बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय 

बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय , बालकृष्ण भट्ट का जन्म , बालकृष्ण भट्ट की रचना, बालकृष्ण भट्ट का साहित्यिक योगदान , बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु

बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय 

बालकृष्ण भट्ट का हिंदी के निबंध कारों में महत्वपूर्ण स्थान है निबंधों के प्रारंभिक युग को निसंकोच भाव से भट्ट युग के नाम से जाना गया है भट्ट जी अपने युग के ना केवल सर्वश्रेष्ठ निबंधकार थे बल्कि इन्हें संपूर्ण हिंदी साहित्य में प्रथम श्रेणी का निबंध लेखक माना जाता है उन्होंने साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक आदि सभी विषय पर विचार व्यक्त किए हैं इन्होंने 300 से अधिक निबंध लिखे हैं इनके निबंधों का कलेवर अत्यंत संक्षिप्त है तथा 3 पृष्ठों में ही समाप्त हो जाते हैं इन्होंने विचारात्मक निबंध भी लिखे हैं और इन विचारात्मक निबंध को 4 श्रेणियों में विभाजित किया गया है बालकृष्ण भट्ट जी भारतेंदु मंडल के प्रधान सदस्य थे 

बालकृष्ण भट्ट का जन्म 

भारतेंदु युग के सर्वश्रेष्ठ निबंध कारों में बालकृष्ण भट्ट का नाम प्रमुख है इनका जन्म 30 जून 1844 ईसवी को प्रयाग में हुआ था इनका जन्म प्रयाग के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था इनके पिता जी का नाम “बेनी प्रसाद भट्ट” और इनकी माता जी का नाम ‘पार्वती देवी’ था भट्ट जी की माता अपने पति की अपेक्षा अधिक पढ़ी-लिखी और विदुषी थी उनका प्रभाव बालकृष्ण भट्ट जी पर अधिक पड़ा था इनकी प्रारंभिक शिक्षा1867मे प्रयाग में ही मिशन हाई स्कूल में संस्कृत भाषा में हुई थी भट्ट जी मिशन स्कूल में पढ़ते थे वहां के प्रधानाचार्य एक ईसाई पादरी थे उनसे वाद विवाद हो जाने के कारण इन्होंने मिशन स्कूल जाना बंद कर दिया इस प्रकार घर पर रहकर संस्कृत का अध्ययन करने लगे थे

अपने सिद्धांतों एवं जीवन मूल्यों के इतने प्रतिपादक थे कि कालांतर में इन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण मिशन स्कूल तथा कायस्थ पाठशाला के संस्कृत अध्यापक के पद से त्यागपत्र देना पड़ा था विद्या अध्ययन के पश्चात इसी मिशन स्कूल में हिंदी संस्कृत के अध्यापक पद पर आसीन हुए थे कुछ समय के बाद अध्यापन कार्य को छोड़कर साहित्य सेवा को प्रमुखता दी बालकृष्ण भट्ट को अंग्रेजी और उर्दू का भी व्यावहारिक ज्ञान था बालकृष्ण भट्ट ने  अपनी आजीविका के लिए कुछ समय तक व्यापार भी किया परंतु उसमें इनकी अधिक रूचि नहीं होने के कारण इन्हें सफलता नहीं मिल सकी सेवा वृत्ति को तिलांजलि देकर वे आजीवन हिंदी साहित्य की सेवा ही करते रहे भट्ट जी एक अच्छे और सफल पत्रकार भी थे हिंदी प्रचार के लिए उन्होंने संवत 1933 में प्रयाग में हिंदी वर्तनी नामक सभा की स्थापना की थी

1877 ईस्वी में “हिंदी प्रदीप” नामक प्रसिद्ध मासिक पत्रिका का संपादन कार्य प्रारंभ किया था यह मासिक पत्र उस समय का सर्वश्रेष्ठ पत्र माना जाता था इसी पत्र में उन्होंने 33 वर्ष तक कार्य किया और इसी 33 वर्षों में निबंध और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था इस पत्र की विशेषता अंग्रेजी शासन की कटु आलोचना करना था उस युग में भट्ट जी जैसा गंभीर चिंतन, अनुभवी व्यक्ति, पांडित्यपूर्ण भाषा का पारखी दूसरा निबंधकार नहीं था इसलिए भारतेंदु युगीन निबंधकारों में इनका सर्वश्रेष्ठ स्थान है | बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय |

बालकृष्ण भट्ट की रचना 

भट्ट जी के निबंध साहित्य सुमन तथा निबंधवली संकलित हैबालकृष्ण भट्ट जी के कुछ प्रसिद्ध उपन्यास है जैसे नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान ,रहस्य कथा, इनके नाटक है- दमयंती स्वयंवर, बाल विवाह, चंद्रसेन, रेल का विकट खेल आदि बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित निबंध जुबान उनके प्रमुख निबंधों में से एक है इस निबंध में मनुष्य की पांच इंद्रियों की चर्चा की गई है सब इंद्रियों का अपना अपना काम है कान का काम सुनना है जिसे नेत्रों को कोई सरोकार नहीं, इसी तरह नेत्रों का काम देखना है जिसे स्पर्श  से कोई सरोकार नहीं परंतु जुबान सभी इंद्रियों में इतनी प्रबल है कि वह स्वाद लेने के अतिरिक्त शब्द, स्पर्श, रूप, गंध सभी को अपने में समेट लेती है

नाक से सुनने पर जो सुगंधित लगता है उसकी तरफ जुबान अपने आप खींची चली जाती है जिसमें दुर्गंध आए उसे अपने आप दूर हो जाती है इसी तरह नेत्रों से देखने पर जो कुछ भी साफ और स्वच्छ खारा पदार्थ दिखता है तो जीभ से पानी टपकने लगता है इसी तरह से स्पर्श सुख का सूक्ष्म अनुभव भी जीभ कर सकती है इसी से जीव का ‘रसना’ नाम सार्थक है जीभ को काबू में रखने से सारी इंद्रियां काबू में आ जाती है फायदा और नुकसान दोनों जीभ से ही हो सकते हैं जुबान को ही सभ्य आचरण का प्रतीक माना जाता है | बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय |

बालकृष्ण भट्ट का साहित्यिक योगदान 

बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु काल के प्रमुख साहित्यकार हैं उन्हें भारतेंदु मंडल में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था हिंदी निबंधओं की शुरुआत करने में उनका भी योगदान था उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक, नैतिक आदि विषयों पर निबंध लिखे हैं विषय के अनुसार उनकी विवेचन शैली में भी अंतर आता चला गया  तथा कुछ गंभीर और विचार हैं उनके लेखन में उनके व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट दिखाई देती है

बालकृष्ण भट्ट की भाषा शैली

भाषा की दृष्टि से अपने समय के लेखकों में भट्ट जी का स्थान बहुत ही ऊपर है उन्होंने अपनी रचनाओं में यथाशक्ति शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया है भागों के अनुकूल शब्दों का चुनाव करने में वह बड़े ही कुशल थे अपनी रचनाओं में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी उन्होंने बहुत ही सुंदर ढंग से किया है बालकृष्ण भट्ट जी ने भाषा शैली की दृष्टि से तीन प्रकार के निबंध लिखे हैं पहले वे निबंध जिनमें संस्कृत के शब्दों की अधिकता है ऐसे निबंध  गहरे विचारों से परिपूर्ण है तथा उनमें अलंकारों की भरमार है दूसरे वे निबंध जिनमें उर्दू शब्दों की अधिकता है उर्दू प्रधान शैली में साधारण तथा व्यवहारिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है ऐसे निबंधों में मुहावरों का भी अति सुंदर प्रयोग किया गया है भट्ट जी की तीसरी शैली में अंग्रेजी और लोक प्रचलित शब्दावली का सुंदर प्रयोग हुआ है भट्ट जी ने विवेचन प्रधान निबंध लिखे हैं हिंदी के प्रारंभिक निबंधकार होते हुए भी सफल हैं | बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय |

बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु

 बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु 20 जुलाई 1984 को हुई थी बालकृष्ण भट्ट ने वर्णनात्मक शैली में व्यवहारिक तथा सामाजिक विषयों पर निबंध लिखे हैं जनसाधारण के लिए भट्ट जी ने इसी शैली को अपनाया है उनके उपन्यास की सैलरी भी यही है किंतु इसे उनकी प्रतिनिधि शैली नहीं कहा जा सकता इस शैली की भाषा सरल और मुहावरेदार है बालकृष्ण भट्ट ने अपनी रचनाओं में व्यंग्यात्मक शैली का भी प्रयोग किया है इस शैली में हास्य और व्यंग्य की प्रधानता है | बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय |

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