में पूछा कि भगवान शिव कहां गए हुए हैं फिर माता पार्वती ने जवाब दिया कि वह किसी काम से बाहर गए हुए हैं आपको उनसे क्या काम है फिर नारद जी बोले मुझे भगवान शिव से अमर कथा सुननी थी उनकी बात को सुनकर माता पार्वती हैरान रह गई और उन्होंने पूछा कि भगवान शिव ने कभी मुझे तो अमर कथा नहीं सुनाई यह क्या होती है
इसके बाद नारद जी बोले यह कथा सुनने के बाद व्यक्ति अमर हो जाता है भगवान शिव हर किसी को यह कथा नहीं सुनाते हैं जिनसे वह सबसे अधिक प्रेम करते हैं उन्हें ही वह अमर कथा सुनाते हैं फिर कुछ समय के बाद भगवान शिव वापस आते हैं और पार्वती उनसे गुस्सा होती है और अमर कथा सुनने के लिए जिद करने लगती है इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती को एक सुनसान जगह पर ले जाते हैं ताकि कोई और वह कथा ना सुन ले वहां जाने के बाद भगवान शिव एक तालि बजाते हैं वहां पर जितने भी जीव जंतु होते हैं
वहां से भाग जाते हैं परंतु वही पेड़ पर एक तोते का घोंसला होता है और उसमें एक अंडा होता है वह कथा शुरू होने से पहले जन्म ले लेता है इसके बाद भगवान शिव पार्वती को कथा सुनाना आरंभ करते हैं कथा सुनते समय माता पार्वती को नींद आ जाती है तब उनकी जगह तोते का बच्चा ‘हुकारे’ भरने लगता है और वह पूरी कथा सुन लेता है कथा समाप्त हो जाती है तब भगवान शिव देखते हैं कि माता पार्वती तो सोई हुई है तो उनकी जगह हूकारे कौन भर रहा था
तब वह तोता डर कर भाग जाता है इसके बाद महादेव उस तोते को मारने के लिए उसके पीछे दौड़ते हैं फिर वह तोता महर्षि वेदव्यास के आश्रम में छुप जाता है और उनकी पत्नी के मुख से वह गर्भ में चला जाता है इसके बाद महादेव महर्षि वेदव्यास के आश्रम में आते हैं और उन्हें बताते हैं कि एक चोर ने चोरी से अमर कथा सुन ली है और वह यहां आकर छुप गया है महादेव कहते हैं कि मैं उसे मार दूंगा तब महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि यदि तुम उसे मार दोगे तो तुम्हारी अमर कथा झूठी हो जाएगी फिर महादेव कहते हैं कि तो मैं उसे बंदी बना लूंगा फिर महादेव 1 वर्ष तक उसके बाहर आने का इंतजार करते हैं परंतु वह बच्चा बाहर नहीं आता
महर्षि वेदव्यास महादेव को उस बच्चे को माफ करने के लिए कहते हैं और महादेव उस बच्चे को माफ कर कर वहां से चले जाते हैं परंतु वह बच्चा 12 वर्ष तक बाहर नहीं आता है और मां के गर्भ में ही तपस्या करता है एक दिन महर्षि वेदव्यास की पत्नी को गर्भ में ज्यादा ही तकलीफ होने लगती है तब भगवान विष्णु वहां आते हैं भगवान विष्णु ने उस बच्चे से पूछा कि तुम बाहर क्यों नहीं आते हो तब उसने जवाब दिया कि मुझे संसार की मोह माया में नहीं फंसना है यदि आप मोह माया रोक दे तो मैं बाहर आ जाऊंगा इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि मैं कुछ समय के लिए मायाजाल हटा दूंगा इसके बाद मुनि शुकदेव का जन्म होता है और व जन्म लेने के बाद तपस्या करने के लिए वन में चले जाते हैं | शुकदेव मुनि का इतिहास |
राजा परीक्षित को सुनाई थी यह कथा
जब एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलने के लिए जंगल में गए अंधेरा होने के कारण वह जंगल में अपना रास्ता भटक गए थे और वह भटकते हुए एक ऋषि के पास पहुंचे वह ऋषि अपनी साधना में लीन थे राजा परीक्षित का भूख और प्यास के कारण बुरा हाल हो रहा था उन्होंने उस ऋषि से पानी मांगा तपस्या में लीन होने के कारण उस देशों ने उनकी बात को नहीं सुना फिर राजा ने क्रोधित होकर वहां पर मरे हुए सांप को ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से क्रोधित होकर चले गए
यह दृश्य उस ऋषि का पुत्र देख रहा था और उसने राजा को श्राप दिया कि साथ में दिन आप की मृत्यु तक्षक सांप के काटने से हो जाएगी जब उस ऋषि आंखें खुली तो उसके बेटे ने उसे सारा वृत्तांत सुनाया फिर वह ऋषि राजा परीक्षित के पास गए उन्होंने अपने बेटे के द्वारा दिए गए श्राप की माफी मांगी इसके बाद राजा परीक्षित ने इस श्राप से मुक्त होने के लिए उन्हें क्या करना है इसके बारे में उस ऋषि से पूछा तब उस ऋषि ने कहा कि आपको सुखदेव मुनि ही इस श्राप से मुक्त करा सकते हैं इसके बाद नारद मुनि और कुछ ऋषि उनके साथ है ऋषि सुखदेव के आश्रम में पहुंचे और उन्होंने राजा के साथ हुई घटना का सारा वृतांत होने सुनाया
फिर मुनि सुखदेव राजा परीक्षित के पास आए इसके बाद राजा परीक्षित ने सुखदेव मुनि का अतिथि सत्कार किया इसके बाद ऋषि सुखदेव ने प्रसन्न होकर राजा परीक्षित से कहा मोक्ष की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को भगवान श्री हरि का यशोगान करना चाहिए उनके कथा अमृत को सुनना चाहिए यदि व्यक्ति मरते समय श्रीहरि का ध्यान कर ले तो वह मर कर श्री हरि का रूप धारण करता है इसके बाद ऋषि सुखदेव ने राजा परीक्षित से कहा कि अपने मन को एकाग्र चित्त करके भगवान के ध्यान में लगा लो इसके बाद राजा परीक्षित ने महर्षि सुखदेव से श्री हरि कथा अमृत पान कराने का अनुरोध किया फिर ऋषि सुखदेव ने उन्हें 1 सप्ताह में ही श्रीमद भगवत कथा सुना दी थी और उसे सुनने के बाद राजा को बहुत सांत्वना मिली और अंत में राजा परीक्षित को बैकुंठ की प्राप्ति हुई
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