जानी चोर का इतिहास, जानी चोर द्वारा सुनार के घर चोरी , जानी चोर द्वारा कोतवाल के घर चोरी, जानी चोर द्वारा घोड़े की चोरी
जानी चोर का इतिहास
एक बनिये के तीन बेटे थे एक बार जब बनिया बीमार पड़ा तो उसने तीनों लड़कों को बुलाकर पूछा कि तुम लोग क्या करना पसंद करोगे ,किस तरह की जिंदगी बिताओगे बड़े लड़के ने कहा कि वह दुकान से ही गुजारा कर लेगा छोटा बोला कोई अच्छा सा व्यापार कर लूंगा और जो सबसे छोटा था जानी वह बोला मैं तो चोरी कर लूंगा एक बार कहीं अच्छे से चोरी कर ली तो वर्षों तक कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी तब उसके पिता ने कहा कि चोरी करने के लिए दिमाग की भी जरूरत होती है तब जानी ने कहा दिमाग तो मेरे पास बहुत है आप चाहो तो मेरी परीक्षा ले सकते हो तब उसके पिता ने कहा तुम्हें दिल्ली जाकर अकबर बादशाह का घोड़ा चुराना होगा जिसे पिछले दिनों काबुल से मंगाया गया है यदि 1 हफ्ते के अंदर तुम घोड़े को ले आए तो मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम्हारे में दिमाग की कमी नहीं है
इसके बाद जानी उसी समय दिल्ली की ओर चल पड़ा दिल्ली पहुंच कर उसने देखा कि शहर के चारों तरफ कड़ा पहरा है वह बाहर सड़क पर रुक गया और अंदर जाने के लिए सोचने लगा कुछ देर बाद उसने एक नाई को आते हुए देखा पास आने पर पूछा भाई कहां जा रहे हो नाई बोला कि मैं रोज हजामत करने शहर जाता हूं यही उसका काम है इसके बाद उस नाई ने जानी से पूछा कि तुम कौन वह बोला मुझे जानी राम कहते हैं और मैं भी इस शहर में जाना चाहता हूं नाई ने बताया कि शहर के अंदर वही आदमी जा सकता है जो कुछ काम करता हो किसी और व्यक्ति को अंदर नहीं जाने दिया जाता
इसके बाद जानी राम शहर में घुसने के लिए सोचने लगा और वह नाई से बोला अच्छा भाई मैं वापस ही लौट जाऊंगा ,लेकिन मेरी हजामत तो बनाते जाओ इसके बाद नाई ने जानी की बात मान ली और वह हजामत बनाने लगा किंतु पानी ना होने के कारण हजामत कैसे बनती तभी जानी राम ने दूर एक तालाब की ओर इशारा किया और बोला वहां से कटोरी में पानी भर लाओ तभी हजामत बनेगी नाई ने अपनी पेटी वही रख दी और पानी लेने चला गया इसके बाद जानी राम ने पेटी को कंधे पर उठाया और अपने को नाई बता कर तेजी से शहर के अंदर घुस गया शहर पहुंचकर वह एक भटियारी के पास रहने लगा
धीरे-धीरे उसने भटियारी को काबू में कर लिया जानी राम ने उस भटियारी से कहा “अगर तुम होशियारी से मेरा काम करती रहेगी तो तुझे रोज एक अशर्फी दूंगा” वह बुढ़िया खुश हो गई और उसने बताया कि आज से मेरा नाम “जानी चोर” है किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि जानी चोर कहां रहता है अगले दिन उसने एक पत्र लिखकर बुढ़िया को दे दिया उसने गुड़िया से कहा कि इसे ले जाकर दरबार में डाल दो उस पर्चे में लिखा था “बादशाह सलामत” जानी चोर इस शहर में आ चुका है वह आपके काबुली घोड़े को चुराकर ले जाएगा इसके बाद बुढ़िया ने वह पर्चा अपने तोते को दिया और तोता उसी वक्त उस पर्चे को दरबार में डाल आया जब बादशाह ने वह पर्चा पढ़ा तो वह हैरान रह गए बादशाह को उस समय बहुत ही क्रोध आया और उन्होंने ऐलान कर दिया कि आज रात को जो हमारे घोड़े की रक्षा करेगा उसे ₹500 इनाम में दिए जाएंगे
यह बात सुनकर एक सुनार दरबार में पहुंचा और घोड़े की रखवाली का काम ले लिया इसके बाद बुढ़िया से जानी चोर को जब यह पता चला कि सुनार ने घोड़े की रखवाली की जिम्मेदारी ली है तो उन्होंने बुढ़िया से पूछा सुनार के घर में और कौन-कौन है?उस बुढ़िया ने बताया कि उसके माता-पिता भाई-बहन सभी हैं उसका एक लड़का जवान है, जो नौकरी करने विदेश गया है और कई वर्षों से घर नहीं लौटा इसके बाद जानी चोर खुश होकर बुढ़िया से बोला कि अब काम बन जाएगा तुम लोहा, पीतल और गिलट के कुछ टुकड़े जमा कर उसकी एक पोटली बना लो बाहर से सुंदर रेशमी कपड़ा लपेट देना बुढ़िया ने वैसा ही किया | जानी चोर का इतिहास |
जानी चोर द्वारा सुनार के घर चोरी
शाम के वक्त जानी चोर ने पोटली बगल में रखी और सुनार के घर जा पहुंचा घर पर उस समय सुनार की घरवाली और उसके लड़के की बहू थी जानी चोर ने दरवाजा खटखटाया और मां को पुकारा. सुनार की घरवाली बूढ़ी हो चुकी थी उसे आंखों से साफ-साफ दिखाई भी नहीं देता था जानी चोर की आवाज को अपने बेटे की आवाज समझ कर वह बुढ़िया उठ गई और उसने अपनी बहू को भी उठा दिया इसके बाद उस बुढ़िया ने जानी चोर को अपना बेटा समझ कर गले लगाया और बोली अब तो तेरी आवाज, रंग-रूप सब कुछ बदल गया है इसके बाद जानी चोर ने कहा 12 वर्ष में तो तुम भी बदली बदली सी लग रही हो मां पास में बहू घूंघट निकाले खड़ी थी
जानी चोर ने पिता के बारे में पूछा तब सुनार की घरवाली ने उसे बताया कि वह आज बादशाह के घोड़े की सुरक्षा के लिए पहरे पर गए हैं क्योंकि शहर में जानी चोर आया हुआ है वह घोड़ा चुराना चाहता है रात में उस बहू ने उसे अच्छा भोजन कराया मां अपने कमरे में सो गई वह भी बहू के साथ कोठे पर जा पहुंचा देर तक उन दोनों में बातचीत होती रही अंत में बहू ने पूछा अपने माता-पिता के लिए तुम बहुत सारे रुपए लेकर आए होंगे मेरे लिए भी कुछ लाए हो ,जानी चोर मुस्कुराया और पोटली को दिखाते हुए बोला इस बार तुम्हारे लिए बहुत कुछ लाया हूं उन चीजों से भी बढ़कर है जो कि तुम अपने मायके से लाती हो
जानी चोर उस बहू से बोला कि मैं देखना चाहता हूं कि वह चीज इन चीजों के मुकाबले की है भी या नहीं इसके बाद बहू बहुत ही प्रसन्न हुई और उसने अपने सारे जेवर लाकर रख दिए तभी उसे याद आया कि मैं अपना “नौलखा हार” तो लाई ही नहीं वह दूसरे कोठे पर रखा है मैं अभी लेकर आती हूं जब वह हार लेने के लिए वहां से चली गई तब जानी चोर ने वह सारे जेवर उठाएं और चारदीवारी से कूदकर वहां से फरार हो गया जानी चोर ने सारे आभूषण लाकर उस भटियारी को सौंप दिए अगले दिन जब घर लौटने पर सुनार को इस बात का पता चला तो उसे बहुत ही दुख हुआ उस सुनार को यह विश्वास हो गया कि यह काम केवल जानी चोर का ही है
सुनार ने सारी कहानी बादशाह को सुनाई और बादशाह यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गया और उसने कहा कि वह चोर ही नहीं बल्कि दिमाग से भी तेज है इसके बाद बादशाह को अपने घोड़े की चिंता होने लगी कि अब घोड़े की रक्षा कैसे की जाए दूसरे दिन फिर दरबार में चिट्ठी आ गई थी और उसमें भी घोड़े को चुराने की बात लिखी थी इसके बाद बादशाह ने घोड़े की रक्षा के लिए इनाम की राशि 500 से बढ़ाकर 1000 कर दी परंतु घोड़े की रखवाली के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ लोग सोचने लगे कि इनाम के चक्कर में कई घर का माल ना चला जाए किंतु शहर के कोतवाल से नहीं रहा गया | जानी चोर का इतिहास |
जानी चोर द्वारा कोतवाल के घर चोरी
जानी चोर ने भटियारी से फिर पता लगाया कि इस बार पहरे पर कौन है तब उस भटियारी ने कहा कोतवाल साहब आए हैं,जानी चोर ने दुल्हन जैसे कपड़े पहन लिए और एक थाली में धूप बत्ती जला कर मंदिर की ओर चल पड़ा वह कोतवाल साहब की ओर निकल पड़ा रात के समय में एक सुंदर स्त्री को अपने पास से गुजरते हुए देखा तब कोतवाल साहब ने कहा कि इस आधी रात में किसकी पूजा करने आई हो? जानी चोर घूंघट निकाल कर बोला ठाकुर जी की पूजा करने आई हूं. इसके बाद कोतवाल साहब ने कहा तुम ठाकुर की पूजा करने चली हो,
जबकि ठाकुर खुद तुम्हारी पूजा करना चाहता है तब जानी चोर ने कहा तो चलो वहां मंदिर में चल कर पूजा करना ठाकुर खुशी से उछल पड़ा और अपने घोड़े को साथ लेकर मंदिर में चला आया उसने घोड़े को बाहर बांध दिया अकड़ी बेड़ियां और बंदूक लेकर औरत के साथ मंदिर के आंगन में चला गया सनी चोरनी जब कोतवाल से उन बेटियों के बारे में पूछा तो कोतवाल ने कहा कि यह डाकुओं के आभूषण हैं तब जानी चोर ने कहा कि मैं यह पहन कर देखना चाहती हूं तब कोतवाल ने कहा कि मैं तुम्हें यह पहन कर दिखाता हूं तुम्हारे नाजुक हाथ इन के लायक नहीं है इसके बाद उसने अपने हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां डलवा ली फिर मुस्कुराता हुआ बोला, देख लिया’ इस तरह पहना जाता है अब इन्हें खोल दो कोतवाल की बात सुनकर स्त्री जोर से हंसी उसने अपनी नकली वेशभूषा को अलग किया और बंदूक उठाकर कोतवाल की छाती पर रख दी और उसने अपनी असली पहचान बता दी
जानी चोर का रूप देखते ही कोतवाल के होश उड़ गए और उसने जानी चोर से माफी मांगी किंतु जानी चोर कब सुनने वाला था उसने कोतवाल को एक रस्सी से बांध लिया और उसे घोड़े पर बिठाया और बादशाह के महल के आगे फेंक कर वहां से फरार हो गया सुबह होते ही शहर में हलचल मच गई जानी चोर ने कोतवाल कि वह दशा बनाई जो आज तक कभी नहीं बनी थी इसके बाद लोग जानी चोर के नाम से डरने लगे थे इसके बाद दरबार में फिर से पर्चा आ गया जिसमें काबुली घोड़े को जल्दी ले भागने की बात लिखी हुई थी इस बार बादशाह ने ₹5000 का इनाम रखा परंतु फिर भी कोई घोड़े की रखवाली के लिए तैयार नहीं हुआ और बादशाह को घोड़े की और अधिक चिंता होने लगी इसके बाद बादशाह ने निश्चय किया कि वह जानी चोर को अपने हाथों से पकड़ेंगे | जानी चोर का इतिहास |
जानी चोर द्वारा घोड़े की चोरी
बादशाह उसी काबुली घोड़े पर बैठकर पहरा देने लगा जानी चोर ने पता लगा लिया कि इस बार खुद बादशाह पहरे पर है वह एक बुढ़िया का रूप बनाकर मंदिर वाली सड़क पर जा बैठा और चक्की आगे रख अनाज पीसने लगा सड़क के किनारे बुढ़िया को अनाज पीसते देख बादशाह ने पूछा इस वक्त किस के लिए अनाज पीस रही हो बुढ़िया बोली क्या करूं सरकार, बुढ़ापा बहुत बुरा है और उससे भी बुरी चीज है गरीबी. दिन में मोहल्ले के बच्चे पगली कहकर चिढ़ाते हैं इसलिए रात में यहां आकर काम करती हूं, अभी-अभी एक सिपाही आया था पीसने के लिए गेहूं देकर गया है यह सुनकर बादशाह घोड़े से उतर गया और उन्होंने पूछा क्या नाम था उस सिपाही का बुढ़िया ने पसीना पहुंचते हुए कहा सरकार वह जानी जानी कुछ बता रहा था
बादशाह को विश्वास हो गया कि वही जानी चोर है उसने बुढ़िया से पूछा “वह कितनी देर में लौटकर आएगा” तब बुढ़िया ने कहा कि वह आता ही होगा बादशाह ने सोचा, चोर को पकड़ने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा वह बुढ़िया से बोला “तू मेरे कपड़े पहन ले और मुझे अपने कपड़े दे” ताकि मैं उसे पकड़ लूं वह सिपाही नहीं चोर है, मैं उसे पकड़ कर बादशाह के पास ले जाऊंगा बादशाह ने अपने कपड़े पहना कर उसे मंदिर के आंगन में भेज दिया साथ ही अपना काबुली घोड़ा भी उसे दे दिया हाथ में घोड़ा आते ही जानी चोर बहुत खुश हुआ और वह तुरंत घोड़े पर चढ़ा और ऐड लगाते हुए बोला ‘बादशाह सलामत’ तुम चक्की पीसते रहो,
जानी चोर तो यह भागा, जब बादशाह ने जानी चोर की आवाज सुनी तो हैरान रह गया उनके हाथ से चक्की छूट गई और बोले ‘वाह रे जानी चोर’ तू तो अक्ल का भी बादशाह है जब जानी चोर बादशाह की पोशाक में घर पहुंचा तो बनिये को विश्वास हो गया बोला “शाबाश बेटा” अब तू जरूर चोरी कर सकता है किंतु याद रखना गरीब को कभी परेशान नहीं करना, ईमानदारी और मेहनत से कमाए गए धन पर डाका नहीं डालना और गरीबों की सहायता करने में पीछे नहीं रहना अब जाकर बादशाह का घोड़ा वापस कर आओ इसके बाद जानी चोर घोड़ा वापस करने निकल पड़ा | जानी चोर का इतिहास |