पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी, पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म , पुरुषोत्तम टंडन दास जी की मृत्यु, स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका,
पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी
पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राज नायक हिंदी के अनन्य सेवक, कर्मठ, पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे पुरुषोत्तम दास टंडन 1950 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नई चेतना, नई लहर, नई क्रांति पैदा करने वाला कर्म योगी कहा गया वे जनसामान्य में ‘राजश्री’ के नाम से प्रसिद्ध हुए | पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी |
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था इनके पिताजी का नाम श्री शालिग्राम टंडन था वह इलाहाबाद के अकाउंटेंट जनरल ऑफिस में क्लर्क थे इनके पिता जी संत प्रवृत्ति के थे और इनका प्रभाव टंडनदास पर भी पड़ा था टंडन जी शुरू से ही लिखने पढ़ने में बहुत तेज थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय सिटी एंग्लो वर्नाकुलर विद्यालय में हुई
1894 में उन्होंने इसी विद्यालय से मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की इसी वर्ष उनकी बड़ी बहन तुलसा देवी का स्वर्गवास हो गया था इसके बाद 1897 में उनका विवाह मुरादाबाद निवासी ‘नरोत्तम दास खन्ना’ की पुत्री चंद्रमुखी देवी के साथ हो गया वे क्रिकेट और शतरंज के बहुत ही अच्छे खिलाड़ी थे इसके साथ ही उनकी राजनीति में भी गहरी दिलचस्पी थी आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मयूर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु अपने क्रांतिकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें 1901में वहां से निष्कासित कर दिया गया सन 1903 में उनके पिताजी का निधन हो गया इन सब कठिनाइयों को पार करते हुए उन्होंने 1904 में बी.ए. कर लिया था
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
1905 में उनके राजनीतिक जीवन का प्रारंभ हुआ उस समय उन्होंने ‘बंगभंग आंदोलन’ से प्रभावित होकर स्वदेशी का व्रत धारण किया विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में चीनी खाना छोड़ दिया, और गोपाल कृष्ण गोखले के अंगरक्षक के रूप में सन 1906 कोलकाता में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया था इस बीच उनका लेखन भी प्रारंभ हो चुका था और अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होने लगी थी
यही समय था जब उनकी प्रसिद्ध रचना ‘बंदर सभा महाकाव्य’ हिंदी प्रदीप में प्रकाशित हुई इन सब कामों के बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और1906में एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद वकालत शुरू कर दी इसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए 1907 में इतिहास में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और इलाहाबाद ‘उच्च न्यायालय’ में उस समय के नामी वकील “तेज बहादुर सप्रू” के जूनियर बन गए | पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी |
पुरुषोत्तम टंडन दास जी का कार्यक्षेत्र
पुरुषोत्तम टंडन अत्यंत मेधावी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उनका कार्यक्षेत्र तीन भागों में बटा हुआ था- स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य और समाज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में टंडन जी ने एक योद्धा की भूमिका का निर्वाह कियाअपने विद्यार्थी जीवन में 1899 से ही कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
सन 1914 में उन्हें नाभा रियासत के विधि सलाहकार के रूप में मनोनीत किया गया था इसके बाद सन् 1919 में वे इलाहाबाद नगर पालिका के चेयरमैन बनाए गए थे जब 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तब वह गांधीजी के आह्वान पर अपनी वकालत को छोड़कर इस संग्राम में कूद पड़े इसके बाद सन 1923 में गोरखपुर में कांग्रेस का प्रांतीय अधिवेशन हुआ टंडन जी को इसका अध्यक्ष बनाया गया 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के सिलसिले में बस्ती में गिरफ्तार हुए और कारावास का दंड मिला जब 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन से गांधीजी के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था
उनमें “जवाहरलाल नेहरू’ के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे इसके बाद सन् 1956 में टंडन जी को प्रांतीय विधानसभा का सदस्य चुना गया सन् 1950 में उन्हें “अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी” का अध्यक्ष बनाया गया वह बहुत ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे किसी बात पर विवाद हो जाने पर उन्होंने ‘अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी’ के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया टंडन जी को उत्तर प्रदेश में कृषक आंदोलन का जन्मदाता माना जाता है सन 1934 में उन्होंने “केंद्रीय किसान संगठन” की स्थापना की थीटंडन जी ने बिहार किसान आंदोलन के साथ सहानुभूति रखते हुए उनके विकास के अनेक कार्य किए उन्होंने संगठन का काम अपने हाथों में लिया था
किसान आंदोलन के सिलसिले में उन्हें जेल की सजा भी मिली थी 29 जुलाई 1936 को विधानसभा के समस्त सदस्यों ने एक स्वर में टंडन जी को अध्यक्ष चुना 1937 में धारा सभाओं के चुनाव हुए इन चुनाव में से 11 प्रांतों में से 7 में कांग्रेस को बहुमत मिला उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस को भारी सफलता मिली और इसका पूरा श्रेय टंडन जी को था 18 अगस्त 1942 को “भारत छोड़ो आंदोलन” के दौरान पुरुषोत्तम दास टंडन को जेल की सजा हुई थी उन्हें बरेली जेल में रखा गया किंतु स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया यह उनकी अंतिम सातवीं जेल यात्रा थी इसके बाद सन् 1948 में प्रसिद्ध संत देवरा बाबा ने उन्हें राज्यश्री की उपाधि प्रदान की थी
हिंदी के विकास के लिए जीवन भर लगे रहे उन्होंने ही इलाहाबाद में “हिंदी विद्यापीठ” की स्थापना की थी टंडन उसके प्रथम आचार्य थेटंडन जी ने अनेक साहसी तथा ऐतिहासिक कार्य किए इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले पत्र अभ्युदय’ के संपादक भी रहे सन 1952 में उन्हें इलाहाबाद क्षेत्र से लोकसभा का सदस्य चुना गया था 1957 में टंडन जी राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए इस प्रकार वे आजीवन भारतीय राजनीति में सक्रिय रहकर उसे दिशा प्रदान करते रहे | पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी |
टंडन दास जी की हिंदी सेवा
टंडन दास जी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता थे स्वतंत्रता प्राप्त करना उनका पहला साध्य था वह हिंदी को देश की आजादी के पहले आजादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आजादी मिलने के बाद आजादी को बनाए रखने का चंदन दास जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में हिंदी के लेक्चर के रूप में कार्य किया उस समय अटल बिहारी वाजपेई विक्टोरिया कॉलेज के छात्र हुआ करते थे
टंडन जी ने कहा था कि हिंदी के पक्ष को सफल करने के उद्देश्य से ही मैंने कांग्रेस जैसी संस्था में प्रवेश किया क्योंकि मेरे हृदय पर हिंदी का ही प्रभाव सबसे अधिक था और मैंने उसे ही अपने जीवन का सबसे महान व्रत बनाया टंडन जी ने हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए “हिंदी विद्यापीठ प्रयाग” की स्थापना की थी इस पीठ की स्थापना का उद्देश्य हिंदी शिक्षा का प्रसार और अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त करना था सम्मेलन हिंदी की अनेक परीक्षाएं संपन्न करना था इन परीक्षाओं से दक्षिण में भी हिंदी का प्रचार प्रसार हुआ सम्मेलन के इस कार्य का प्रभाव महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में भी पड़ा
अनेक महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में हिंदी के पाठ्यक्रम को मान्यता मिलीटंडन जी सत्य और न्याय के लिए किसी से भी लोहा ले सकते थे वह अपने सिद्धांतों पर चट्टान की तरह अडिग एवं स्थिर रहते थे हिंदी को राष्ट्रभाषा और ‘वंदे मातरम” को राष्ट्रीय गीत स्वीकृत कराने के लिए टंडन जी ने अपने सहयोगियों के साथ एक और अभियान चलाया था उन्होंने करोड़ों लोगों के हस्ताक्षर और समर्थन पत्र भी एकत्रित किए थे 27 अप्रैल 1961 को उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया
पुरुषोत्तम टंडन दास जी की मृत्यु
1 जुलाई 1962 को इस महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक का निधन हो गया पुरुषोत्तम दास उच्च कोटि के रचनाकार थे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी यों में उनकी गणना की जाती है उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है वह परम स्नेही उदार और करुणा की मूर्ति होते हुए भी इस्पाती व्यक्तित्व के धारक थे | पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी |