फौजी मेहर सिंह का जीवन परिचय, फौजी मेहर सिंह का जन्म, फौजी मेहर सिंह का विवाह, फौजी मेहर सिंह के गुरु, फौजी मेहर सिंह की मृत्यु
फौजी मेहर सिंह का जन्म
जाट मेहर सिंह का जन्म आर्मी रिकॉर्ड के अनुसार 15 फरवरी 1915 को श्री नंद राम दहिया जी के घर रोहतक के बरोडणा गांव में हुआ था जो अब सोनीपत जिले में पड़ता है इनके परिवार में पिता नंदराम व माता भरतो देवी के अलावा तीन भाई और एक बहन थी सबसे बड़े मेहर सिंह इन के बाद मांगे राम जी जो बाल्यकाल में ही भगवान को प्यारे हो गए थे फिर सहजो देवी इनकी बहन, इन के बाद भूप सिंह और कंवर सिंह जी थे भूप सिंह और कंवर सिंह जी की वंशावली आगे चली हुई है
जबकि मेहर सिंह जी की कोई संतान नहीं थी क्योंकि वह शादी के बाद एक बार ही अपनी पत्नी से मिल पाए थे क्योंकि उन्होंने अपना ज्यादातर जीवन फौज में ही बिताया था मेहर सिंह के पिता एक छोटे से किसान थे अपने घर के हालातों की वजह से केवल तीसरी क्लास तक ही स्कूल जा पाए स्कूल छूटने के बाद में मेहरसिंह को पशु चराने में लगा दिया तो मेहर सिंह पशु चराते समय रागनी गायन करने लगे उनके दोस्तों को और बड़े बुजुर्गों को उनका गायन बहुत अच्छा लगता था फौजी मेहर सिंह को बचपन से ही रागनी लिखने और गाने का बहुत ही शौक था
एक बार बरोड़ा गांव में पृथ्वी सिंह बेधड़क जो आर्य समाजी कवि थे आए हुए थे तो उन्होंने गांव वालों से पूछा कि क्या आपके गांव में कोई अच्छी रागनी गाने वाला है तो गांव वाले मेहर सिंह को लेकर आए तब वह मात्र 11 साल के थे तो पृथ्वी सिंह जी बोले यह तो बच्चा है यह क्या रागनी गाएगा तब मेहर सिंह जी ने यह भजन गाया- “2 दिन का जीना दुनिया में है अनुमान जरा सा, जगत में देखा अजब तमाशा” मेहर सिंह जी का यह भजन सुनकर पृथ्वी सिंह जी ने कहा जो बात इन्होंने भजन में गाई है वह एक बुजुर्ग के लेवल की है और आपको गाने का बढ़िया तरीका है
आपके कंठ में सरस्वती जी वास करती है पृथ्वी सिंह जी ने मेहर सिंह की गायन में बहुत ही तारीफ की थी बाद में मेहर सिंह जी ने इनके बारे में एक रागनी में पंक्तियां भी लिखी की एक साधु ने वरदान दिया, मेरी गूंज शिखर में चढ़ गई कुछ तो पहला बढ़ रही थी, कुछ और आगे सी न बढ़गी साधु जी की बात उन्होंने पृथ्वी सिंह जी के बारे में ही किया था इस तरह मेहर सिंह का काफी नाम होने लगा मेरे सिंह जहां भी जाते हैं वहीं रागनी गाने और सुनने लग जाते थे मेहर सिंह के पिता नंदराम दहिया जी को मेहर सिंह का गाना बजाना पसंद नहीं था क्योंकि उस समय गाना बजाना जाटों का काम नहीं होता था इस कारण जाट मेहर सिंह जी को बहुत ही मार पड़ती थी अपने पिता से मार खाने के बाद भी इन्होंने एक रचना कर डाली थी
फौजी मेहर सिंह का विवाह
जब फौजी मेहर सिंह ने गाना बजा नहीं छोड़ा तब इनके पिताजी ने इनकी शादी उजवा समसपुर के लखी राम की पुत्री प्रेमकोर से करवा दी लेकिन इसके बावजूद भी वे ऐसे ही रागनियां लिखते व गाते रहे एक बार इनकी शादी से पहले समसपुर में चौपड़ के लिए किसी गायक को बुलाया गया था चंदा इकट्ठा करने के लिए तो वह गायक बीच में छोड़कर भाग जाता था तो समसपुर निवासी चंदा इकट्ठा करने के लिए मेहर सिंह को लेने बरोणा गांव पहुंचे हैं जहां मेहर सिंह के पिताजी ने मेहर सिंह को ईख की रखवाली के लिए खेत में ड्यूटी पर लगा रखा था
तब मेहर सिंह ने कहा कि यहां पर एक व्यक्ति को रखवाली के लिए रहना होगा इसके बाद में तुम्हारे साथ समसपुर चलूंगा तब उनके खेत में एक व्यक्ति रह गया किंतु वह भी मेहर सिंह की रागनी सुनने के लिए वहां से चला गया जब मेहर सिंह वापस अपने खेत में आए तब उन्होंने देखा कि जानवरों ने उनकी ईख को तहस-नहस कर दिया है जिस पर उन्हें बहुत ही मार पड़ी थी | फौजी मेहर सिंह का जीवन परिचय |
फौजी मेहर सिंह की भर्ती
मेहर सिंह के पिता ने मेहर सिंह को इनकी इच्छा के विरुद्ध सितंबर 1936 को ब्रिटिश आर्मी जाट रेजीमेंट 6 गार्ड बरेली सेंटर में भर्ती करवा दिया और इनकी जॉइनिंग जनवरी 1937 को हुई थी मेहरसिंह ने इस पर भी एक रागनी लिख डाली- “कि देश ,नगर, घर ,गांव छूट गया कितना गाना गाया रे कह जाट ते डूम होलिया, बाप मेरा बकाया रे” मेहर सिंह के पिता को लगा था कि आर्मी में जाने के बाद यह रागनी गाना छोड़ देगा लेकिन यहां तो इनका लेखन और गायन और भी जोरों शोरों से चलने लगा क्योंकि इनकी रागनियां को सभी बहुत पसंद करते थे और अब इन्हें डांटने के लिए पिता भी नहीं थे
आर्मी में ही इन्होंने घड़े पर आर्मी के पुराने ट्रकों की टिप बांधकर घड़ा बजाने का अविष्कार किया हालांकि घड़े को मान्यता जगन्नाथ जी ने दिलवाई थी ऐसे ही चलते चलते मोहन सिंह ने INA का गठन किया और मेहर सिंह जी ब्रिटिश आर्मी छोड़ कर INA के गोरिला रेजीमेंट में भर्ती हो गए यहां उन्होंने रागनी गाई- नीचे चले टैंक करियर ऊपर जहाज हवाई, मुद्दे पड़-पड़ गोली मारा आव याद लुगाई | फौजी मेहर सिंह का जीवन परिचय |
फौजी मेहर सिंह के गुरु
फौजी मेहर सिंह जी ने अपना गुरु लख्मीचंद जी को माना था एकलव्य और द्रोणाचार्य की तरह है मेहर सिंह जी लख्मीचंद की भाषा शैली ,बनावट, लेखन शैली, गायन शैली से प्रभावित थे इसी प्रभाव में मेहर सिंह ने लख्मीचंद को अपना गुरु माना था मेहर सिंह जी कोई प्रोफेशनल गायक नहीं थे कि कहीं किसी कार्यक्रम की साई लेकर गाना गाया हो वह अपनी मर्जी के गायक थे जब मन हुआ तब गाया करते थे फौजी मेहर सिंह को सपनों का कभी भी कहा जाता है क्योंकि वह जो सपनों में देखते थे वह लिख डालते थे इसलिए इनकी सपनों पर बहुत सारी रागनियां है
मेहर सिंह ने लगभग 450 के करीब रचनाएं की है जिसमें 13 किस्से पूरे हैं जैसे- पद्मावत, अंजना पवन, सत्यवान सावित्री, वीर हकीकत राय और इन्होंने 60 के आसपास रचनाएं देशभक्ति की है इन्होंने वियोग श्रृंगार, रस, खेती-बाड़ी लगभग हर विषय पर रागनीओं की रचना की है सुभाष चंद्र बोस के किस्से में 17 रागनियां मेहर सिंह जी की है जिनमें प्रमुख घड़ी ना बीती ना पल गुजरे, उतरे जहाज शिखर ते, बरसन लागे फूल बोस पर हाथ मिला हिटलर ते इसके बाद ‘रामफल चहल’ जी ने जो आकाशवाणी के डायरेक्टर थे उन्होंने मेहर सिंह जी की एक पुस्तक भी निकाली थी | फौजी मेहर सिंह का जीवन परिचय |
फौजी मेहर सिंह की मृत्यु
कुछ समय बाद INA की कमान ‘सुभाष चंद्र बोस’ ने संभाली ऐसे ही चलते चलते 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज की तरफ से लड़ते हुए उनको गोली लगी और बाद में अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया लगभग 27 साल की उम्र में वे देश के लिए शहीद हो गए थे फौजी मेहर सिंह एक अच्छे देश भगत होने के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी थे और उनकी रागनी आज भी सुनते और सदियों तक सुनते रहेंगे और इसलिए हर साल 15 फरवरी को उनकी याद में उनके गांव बरोणा में एक रागनी कंपटीशन करवाया जाता है | फौजी मेहर सिंह का जीवन परिचय |