बक्सर के युद्ध का इतिहास 

बक्सर के युद्ध का इतिहास , बक्सर का युद्ध कब लड़ा गया , बक्सर युद्ध का कारण, बक्सर युद्ध का परिणाम , द्वितीय संधि

बक्सर के युद्ध का इतिहास 

प्लासी की लड़ाई में सिर्फ बंगाल का नवाब हारा था लेकिन बक्सर के युद्ध में बंगाल का नवाब, अवध का नवाब और मुगल बादशाह तीनों हारे थे प्लासी के युद्ध के द्वारा बंगाल में अंग्रेजों ने अपने इशारे पर नाचने वाले शक्ति को गद्दी पर बैठाया बक्सर के युद्ध ने इस बात का निर्णय किया कि बंगाल का असली मालिक कौन है, प्लासी ने यदि बंगाल में ब्रिटिश राज्य की आधारशिला रखी तो बक्सर ने इस आधार को मजबूत कर दिया था 1760 ईस्वी में मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाया गया था मीर कासिम एक महत्वकांक्षी शासक था

वह अंग्रेजों के नियंत्रण से मुक्त होकर बंगाल का शासन स्वतंत्र रूप से करना चाहता था उसने ईस्ट इंडिया कंपनी को कोलकाता में सिक्का डालने का अधिकार दे दिया नवाब को खुश करने के लिए अंग्रेजों ने बिहार डिप्टी गवर्नर रामनारायण को हटा दिया गया तभी उसकी संपत्ति जप्त कर ली गई मीर कासिम ने शासन से भ्रष्टाचार को भी समाप्त करने का प्रयास किया था उसने एक अनुशासित तथास्तु संगठित सेना खड़ी करने की कोशिश की थी अंग्रेजों के अनावश्यक हस्तक्षेप से बचने के लिए वह अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से उठाकर मुंगेर ले गया परंतु मीर कासिम की है योग्यता अंग्रेजों को खटक ने लगी बंगाल के नवाब के रूप में वे एक कठपुतली शासक चाहते थे 

बक्सर का युद्ध कब लड़ा गया 

बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 ईस्वी में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो तथा मुगल तथा नवाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था इस युद्ध में एक और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ,अवध का नवाब शूजाउदौला तथा मीर कासिम थे, दूसरी और अंग्रेजी सेना का नेतृत्व उनका कुशल सेनापति कैप्टन मुनरो कर रहा था दोनों सेनाएं बिहार में बलिया से लगभग 40 किलोमीटर दूर बक्सर नामक स्थान पर आमने सामने आ पहुंची

22 अक्टूबर 1764 को बक्सर का युद्ध प्रारंभ हुआ, किंतु युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व ही अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना से असद खान, साहू मल और जैनुल आबेदीन को धन का लालच देकर अलग कर दिया लगभग 3 घंटे में ही युद्ध का निर्णय हो गया जिसकी बाजी अंग्रेजों के हाथ में रही इसके बाद शाह आलम द्वितीय तुरंत अंग्रेजी दल से जा मिला और अंग्रेजों के साथ संधि कर ली मीर कासिम भाग गया तथा घूमता फिरता जिंदगी काटता रहा दिल्ली के समीप 1777 ईसवी में अज्ञात अवस्था में उसकी मृत्यु हो गई थी | बक्सर के युद्ध का इतिहास |

बक्सर युद्ध का कारण 

प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया लेकिन वह अपनी सुरक्षा तथा पद हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी पर निर्भर था जब तक वह कंपनी का लालच पूरा करता रहा तब तक पद पर ही बना रहा उसने खुले हाथों से धन लुटाया, किंतु प्रशासन संभाल नहीं सका सेना के खर्च, जमीदारों की बगावत से स्थिति बिगड़ रही थी, लगान वसूली में गिरावट आ गई थी, कंपनी के कर्मचारी दस्तक का जमकर दुरुपयोग करने लगे थे वह इसे कुछ रुपयों के लिए बेच देते थे

इसी से चुंगी बिक्री कर की आमद जाती रही थी बंगाल का खजाना खाली होता जा रहा था मीर जाफर के शासनकाल में ही उसका बेटा मिरन मर गया जिससे कंपनी को अवसर मिल गया था और उसने मीर कासिम जो जाफर का दामाद था, उसको सत्ता दिलवा दि थी इसके बाद 27 सितंबर 1760 को एक संधि भी हुई जिसमें कासिम ने ₹500000 तथा वर्धमान, मिदनापुर, चटगांव के जिले  कंपनी को दे दिए इसके बाद धमकी मात्र से जाफर को सत्ता से हटा दिया गया और मीर कासिम सत्ता में आ गया इस घटना को ही 1760 की क्रांति कहते हैं | बक्सर के युद्ध का इतिहास |

बक्सर युद्ध का परिणाम 

इस युद्ध का परिणाम यह रहा कि बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के ही ईस्ट इंडिया कंपनी को पूरा अवध मिल गया था पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ में चला गया था शुजाउदौला की हालत इतनी खराब हो गई थी कि उसने कंपनी के सामने 1765 में आत्मसमर्पण कर दिया था शाह आलम भी कंपनी के सम्मुख समर्पण कर दिया बंगाल अब कंपनी के अधीन हो गया था

अवध कंपनी पर आश्रित हो गया और मुगल सम्राट अंग्रेजों का पेंशन भोगी बन गया था पी. ई. रोबोट्स ने बक्सर के युद्ध के बारे में कहा कि प्लासी की अपेक्षा बक्सर को भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्मभूमि मानना कहीं अधिक उपयुक्त होगा बक्सर के युद्ध की समाप्ति के बाद क्लाइव ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय तथा अवध के नवाब शुजाउदौला के साथ इलाहाबाद की प्रथम एवं द्वितीय के संधि की थी इंडिया कंपनी को मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से बंगाल बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई

कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर मुगल सम्राट का आलम इंडिया कंपनी को मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से बंगाल बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर मुगल सम्राट का आलम द्वितीय को दे दिए थे कंपनी ने मुगल सम्राट को 26 लाख रुपए की वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया था | बक्सर के युद्ध का इतिहास |

द्वितीय संधि

 16 अगस्त 1765 ईस्वी को यह संधि हुई थी यह क्लाइव एवं शुजाउदौला के मध्य संपन्न हुई इस संधि की शर्त यह थी कि इलाहाबाद और कड़ा को छोड़कर अवध का शहर क्षेत्र नजमुदोला को वापस कर दिया गया कंपनी द्वारा अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के खर्च पर एक अंग्रेजी अवध में रखी गई कंपनी को अवध में कर मुफ्त व्यापार करने की सुविधा प्राप्त हो गई थी | बक्सर के युद्ध का इतिहास |

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