अटेर किले का इतिहास

अटेर किले का इतिहास, अटेर किले का निर्माण, अटेर किला की विशेषता ,  किले का खंडहर होना, चंबल घाटी के विषय में

अटेर किले का निर्माण 

अटेर का किला मध्यप्रदेश में चंबल नदी के किनारे स्थित है महाभारत में जहां पर देव गिरी पहाड़ी का उल्लेख मिलता है यह किला उसी पहाड़ी पर स्थित है इसका मूल नाम “देव गिरी दुर्ग” है यह किला 350 साल पुराना है यह किला हिंदू और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है अटेर का किला एक शानदार और भव्य किला है यह किला चंबल नदी की उत्तर में स्थित है अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है अटेर का किला जलपोत के आकार का है

यहां भी बटेश्वर और चंबल की तरह बांध बनाकर उत्तर की ओर मोड़ा गया है इस किले का निर्माण विभिन्न “भंदोरिया” राजाओं के शासनकाल में संपन्न कराया गया था इस किले का प्रारंभिक निर्माण राजा कर्म सिंह ने 1498 में किया था इसके बाद 1644 ईसवी में “राजा बदन सिंह” ने इस किले का निर्माण करवाया था इसके बाद 1668 ईस्वी में महासिंह भदोरिया के कार्यकाल में इसका निर्माण पूरा हुआ

इस किले का निर्माण राजनैतिक व सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था यह किला एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है यह उत्तर से दक्षिण की ओर 700 फुट और पूर्व से पश्चिम तक 325 फुट में है इस दुर्ग में मुख्य रूप से चार प्रवेश द्वार हैं राजश्री प्रवेश द्वार के मेहराब मुगल शैली में बनाए गए हैं इस किले के भीतर एक सात मंजिला गुम्मट है, किले में राजा का महल, रानी का महल ,महाद्वार, खूनी दरवाजा, दीवान- ए- आम, दीवाने खास, रानी का बाग एवं स्नानागार प्रमुख है

इस किले के अंदर हिंदू तथा मुगल स्थापत्य कला का समन्वय है इस किले में हिंदू शैली में कुछ सुंदर चित्र भी अंकित किए गए हैं इस किले का सबसे चर्चित ‘खूनी दरवाजा’ है इस किले के खूनी दरवाजे कारण आज भी लाल मौजूद है इस किले में जहां से खून टपकता था वह स्थान भी मौजूद है भदावर राजा इस दरवाजे पर भेड़ का सिर काट कर रखते थे दरवाजे के नीचे कटोरा रखा जाता था और उस कटोरे में खून की बूंदे टपकती थी जिस किसी भी गुप्तचर को राजा से मिलना होता था तो वह इस खून से तिलक करके ही राजा से मिल सकता था अन्यथा किसी आम आदमी को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी

इसके बाद वह गुप्तचर राजपाट और कुछ गुप्त अन्य सूचनाएं राजा को देते थे आज भी है किला अपनी गौरव गाथाओं को समेटे हुए खड़ा हुआ है यह किला ईट और चुने से बना हुआ एक सामरिक गढ़ रहा है राजपूतों, मुगलों और मराठों के बीच की लड़ाई को अपने अंदर समेटे हुए हैं आज भी इस किले में हुए युद्ध के कुछ अवशेष प्राप्त होते हैं चंबल घाटी में यह किला एक पहरे की तरह खड़ा हुआ है चंबल के बीहड़ में स्थित अटेर किले को “राष्ट्रीय संरक्षित इमारत” घोषित किया गया है यह किला भदावर संस्कृति का द्योतक है अटेर का किला चंबल की राष्ट्रीय अभयारण परिधि पर स्थित है | अटेर किले का इतिहास |

अटेर किला की विशेषता 

तिलक के प्रवेश द्वार की छत पर चित्रकारी नजर आती है राजा मंत्रियों के अलावा फूल पत्तियों की चित्रकारी पर्यटकों को देखने के लिए मिलती है17-18 वीं सदी में सिंधिया जाट संघर्ष के दौरान किले पर सिंधिया राजवंश का अधिकार हो गया था इनके उत्तराधिकारी “जीवाजी राव सिंधिया” हुए इनके समय में स्वतंत्रता आंदोलन मजबूत हो गया था, 28 अप्रैल 1948 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा ग्वालियर में संयुक्त राज्य मध्यप्रदेश का औपचारिक उद्घाटन किया गया

सिंधिया एवं होलकर को राज्य प्रमुख एवं उप राज्य प्रमुख की शपथ दिलाई गई भिंड मध्य भारत के 6 जिलों में से एक था “भिंडी ऋषि” के नाम पर इस जिले का नाम भिंड पड़ा था नवंबर 1956 ईस्वी में इस जिले को मध्यप्रदेश में शामिल किया गया था भिंड में एक और गोहद का किला है जो बहुत ही खूबसूरत है और दूसरा देवगिरी दुर्ग है

अटेर को देखने का इतिहास जानने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है भिंड से 35 किलोमीटर की दूरी पर जाकर किले को देखा जा सकता है यहां पर्यटक सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं रेल का साधन ग्वालियर से भिंड तक ही है वहां जाने के लिए एक्सप्रेस के अलावा पैसेंजर और सुपर फास्ट पैसेंजर ट्रेन चलती है | अटेर किले का इतिहास |

 किले का खंडहर होना

चंबल नदी के किनारे बना यह किला तल घरों को स्थानीय लोगों ने खजाने के लालच में खोद दिया अटेर के रहवासी बताते हैं कि दुर्ग के इतिहास को स्थानीय लोगों ने ही खो दिया है इस दुर्ग की दीवार और जमीन को खजाने की लालच में सैकड़ों लोगों ने खुदा है, जिसकी वजह से दुर्ग की इमारत जर्जर हो गई है | अटेर किले का इतिहास |

 चंबल घाटी के विषय में 

चंबल घाटी का उल्लेख महाभारत काल में भी हुआ है इसके अभिशप्त होने को उससे भी पहले राजा रंतिदेव के समय से जोड़ा जाता रहा है शुरू से ही बगावत को शरण देने वाले माने जाते रहे इसके बीहड़ों में दिल्ली से भागकर आए तोमर राजवंश ने भी शरण पाई थी मुगलों और अंग्रेजों के काल से डाकू समस्याओं के लिए इसे जाना जाने लगा था

80 के दशक में मध्यप्रदेश के भिंड जिले की चंबल घाटी में डाकू मलखान सिंह एक दुर्दांत नाम था यह इस घाटी का पहला डाकू था चंबल नदी के तट पर गोदावरी धाम मंदिर स्थित है जो भगवान हनुमान को समर्पित है मानसिंह को चंबल का सबसे खतरनाक डाकू बताया जाता है मानसिंह आगरा के राजपूत परिवार से ताल्लुक रखता था डकैत मानसिंह पर 1112 लूट और 125 हत्याओं के मामले दर्ज थे चंबल घाटी के डाकू अमीर लोगों को लूट कर गरीब लोगों की सहायता करते थे 

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