जीण माता का इतिहास, जीण माता का जन्म, जीण की भाभी की शर्त, जीण माता का मंदिर, जीण माता का चमत्कार
जीण माता का इतिहास
जीण माता को मां दुर्गा की अवतार माना जाता है और उनके भाई हर्ष को भैरव का अवतार माना जाता है जीण माता चौहान वंश की कुलदेवी है जीण माता के मंदिर में बिना बुझे अखंड ज्योत हजारों वर्षों से जल रही है यहां पर जीण माता मनुष्य रूप से देवी के रूप में प्रकट हुई थी इनकी चमत्कारिक शक्ति ऐसी है कि यह शक्तिपीठ के रूप में पूजनीय है जीण माता के मंदिर के अंदर 8 शिलालेख लगे हुए हैं जो अलग-अलग समय पर लगाए गए हैं इसमें जो सबसे पुराना शिलालेख है वह संवत 1029 का है लेकिन उस शिलालेख के अंदर मंदिर के निर्माण की कोई भी तिथि लिखी हुई नहीं है | जीण माता का इतिहास |
जीण माता का जन्म
जीण माता का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में “गंगो सिंह” जी के घर में हुआ गंगो सिंह जी चूरु जिले में स्थित ‘गांगु’ रियासत के राजा हुआ करते थे गंगो सिंह जी के कोई संतान नहीं थी संतान सुख की इच्छा से 1 दिन राजा गंगो सिंह जी अरावली पर्वतमाला में स्थित कपिल मुनि के आश्रम में गए और वहां उन्होंने गुरुवर की आज्ञा से तपस्या की और तब कपिल मुनि ने उन पर प्रसन्न होकर उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री होने का वरदान दिया
वरदान के अनुसार गंगा सिंह जी के घर में एक पुत्री हुई जिसका नाम जीवण रखा गया और एक पुत्र हुआ जिसका नाम हर्ष रखा गया बचपन से ही जीवन और हर्ष में बहुत ज्यादा प्यार था दोनों भाई बहन एक दूसरे को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे चाहते थे हर्ष की शादी बचपन में ही कर दी गई यानी कि जब वह समझते नहीं थे तभी उनकी शादी कर दी गई जब हर्ष जवान हुए तो अपनी पत्नी को लेकर आए जीण अपने भाई से बहुत ज्यादा प्यार करती थी तो उसी के समान वह अपनी भाभी को भी इज्जत देती थी और इसी कारण से जीण घर का सारा काम खुद ही कर लिया करती थी
भाभी को कोई काम करने नहीं देती थी भाई बहन का इतना अटूट प्यार देखकर हर्ष की पत्नी को ऐसा लगा कि हो ना हो इन दोनों में भाई बहन वाला प्यार नहीं होगा कुछ और है इस प्रकार जीण की भाभी के मन में पाप आ जाता है एक दिन वह मौका पाकर जीण को बोल ही देती है कि मुझे ऐसा लगता है कि तुम दोनों में भाई बहन का प्यार कम है कुछ और ज्यादा है वह मन ही मन में जीण को अपनी सौतन समझने लगी थी भाभी के ऐसे कड़वे वचन सुनकर जीण को बहुत ज्यादा क्रोध आता है इसके बाद जीण ने अपनी भाभी से कहा कि यदि मेरे भाई को इस बात का पता चल जाए तो वह अभी की अभी तुम्हारी गर्दन काट देगा, तुम्हें जान से मार देगा | जीण माता का इतिहास |
जीण की भाभी की शर्त
इसके बाद जीण और उसकी भाभी के बीच में एक विवाद शुरू हो गया तब जीण की भाभी ने शर्त रखी कि कल हम सरोवर पर जाएंगे और मटकी भर कर लाएंगे और तुम्हारा भाई जिसकी भी मटकी पहले उतारेगा वही इस घर में रहेगा इससे यह पता चल जाएगा कि हर्ष किस से ज्यादा प्यार करता है उसने कहा यदि हर्ष ने तुम्हारी मटकी पहले उतारी तो मैं यह घर छोड़ कर चली जाऊंगी और यदि मेरी मटकी पहले उतारी तो तुम्हें इस घर को छोड़ कर जाना होगा इसके बाद जीण ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया क्योंकि जीण को अपने भाई पर पूरा विश्वास था कि हर्ष उससे बहुत प्यार करता है और पहले उसी की मटकी उतारेगा ऐसा ही होने वाला था परंतु रात को उसकी भाभी ने खाना नहीं खाया और ऐसे ही सो गई
जब हर्ष ने अपनी पत्नी को ऐसे देखा तो उसने पूछा कि ऐसी क्या बात है कि तुमने आज खाना नहीं खाया इसके बाद जीण की भाभी ने कहा कि मेरे और जीण के बीच में एक शर्त लगी है हर्ष ने पूछा कैसी शर्त लगी है इसके बाद जीण की भाभी हर्ष को बताती है कि मेरे पास तो एक ही चुनरी बची है यदि मैं कल इस शर्त में हार गई तो मुझे यह चुनरी भी जीण को देनी होगी और जीण के पास तो बहुत सारी सुंदर चुनरिया है उसकी बात सुनकर हर्ष ने कहा यह कौन सी बड़ी बात है मैं पहले तुम्हारी मटकी उतार दूंगा जीण को तो मैं मना लूंगा एक चुनरी की ही तो बात है इस प्रकार जिनकी भाभी ने हर्ष को अपनी तरफ कर लिया
धोखे से उसे मना लिया अगले दिन जीण और उसकी भाभी सरोवर पर पानी लेने के लिए गई और पानी भर कर ले कर आई तभी हर्ष ने अपनी पत्नी का घड़ा पहले उतार दिया जीण अपने भाई को अपनी भाभी का घड़ा उतारते देखकर जीण को बहुत अधिक दुख पहुंचा इसके बाद शर्त के अनुसार जीण अपने भाई से नाराज होकर वहां से चली गई अरावली पर्वत की काजल शिखर पर जाकर जीण बैठ गई और माता दुर्गा की तपस्या करने लगी जीण के पीछे पीछे उसका भाई हर्ष भी उसे मनाने के लिए अरावली पर्वत पर गया उसके भाई हर्ष ने जीण से कहा कि एक चुनरी के लिए तुम मुझसे इतनी नाराज कैसे हो गई ऐसी चुनरिया तुम्हें अपनी बहन को बहुत सारी लाकर दे दूंगा चलो अब घर चलते हैं
तब मैंने अपने भाई हर से कहा कि चुनरी की बात नहीं है भाई तब हर्ष ने पूछा कि आखिर शर्त क्या थी तब जीवन ने अपने भाई हर्ष को पूरी शर्त की सच्चाई बताई उसने अपने भाई को बताया कि इस शर्त में यह था कि जो भी हारेगा उसे घर छोड़ कर जाना होगा क्योंकि अब मैं शर्त हार चुकी हूं और अब मैं घर नहीं जाऊंगी इसके बाद हर्ष ने कहा यदि तुम घर नहीं जाओगी तो मैं भी घर नहीं जाऊंगा क्योंकि वह अपनी बहन जीण से बहुत ज्यादा प्यार करता था तब जी ने अपने भाई से कहा तो ठीक है तुम भी यहां बैठकर “भैरव” की उपासना करो और मैं मां “दुर्गा” की उपासना करती हूं इसके बाद दोनों भाई बहन तपस्या में मग्न हो गए दोनों भाई बहन ने अनंत समय तक उपासना की थी और दोनों ही भैरव और दुर्गा का रूप बन गए भैरव और मां दुर्गा ने उन दोनों भाई बहनों को यह वरदान दिया कि कलयुग में तुम लोगों को हमारे समान ही पूजा जाएगा राजस्थान के अलावा जीण माता पूरे भारत में पूजी जाती है | जीण माता का इतिहास |
जीण माता का मंदिर
चौहान वंश में इनकी बहुत ज्यादा मान्यता है जीण माता का मंदिर सीकर जिले के एक गांव में स्थित है जो सीकर से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है यहीं पर मां भवानी जीण माता का एक बहुत प्राचीन 1000 साल पुराना मंदिर भी है जयपुर से यह स्थान 108 किलोमीटर दूर है आज भी यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं जीण माता के दर्शन के बाद हर्ष, ‘भैरव’ के दर्शन भी किए जाते हैं राजस्थान के कोयरा गांव में यह मंदिर स्थित है नवरात्रि के समय 9 दिनों के लिए यहां भव्य मेला लगता है | जीण माता का इतिहास |
जीण माता का चमत्कार
एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब हिंदू मंदिरों को तहस-नहस करता हुआ आगे बढ़ रहा था तब वह सीकर जिले मे स्थित जीण माता के मंदिर में जा पहुंचा और औरंगजेब ने अपने सैनिकों को जीण माता का मंदिर तोड़ने के लिए भेजा था लेकिन जीण माता ने कलयुग में अपना साक्षात्कार चमत्कार दिखाया जीण माता ने वहां पर मधुमक्खियों का एक विशाल झुंड भेज दिया और उन मधुमक्खियों ने मुगल सेना पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण औरंगजेब के सैनिक घायल हो गए और मैदान छोड़कर भाग गए
जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो वह स्वयं यह देखने के लिए जीण माता के मंदिर में गया तो वहां पर मधुमक्खियों ने औरंगजेब पर भी हमला कर दिया इसके बाद औरंगजेब ने अपनी गलती मानी और जीण माता से माफी मांगी और उन्होंने जीण माता को यह वचन दिया कि वह अखंड ज्योत जलाएगा और औरंगजेब ने यह भी कहा कि वह हर महीने सवा मन तेल इस भेंट के लिए देंगे इसके बाद माता जीण ने अपना प्रकोप दूर किया | जीण माता का इतिहास |