केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय

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केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय

केदारनाथ अग्रवाल हिंदी प्रगतिशील कविता के अंतिम रूप से गौरवपूर्ण स्तंभ थे ग्रामीण परिवेश और लोकजीवन को सशक्त वाणी प्रदान करने वाले कवियों में केदारनाथ अग्रवाल विशिष्ट हैं परंपरागत प्रतीकों को नया अर्थ संदर्भ देकर केदार जी ने वास्तुतत्व एवं रूपतत्व  दोनों में नए पन के आग्रह को स्थापित किया है अग्रवाल जी प्रज्ञा और व्यक्तिगत बोध को महत्व देने वाले प्रगतिशील सोच के अग्रणी कवि हैं | केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय |

 केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 

कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल 1911 को उत्तर प्रदेश के बांदा नगर के ‘कमासिन’ गांव में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम “श्री हनुमान प्रसाद अग्रवाल” और माताजी का नाम घसीटो देवी था केदार जी के पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरीम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ थाइनके पिताजी रामलीला में अभिनय करने के साथ-साथ ब्रज भाषा में कविता भी लिखते थे केदार जी को काव्य सृजन की प्रेरणा अपने पिताजी से मिली थी केदारनाथ जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरुआत भी वही हुई थी अपने चाचा मुकुंद लाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई थी रायबरेली, कटनी, जबलपुर ,इलाहाबाद में उनकी पढ़ाई हुई थी इलाहाबाद में बी.ए. की उपाधि हासिल करने के बाद कानूनी शिक्षा उन्होंने कानपुर में हासिल की थी  | केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय |

केदारनाथ अग्रवाल का विवाह 

इनका विवाह एक धनी परिवार की लड़की पार्वती देवी से हो गया था विवाह के बाद इनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई नवमी में पढ़ने के लिए उन्होंने इविंग क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद है केदार अग्रवाल बी.ए. की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया यहां उनका संपर्क शमशेर और नरेंद्र शर्मा से हुआ और उन तीनों में घनिष्ठा बढ़ी इसके बाद उनके काव्य संस्कारों में एक नया मोड़ आया साहित्यिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ी वह b.a. में फेल हो गए इसके बाद वकालत की पढ़ाई के लिए कानपुर चले गए यहां डी.ए.वी. कॉलेज में दाखिला लियासन 1937 में कानपुर से वकालत पास करने के बाद सन् 1938 में बांदा आए  इसके बाद बांदा पहुंचकर वकालत करने लगे थे उस समय उनके चाचा शहर के नामी वकीलों में से थे उनके साथ रहकर वकालत करने लगे बचपन में घर परिवार से मिले संस्कारों ने उन्हें गरीब और पीड़ित वर्ग के लोगों के संघर्षपूर्ण जीवन से वाकिफ होने का अवसर दिया था वकालत केदार जी के लिए कभी पैसा कमाने का जरिया नहीं रही 

 केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएं 

इनका पहला काव्य ‘युग की गंगा’ है, फूल नहीं रंग बोलते हैं, गुल मेहंदी, हे मेरी तुम बोले बोले अबोल, जमुनजल तुम, कहे केदार खरी-खरी, मार प्यार की थापे आदि इन्होंने एक यात्रा संस्मरण भी लिखा है- “बस्ती खिले गुलाबों की” इनके कुछ उपन्यास है जैसे- पतिया बेल बाजी मार ले गए इनके निबंध संग्रह है- ‘समय-समय पर, विचार बोध, विवेक विवेचन इनके द्वारा लिखा गया संपादन- पराग, बाल साहित्य रचना और समीक्षा है इनकी कृतियां अंग्रेजी रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद भी हो चुकी है केदार शोध पीठ की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए केदार सम्मान से सम्मानित किया जाता है | केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय |

केदारनाथ को प्राप्त सम्मान व पुरस्कार

सन 1963 से 1970 तक सरकारी वकील रहे इसके बाद 1972 ईस्वी में बांदा में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन का आयोजन किया  केदारनाथ को बहुत से पुरस्कार प्राप्त हुए थे जैसे- 1973 ईस्वी में उनके काव्य संकलन ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ इसके लिए उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू’ पुरस्कार दिया गया था, इसके बाद 1974 में उन्होंने रूस की यात्रा संपन्न की थी 1981 ईस्वी में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने पुरस्कृत एवं सम्मानित किया था 1981 में मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ ने उनके कृतित्व का आयोजन किया था

इसके बाद 1987 ईस्वी में उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’दिया गया था, हिंदी संस्थान पुरस्कार, वर्ष 1986 ईस्वी में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा ‘तुलसी पुरस्कार’ से सम्मानित किया था, वर्ष 1990- 91 ईस्वी में मध्यप्रदेश शासन ने उन्हें मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार से सम्मानित किया था, आचार्य कृष्ण विनायक फड़के बाल साहित्य समीक्षा सम्मान, बाल साहित्य पुरस्कार, कीर्ति सम्मान ,वात्सल्य पुरस्कार आदि  इसके बाद वर्ष 1993- 94 ईसवी में उन्हें बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ने डी. लिट. की उपाधि प्रदान की और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने “साहित्य वाचस्पति” उपाधि से सम्मानित किया था | केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय |

केदारनाथ अग्रवाल की भाषा शैली

सभी कवियों ने काव्य भाषा के रूप में जनप्रतिनिधि भाषा को ही प्रगतिवादी काव्य में अपनाया है परंतु केदार कुछ मामलों में अन्य कवियों से अलग हैं उनकी काव्य भाषा में जहां एक और गांव की सीधी शब्दावली जुड़ गई है वहीं प्राकृतिक दृश्यों की प्रमुखता के कारण भाषा में सरलता और कोमलता है गांव की गंध, वन फूलों की महक, भाषा, सरल जीवन और आसपास के परिवेश को मिलाकर केदारनाथ अग्रवाल ने कविता को प्रगतिशील बौद्धिक चेतना से जोड़े रखकर भी मोहकता बनाए रखी है 

केदारनाथ अग्रवाल की मृत्यु 

22 जून 2000 ईस्वी को केदारनाथ अग्रवाल का 90 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था केदारनाथ प्रगतिशील काव्यधारा के एक प्रमुख कवि है इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर  मिलता है इन्होंने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कविताओं में मुखरित किया है कविता के अलावा गद्य लेखन में भी उन्होंने रुचि दर्शाई थी मगर काव्य के रूप में ही प्रसिद्ध हैं इनकी प्रकाशित ढाई दर्जन कृतियों में 23 कविता संग्रह, एक अनुदित कविताओं का संकलन ,तीन निबंध संग्रह, एक उपन्यास, एक यात्रा वृतांत, एक साक्षात्कार और एक पत्र संकलन भी शामिल है | केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय |

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