रानी दुर्गावती का इतिहास, रानी दुर्गावती का जन्म, रानी दुर्गावती का मुगलों के साथ युद्ध, रानी दुर्गावती की मृत्यु , रानी दुर्गावती के पुत्र की मृत्यु
रानी दुर्गावती का इतिहास
भारत के इतिहास में राजपूतों का एक अलग ही इतिहास रहा है जिनके शौर्य का लोहा पूरा भारत वर्ष मानता है राजपूत अपनी मातृभूमि के लिए जान देने को तत्पर रहते थे इन्हीं राजपूतों में से एक ऐसी रानी भी हुई थी जिसके आने से मुगल तक कांप गए थे वैसे राजपूतों में महिलाओं को महल से बाहर आने की अनुमति नहीं होती थी लेकिन रानी दुर्गावती राजपूतों की इस प्रथा को तोड़ते हुए बहादुरी के साथ रणभूमि में युद्ध किया अन्य राजपूतों की तरह रानी दुर्गावती ने भी दुश्मन के सामने कभी घुटने नहीं टेके रानी दुर्गावती ना केवल एक वीर योद्धा बल्कि कुशल शासक भी थी जिसने अपने शासनकाल में विश्व प्रसिद्ध इमारतों, खजुराहो और कलिंजर का किला बनवाया था रानी लक्ष्मीबाई की तरह रानी दुर्गावती का नाम भी इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में राजपूताना में लिखा जाता है| रानी दुर्गावती का इतिहास |
रानी दुर्गावती का जन्म
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ईसवी को एक ऐतिहासिक राजपूताना परिवार में हुआ था रानी दुर्गावती के पिता चंदेल राजपूत शासक राजा ‘सालबान’ और मां का नाम ‘महोबा’ था 1542 में दुर्गावती का विवाह गोंड साम्राज्य के संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह के साथ करवा दिया गया इस विवाह के कारण यह दोनों वंश एक साथ हो गए थे चंदेल और गोंड के सामूहिक आक्रमण की बदौलत शेरशाह सूरी के खिलाफ धावा बोला गया था
जिसमें “शेरशाह सुरी” की मौत हो गई थी 1545 में दुर्गावती ने एक बालक “वीर नारायण” को जन्म दिया था बालक के जन्म के 5 साल बाद ही दलपत शाह की मौत हो गई थी जिससे सिंहासन रिक्त हो गया था और बालक शिशु नारायण अभी गद्दी संभालने को सक्षम नहीं था दलपत शाह के विरोधी एक योग्य उम्मीदवार की तलाश कर रहे थे तभी रानी दुर्गावती ने राजपाट खुद के हाथों में ले लिया और खुद को गोंड साम्राज्य की महारानी घोषित कर दिया गोंड साम्राज्य का कार्यभार अपने हाथों में आते ही उसने सबसे पहले अपने राजधानी सिंहरगढ़ से चौरागढ़ कर दी क्योंकि नई राजधानी सतपुड़ा हाड़ी पर होने की वजह से पहले से ज्यादा सुरक्षित थी | रानी दुर्गावती का इतिहास |
रानी दुर्गावती एक वीरांगना के रूप में
रानी दुर्गावती ने अपने पहले युद्ध में ही भारत वर्ष में अपना नाम रोशन कर लिया था शेरशाह की मौत के बाद सूरत खान ने उसका कार्यभार संभाला जो उस समय मालवा गणराज्य पर शासन कर रहा था सूरत खान के बाद उसके पुत्र बाजबहादुर ने कमान अपने हाथ में ले ली जो रानी रूपमती से प्रेम के लिए प्रसिद्ध हुआ था सिंहासन पर बैठते ही “बाज बहादुर” को एक महिला शासक को हराना बहुत आसान लग रहा था इसलिए उसने रानी दुर्गावती के गोंड साम्राज्य पर धावा बोल दिया बाज बहादुर की रानी दुर्गावती को कमजोर समझने की भूल के कारण उसे भारी हार का सामना करना पड़ा और उसके कई सैनिक घायल हो गए थे बाज बहादुर के खिलाफ जंग में जीत के कारण आस-पास के राज्यों में रानी दुर्गावती का डंका बज गया था
अब रानी दुर्गावती के राज्य को पाने की हर कोई कामना करने लगा था जिसमें से एक मुगल सूबेदार “अब्दुल माजिद खान” भी था ख्वाजा अब्दुल माजिद खान ‘कारामणिपुर’ का शासक था जो रानी का नजदीकी साम्राज्य था जब उसने रानी के खजाने के बारे में सुना तो उसने आक्रमण करने का विचार बनाया अकबर से आज्ञा मिलने के बाद आसिफ खान भारी फौज के साथ ‘गर्रा’ की ओर निकल पड़ा जब मुग़ल सेना दमोह के नजदीक पहुंची तब मुगल सूबेदार ने रानी दुर्गावती को अकबर की अधीनता स्वीकार करने को कहा तब रानी दुर्गावती ने कहा कलंक के साथ जीने से अच्छा गौरव के साथ मर जाना बेहतर है रानी दुर्गावती ने कहा मैंने लंबे समय तक अपनी मातृभूमि की सेवा की है और अब मैं इस तरह अपनी मातृभूमि पर कलंक नहीं लगने दूंगी | रानी दुर्गावती का इतिहास |
रानी दुर्गावती का मुगलों के साथ युद्ध
इसके बाद रानी दुर्गावती ने सोचा अब युद्ध के अलावा कोई उपाय नहीं उसी समय रानी ने अपने 2000 सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार किया रानी दुर्गावती के सलाहकारों ने रानी को किसी सुरक्षित स्थान पर छुपने को कहा जब तक उनकी सारी सेना एकत्रित नहीं हो जाती इसके बाद सलाहकारों की बात मानते हुए रानी ‘नाराय’ के जंगलों की तरफ रवाना हो गई इस दौरान आसिफ खान गर्रा पहुंच गया था और गणराज्य को हथियाने का काम उसने शुरू कर दिया था तब उसने रानी के बारे में खबर सुनी है तो वह अपनी सेना को गर्रा में छोड़कर उसके पीछे रवाना हो गया आसिफ खान की हलचल को सुनते हुए रानी ने अपने सलाहकारों और सैनिकों को समझाते हुए कहा, हम कब तक इस तरह जंगलों में शरण लेते रहेंगे इस तरह रानी दुर्गावती ने ऐलान किया कि या तो वह जीतेंगे या वीरों की तरह लड़ते हुए शहीद हो जाएंगे
अब रानी दुर्गावती ने युद्ध वस्त्र धारण कर सरमन हाथी पर सवार हो गई अब भीषण युद्ध छिड़ गया जिसमें दोनों तरफ के सैनिकों की काफी क्षति पहुंची इस युद्ध में रानी विजई हुई और उसने भगोड़े का पीछा किया इसके बाद रानी दुर्गावती ने दिन के अंत तक अपने सलाहकारों से बात की रानी ने दुश्मन पर रात को आक्रमण करने की योजना बनाई क्योंकि सुबह होते ही आसिफ खान फिर आक्रमण बोल देगा लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी लेकिन सुबह उसने जैसा सोचा वैसा ही हुआ और आसिफ खान ने हमला बोल दिया रानी अपने हाथी सरमन के साथ रणभूमि में उतर गई और युद्ध के लिए तैयार हो गई तीन बार उसने अकबर की सेना को धूल चटा कर रानी ने हरा दिया था लेकिन इस युद्ध में उनका पुत्र राजा वीर बुरी तरह घायल हो गया था और मुगलों के साथ वीरता से लड़ रहा था जब रानी ने यह खबर सुनी तो उसने तुरंत अपने भरोसेमंद आदमी के साथ अपने पुत्र को सुरक्षित स्थान पर ले जाने को कहा लेकिन इस प्रक्रिया में कई राजा और सैनिक वीर के साथ चले गए थे | रानी दुर्गावती का इतिहास |
रानी दुर्गावती की मृत्यु
अभी रानी बहादुरी के साथ लड़ रही थी तभी अचानक एक तीर रानी दुर्गावती की गर्दन की एक तरफ घुस गया रानी ने बेहतर बहादुरी के साथ निकाल दिया लेकिन उस जगह पर भारी घाव बन गया था इस तरह एक और तीर उनकी गर्दन के अंदर घुस गया जिसको भी रानी दुर्गावती ने बाहर निकाल दिया लेकिन वह बेहोश हो गई जब उसे होश आया तो पता चला कि उनकी सेना हार चुकी है इसके बाद रानी ने महावत से कहा कि मैंने हमेशा तुम्हारा विश्वास किया है और हर बार की तरह आज भी हार के मौके पर तुम मुझे दुश्मनों के हाथ मत लगने दो और वफादार सेवक की तरह मेरा खात्मा कर दो
महावत ने मना करते हुए कहा मैं कैसे अपने हाथों को आपकी मौत के लिए उपयोग कर सकता हूं जिन हाथों को हमेशा मैंने आपसे उपहार के लिए आगे किया था मैं बस आपके लिए इतना कर सकता हूं कि आपको रणभूमि से बाहर निकाल सकता हूं मुझे अपने तेज हाथी पर पूरा भरोसा है यह शब्द सुनकर वह नाराज हो गई और बोली क्या तुम मेरे लिए ऐसे अपमान को चैन करते हो तभी रानी दुर्गावती ने चाकू निकाल कर अपने पेट में घुसा लिया और वीरांगना की तरह वीरगति को प्राप्त हो गई
रानी दुर्गावती के पुत्र की मृत्यु
इसके बाद आसिफ खान ने चौरागढ़ पर हमला बोल दिया तब रानी दुर्गावती का पुत्र उसका सामना करने के लिए आया लेकिन उसे भी मार दिया गया रानी दुर्गावती की सारी संपत्ति आसिफ खान के हाथों में आ गई रानी दुर्गावती ने इस तरह 16 सालों तक वीरों की तरह शासन करते हुए राजपूत रानी के रूप में एक मिसाल कायम कीऔर वीरांगना की तरह वीरगति को प्राप्त हो गई जिसे भारतवर्ष कभी नहीं भुला सकता | रानी दुर्गावती का इतिहास |