आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय, रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म, रामचंद्र शुक्ल जी की रचनाएं, साहित्य में मिले सम्मान , रामचंद्र शुक्ल जी की मृत्यु 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे जिस क्षेत्र में भी कार्य किया उस पर उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है रामचंद्र शुक्ल जी ने निबंध और आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है इन्होंने हिंदी के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है 

रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म 

हिंदी के इस प्रतिभा संपन्न साहित्यकार का जन्म 4 अक्टूबर 1884 ईसवी में बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित है चंद्रबली शुक्ल था जो सुपरवाइजर थे इनकी माता का नाम विभाषा देवी था इनकी माता जी की धार्मिक महिला थी जब रामचंद्र शुक्ल जी 9 वर्ष के थे तब इनकी माता जी का देहांत हो गया था इनके पिता जी ने इनका पालन पोषण किया था बालक रामचंद्र शुक्ल ने हाई स्कूल की परीक्षा मिर्जापुर जिले के 1901ईस्वी मिशन स्कूल से उत्तीर्ण की थी गणित में कमजोर होने के कारण इनकी शिक्षा आगे नहीं बढ़ सकी

इंटर की परीक्षा के लिए कायस्थ पाठशाला इलाहाबाद में प्रवेश लिया, किंतु अंतिम वर्ष की परीक्षा से पूर्व ही विद्यालय छूट गया था रामचंद्र शुक्ल जी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे परंतु उनके पिता चाहते थे कि वह कचहरी में जाकर दफ्तर के काम को सीखे कुछ समय बाद रामचंद्र शुक्ल जी के पिता ने इन्हें इलाहाबाद में वकालत की पढ़ाई करने के लिए भेज दिया था इसके बाद इन्होंने मिर्जापुर के न्यायालय में नौकरी कर ली थी किंतु स्वभाव अनुकूल न होने के कारण छोड़ दी इसके बाद 1904मे मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक पद पर नियुक्त हो गए थे इसी बीच पंडित केदारनाथ पाठक एवं प्रेम धन के संपर्क में आकर इन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला आदि पत्र-पत्रिकाओं में लिखना आरंभ कर दिया जो बाद में इनके लिए अत्यंत उपयोगी रहा

अध्यापन कार्य करते हुए इन्होंने अनेक कहानियां, कविताएं, निबंध व नाटक आदि की रचना की थी बाद में इनकी नियुक्ति काशी में हो गई बाबू श्यामसुंदर दास के अवकाश प्राप्त करने के बाद शुक्ल जी ने इस कार्यभार को संभाला था इन्होंने 19 वर्षों तक काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का संपादन भी किया था यह हृदय से कवि मस्तिक से आलोचक और जीवन से अध्यापक थे साहित्य में इनका बहुत बड़ा स्थान है इनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इनके समकालीन हिंदी गद्य काल को शुक्ल युग कहा जाता है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय |

रामचंद्र शुक्ल जी की रचनाएं 

रामचंद्र शुक्ल जी ने अनेक रचनाएं लिखी है इनके निबंध है जैसे -चिंतामणि, विचार वीथी,आलोचना- रस मीमांसा, सूरदास, हिंदी साहित्य का इतिहास, संपादन कार्य- काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, आनंद कादंबिनी, तुलसी ग्रंथावली, हिंदी शब्द सागर, जायसी ग्रंथावली, भ्रमरगीत सार आदि रामचंद्र शुक्ल जी ने अंग्रेजी से विश्व पंच, आदर्श जीवन ,मेगास्थनीज का भारतीय वर्षीय वर्णन, कल्पना का आनंद आदि रचनाओं का अनुवाद किया था

रामचंद्र शुक्ल जी के निबंधों में भाषा का रूप सरल एवं व्यवहारिक देखने को मिलता है इन्होंने अपने काव्य में भाषा पर अधिक ध्यान दिया है शुक्ल जी के गद्य साहित्य की भाषा खड़ी है शुक्ल जी का दोनों प्रकार की भाषा पर पूर्ण अधिकार था शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में मुहावरे, लोकोक्तियां का प्रयोग किया है इनकी रचनाओं में भाषा जटिल होते हुए भी स्पष्ट है शुक्ल जी के मनोवैज्ञानिक निबंध भावात्मक शैली में लिखे गए हैं भावों की आवश्यकता अनुसार छोटे और बड़े दोनों ही प्रकार वाक्यों को अपनाया गया है बहुत से वाक्य तो सूक्ति रूप में प्रयुक्त हुए हैं | आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय |

साहित्य में मिले सम्मान 

रामचंद्र शुक्ल जी ने सन 1903 से सन 1908 तक “आनंद कादंबिनी” के सहायक संपादक का कार्य किया, सन 1908 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इन्हें “हिंदी शब्द सागर” के संपादक का कार्य सौंपा था रामचंद्र शुक्ल जी को निबंध ‘काव्य में रहस्यवाद’ में हिंदुस्तानी अकादमी से सम्मान प्राप्त हुआ था रामचंद्र शुक्ल जी की रचना “चिंतामणि” में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा इन्हें “मंगला प्रसाद पारितोषिक” प्राप्त हुआ था हिंदी में विज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी को माना जाता है हिंदी में रामचंद्र शुक्ल जी का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है यह श्रेष्ठ एवं मौलिक निबंधकार थे हिंदी साहित्य में रामचंद्र शुक्ल जी का स्थान सर्वोपरि है 

रामचंद्र शुक्ल जी की मृत्यु 

2 फरवरी 1941 ईस्वी को हृदय की गति रुक जाने के कारण रामचंद्र शुक्ल जी का स्वर्गवास हो गया था रामचंद्र शुकल जी की शैली अत्यंत  मौलिक है इन्होंने अपने निबंध में आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी भलीभांति किया है रामचंद्र शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में भावात्मक शैली एवं विवेचनात्मक शैली का भी प्रयोग किया है रामचंद्र शुक्ल जी ने अलंकार, हास्य-व्यंग्य को भी अपनी रचनाओं में शामिल किया है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय |

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