अग्रोहा धाम का इतिहास, अग्रोहा धाम का निर्माण, अग्रोहा का टीला , अग्रोहा धाम की विशेषता,
अग्रोहा धाम का इतिहास
अग्रोहा अग्रवाल बंधुओं का तीर्थ स्थल है यही वह स्थान है जहां पर अग्रवालों के पूर्वज निकलकर भारत के विभिन्न कोनों में फैले थे यह स्थान हरियाणा के हिसार जिले के अंदर आता है इस नगर की नीव राजा अग्रसेन ने रखी थी इस गांव के निकट ही एक पुराना खेड़ा है वहां पर आज भी विशाल नगर के नष्ट हुए अवशेष मिलते हैं खेड़ा के ऊपर एक टीला बना हुआ है | अग्रोहा धाम का इतिहास |
अग्रोहा धाम का निर्माण
अग्रोहा का धाम 1976 में बनना शुरू हुआ था और 1984 में पूरा हुआ एक बार जब महाराजा अग्रसेन भ्रमण के लिए निकले जब वह देश का भ्रमण कर रहे थे तब उन्होंने एक जंगल में एक शेरनी को जन्म देते हुए देखा था शेरनी के शावक ने अपनी मां की और संकट को बढ़ते देखकर उन पर हमला कर दिया था उस समय महाराजा अग्रसेन हाथी पर सवार थे और वह शावक उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया था
जब महाराजा अग्रसेन देश का भ्रमण कर कर वापस अपने महल में लौटे तो उन्होंने इस घटना के बारे में अपने ऋषि-मुनियों को बताया तब उन्होंने महाराजा अग्रसेन को सलाह दी कि वहां पर एक नए राज्य का निर्माण कर दिया जाए इसके बाद महाराजा अग्रसेन ने अपने नए राज्य की नींव रखी जहां पर शेरनी ने सावक पहुंच जन्म दिया था और उस नए राज्य का नाम “अग्रोध्य” रखा गया और बाद में इसका नाम अग्रोहा कर दिया गया
महाराजा अग्रसेन बहुत ही दयालु राजा थे महाराजा अग्रसेन ने 108 वर्षों तक अपना जीवन व्यतीत किया था महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य में एक ईट और ₹1 का सिद्धांत शुरू किया था ताकि बाहर से आने वाले व्यक्ति की मदद की जा सके और वह अपना खुद का घर बना कर अच्छे से जीवन व्यतीत कर सकें महाराजा अग्रसेन की जयंती अश्विन शुक्ल एकम के दिन बनाई जाती है | अग्रोहा धाम का इतिहास |
अग्रोहा का टीला
एक कहानी के अनुसार अग्रोहा में ध्रुव नाथ नामक सन्यासी ने अपने शिष्य कीर्ति नाथ के साथ आकर यहां समाधि लगा ली थी उनका शिष्य कीर्ति नाथ नहीं धूनी लगाता रहा तथा भिक्षा मांगकर निर्वाह करता रहा कुछ दिनों के बाद कीर्ति नाथ को घरों से भिक्षा मिली बंद हो गई इसके बाद कीर्ति नाथ जंगल से लकड़ियां लाता और धूनी चलाता है और फिर वह भूखा ही सो जाता एक दिन एक कुम्हारीन को उस पर दया आ गई और उसने कीर्ति नाथ को भरपेट भोजन कराया और लकड़ी काटने के लिए उसे एक कुल्हाड़ी भी दी
इसके बाद कीर्ति नाथ लकड़ियां काटकर उसे बेचकर अपना निर्वाह करने लगा इस प्रकार 6 महीने का समय बीत गया और एक दिन बाबा ध्रुव नाथ ने अपनी आंखें खोली और कीर्ति नाथ से गांव का समाचार पूछा कीर्ति नाथ ने ध्रुव नाथ को बताया कि यहां के लोग साधु-संतों से अच्छा व्यवहार नहीं करते और ना ही भिक्षा देते हैं उसकी बात सुनकर बाबा को बहुत ही क्रोध आया और उन्होंने श्राप दे दिया कि 24 घंटे के अंदर यह गांव जलकर राख हो जाएगा
श्राप देने के बाद बाबा ध्रुव नाथ अपने शिष्य कीर्ति नाथ को साथ लेकर किसी दूसरे स्थान पर चल दिए उस समय कीर्ति नाथ ने उन्हें बताया कि यहां पर एक कुम्हारीन है जिस ने मेरी मदद की थी इसके बाद बाबा ने आदेश दिया कि उसे सूचित कर दो इसके बाद कृति नाथ उसके पास गया और उसे बताया कि हमारे बाबा ने इस गांव को श्राप दिया है कि यह नगर 24 घंटे के अंदर जलकर नष्ट हो जाएगा और तुम सभी यहां से तुरंत निकल जाओ यह कहकर कीर्ति नाथ वापस बाबा के पास लौट आया
कीर्ति नाथ की बात का विश्वास कर कर कुम्हारन का परिवार नगर छोड़कर निकलने लगा जब लोगों ने उनसे पूछा तो उस कुम्हारीन ने सारा वृत्तांत लोगों को सुना दिया परंतु किसी ने भी उनकी बात का विश्वास नहीं किया यह खबर आग की तरह पूरे नगर में फैल गई किसी ने भी उनकी बात पर विश्वास नहीं किया बल्कि उनका मजाक उड़ाया कुछ समय के बाद ही भयंकर आंधी चलने लगी और बाबा की धूनी से आग के अंगारे उड़ने लगे और 24 घंटे के अंदर ही पूरा नगर आग की चपेट के अंदर आ गया इस प्रकार वह टीला जलकर भस्म हो गया इसके नजदीक में बसा हुआ है अग्रोहा धाम | अग्रोहा धाम का इतिहास |
अग्रोहा धाम की विशेषता
यह मंदिर हिंदू देवी मां लक्ष्मी और महाराजा अग्रसेन को समर्पित है अग्रोहा धाम परिसर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है यह परिसर देखने में किसी महल जैसा लगता है परिसर के प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ हाथी की मूर्तियां स्थापित की गई है अग्रोहा धाम परिसर को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया गया है परिसर के केंद्र में देवी मां लक्ष्मी का मंदिर स्थापित है परिसर के पश्चिमी भाग में देवी सरस्वती का मंदिर स्थापित है और परिसर के पूर्व भाग में महाराजा अग्रसेन का मंदिर स्थापित है
तीनों मंदिरों तक जाने के लिए अलग-अलग सीढ़ियां बनी हुई है अग्रोहा धाम में एक बहुत ही भव्य गुफा है उस गुफा में मां वैष्णो देवी की मूर्ति स्थापित की गई है अग्रोहा धाम में बहुत ही सुंदर पार्क और बच्चों के लिए झूले बने हुए हैं अग्रोहा धाम के बीच में भगवान शिव की मूर्ति भी बनी हुई है अग्रोहा धाम में महाराजा अग्रसेन की जो मूर्ति बनी हुई है वह संगमरमर से बनाई गई है अग्रोहा धाम में चित्रकला बहुत ही भव्य ढंग से की गई है अग्रोहा धाम का निर्माण करने का फैसला 1976 में अखिल भारतीय अग्रवाल प्रतिनिधियों द्वारा किया गया था यह भूमि लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वारा दान में दी गई थी
इसके बाद तिलक राज की देखरेख में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ मुख्य मंदिर का निर्माण 1984 में पूरा हुआ था इस परिसर की देखरेख का कार्य अग्रवाल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है इस परिसर के पीछे एक बहुत बड़ा तालाब है 1988 में यह तालाब भारत की 41 नदियों के पानी से भर कर बनाया गया था इस परिसर के उत्तर दिशा में समुंद्र मंथन के दृश्य को दर्शाया गया है यहां पर एक नौकायान स्थल भी है जो कि एक मनोरंजन का साधन है अग्रोहा धाम में सभी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं इस धाम का वातावरण श्रद्धालुओं को शांति प्रदान करता है अग्रोहा धाम में हर वर्ष शरद पूर्णिमा को एक बड़े समारोह का आयोजन किया जाता है | अग्रोहा धाम का इतिहास |