भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी, एनी बेसेंट का जन्म, एनी बेसेंट का विवाह, सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना, एनी बेसेंट का राजनीतिक जीवन, एनी बेसेंट की मृत्यु
भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी
एनी बेसेंट एक प्रसिद्ध समाज सुधारक थी जिन्होंने इंग्लैंड और भारत दोनों देशों के लिए एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया था भारत में महिलाओं के अधिकारों के बारे में बोलते हुए उन्होंने अपने महान और निरंतर सामाजिक कार्यों के माध्यम से खुद को सर्वश्रेष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक के रूप में साबित किया एनी ने भारत के स्वतंत्रता के लिए अभियान पर कड़ी मेहनत की और भारत की स्वतंत्रता की मांग करते हुए विभिन्न पत्र और लेख लिखें थे | भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी |
एनी बेसेंट का जन्म
एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 में लंदन के एक मध्यमवर्गीय परिवार में एनी वुड के रूप में हुआ था वह आयरिश मूल की थीइनके पिता जी का नाम विलियम वुड था और इनकी माता जी का नाम “एमिली मोरिस” था जब वह केवल 5 साल की थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया था परिवार के पालन-पोषण के लिए एनी की मां ने हैरो में लड़कों के लिए एक छात्रावास खोला अल्पायु में ही उन्होंने पूरे यूरोप की यात्रा की जिससे उनके दृष्टिकोण में वृद्धि हुई
एनी बेसेंट का विवाह
एनी बेसेंट का विवाह 1867 में एक फ्रेंक बेसेंट नामक एक पादरी से हुआ था ईसाई धर्म को मानने वाले फ्रेंक से शादी करने के बाद एनी ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गई थी लेकिन शादी के कुछ ही साल बाद एनी का इसाई धर्म पर से विश्वास उठने लगा था वे उनके आस्था पर भी सवाल उठाने लगी थी और साथ ही इस समुदाय से वह अलग भी हो गई और इस तरह से भी इस तरह में हैअपने विचारों के चलते अधिक कट्टरपंथी बन गई थी
इस कट्टरपंथी विचारधारा और धर्म को लेकर आने और उनके पति के बीच मतभेद होने लगे जिसके कारण उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा समय तक नहीं चल सका और वह 1873 में कानूनी तौर पर अलग हो गए इनको विवाह के पश्चात दो संतान की प्राप्ति हुई अपने पति से अलग होने के बाद एनी ने ना केवल लंबे समय से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं बल्कि पारंपरिक सोच पर भी सवाल उठाने शुरू किए अपने पति के अलग होने के बाद समाज के एक नेता चार्ल्स ब्रैडलाफ एनी के सबसे अच्छे दोस्त बने और उन्होंने कई मुद्दों पर उनके साथ मिलकर काम किया एनी कट्टरपंथी विचारों के लिए व्यापक रूप से पहचाने जाने लगी | भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी |
थियोसॉफिस्ट की घोषणा
सन 1882 में वे थियोसॉफिकल सोसायटी के संस्थापिका मैडम ब्लावत्सकी के संपर्क में आई और पूर्ण रूप से संत संस्कारों वाली महिला बन गई 1889 में उन्होंने खुद को “थियोसॉफिस्ट” घोषित किया और शेष जीवन भारत की सेवा में अर्पित करने की घोषणा की है नवंबर1893 को वह वृहद कार्यक्रम के साथ भारत आई और सांस्कृतिक नगरी काशी को अपना केंद्र बनाया एनी बेसेंट हिंदू धर्म में आस्था रखती थी इनका कहना था ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि मेरा अगला जन्म हिंदू परिवार में हो
उन्होंने चर्च पर हमला करते हुए उसके काम करने के तरीकों और लोगों की जिंदगियों को बस में करने के बारे में लिखना शुरू किया उन्होंने विशेष रूप से धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने के लिए इंग्लैंड के एक चर्च की प्रतिष्ठा पर तीखे हमले किए एनी बेसेंट ने महिलाओं के अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता, गर्भनिरोध ,फेबियन समाजवाद और मजदूरों के हक के लिए लड़ाई लड़ी वह भगवान से जुड़ने के थीओसोफी के तरीके से काफी प्रभावित हुई थियोसॉफिकल सोसायटी जाति, रंग वर्ग में भेदभाव के खिलाफ थी और सर्व भौमिक भाईचारे की सलाह देती थी मानवता की ज्यादा से ज्यादा सेवा करना उसका परम उद्देश्य था
सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना
भारतीय थियोसोफिकल सोसायटी के एक सदस्य के मदद से वह वर्ष 1893 में भारत पहुंची उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया जिसके कारण उन्हें भारत और मध्यमवर्गीय भारतीयों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जो कि ब्रिटिश शासन और इसकी शिक्षा की व्यवस्था से काफी पीड़ित थे इन्होंने काशी के तत्कालीन नरेश महाराजा “प्रभु नारायण सिंह” से भेंट की और उनसे भूमि प्राप्त कर 1898 ईसवी में बनारस में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की जो बाद में “मदन मोहन मालवीय” के प्रयासों से 1916 ईस्वी में बनारस “हिंदू विश्वविद्यालय” बना एनी बेसेंट इस बात को समझ चुकी थी कि भारत में सुधार राजनीतिक क्षेत्र से ही संभव है इसलिए इन्होंने 1914 ईस्वी में राजनीति में प्रवेश किया यह भारत को अपनी मातृभूमि मानती थी इसलिए इन्होंने कांग्रेस को आयरलैंड की तर्ज पर होमरूल लीग आंदोलन चलाने का सुझाव दिया जिसे कांग्रेस द्वारा अस्वीकार कर दिया गया | भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी |
एनी बेसेंट का राजनीतिक जीवन
वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुई और वर्ष 1916 में होमरूल लीग की स्थापना की,जिसका उद्देश्य भारतीयों द्वारा स्वशासन की मांग था सन 1917 में वह भारतीय “राष्ट्रीय कांग्रेस” की अध्यक्ष बनी इस पद को ग्रहण करने वाली वह प्रथम महिला थी एनी बेसेंट ने न्यू इंडिया नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और इस विद्रोह के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा
1924 में गांधी जी के नेतृत्व में बेलगांव में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ रेल की लंबी यात्रा का डॉक्टर पेशेंट जब बेलगांव पहुंची तो अधिवेशन प्रारंभ हो चुका था तब गांधी जी सहित उपस्थित जनसमूह उनके स्वागत में उठ कर खड़ा हो गया किंतु वह अधिवेशन में अध्यक्ष के स्थान को छोड़कर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बैठी गांधी जी ने अधिवेशन की कार्यवाही रोक कर एनी बेसेंट से आग्रह किया कि वह अपने विचार व्यक्त करें अपने भाषण में उन्होंने कहा अब मेरी उम्र ज्यादा हो गई इसलिए मैं सक्रिय राजनीति से संयास ले रही हूं उसके बाद भी वह भारत में शिक्षा के प्रचार-प्रसार और समाज सुधार संबंधी कार्यों में तन मन से लगी रही गांधीजी के भारतीय राष्ट्रीय मंच पर आने के बाद महात्मा गांधी और एनी बेसेंट के बीच मतभेद पैदा हुए जिस वजह से वह धीरे धीरे राजनीति से अलग हो गई | भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी |
एनी बेसेंट की मृत्यु
सन 1931 में वह गंभीर रूप से बीमार हो गई थी 2 साल तक बीमार रहने के बाद उन्होंने 20 सितंबर 1933 को ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी के अडआर में अंतिम सांस ली थी एनी बेसेंट एक महान और साहसी महिला थी जिन्हें एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता था क्योंकि उन्होंने लोगों को उनकी वास्तविक स्वतंत्रता दिलाने में मदद करने के लिए कई युद्ध लड़े थे
वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुई थी और उन्होंने भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने का अभियान शुरू किया एनी भारतीय लोगों की संस्कृति परंपरा को काफी पसंद करती थी और उनकी मान्यताओं को समझती थी इसलिए उन्होंने भारत आने के बाद भारत को अपना घर बना लिया और अपने बुलंद भाषण से भारतीय लोगों को गहरी नींद से जगाना शुरू कर दिया था | भारतीय एनी बेसेंट की जीवनी |