भगवान धन्वंतरी का इतिहास

भगवान धन्वंतरी का इतिहास, भगवान धन्वंतरी का जन्म , पौराणिक कथा , धनवंतरी के जन्म की दूसरी कथा , धनतेरस का त्यौहार 

भगवान धन्वंतरी का इतिहास 

धन्वंतरी वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है इन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव को प्रकट किया धनवंतरी के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धनवंतरी संता ही पाई जाती है जो आयुर्वेद का मूल्य ग्रंथ है आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरी जी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया था धनवंतरी वाराणसी के राजा रहे हैं धनवंतरी को चार हाथों से विष्णु के रूप में चित्रित किया गया है जिसमें शंख, चक्र, जालोका और अमृत युक्त एक बर्तन है उन्हें अक्सर शास्त्रों के बजाय हाथ में जोक लेकर दिखाया जाता है

आयुर्वेद के जानकार अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की थी इंद्र ने धनवंतरी को यह विद्या सिखाई थी काशी के राजा देवदास धनवंतरि के अवतार कहे गए हैं उनके पास जाकर विश्वामित्र पुत्र सुश्रुत आयुर्वेद पढ़ा अत्री और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वेद आरोग्य के देवता धनवंतरी ने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया, जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत नियुक्त किए गए थे सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ऋषि विश्वामित्र के पुत्र थे जिन्होंने “सुश्रुत संहिता” लिखी थी सुश्रुत विश्व के प्रथम शल्य चिकित्सक थे राजा विक्रमादित्य ने नवरत्नों में पहला नाम “धनवंतरी” का ही लिया जो महान शल्य चिकित्सक थे | भगवान धन्वंतरी का इतिहास |

भगवान धन्वंतरी का जन्म 

वेदों एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लगभग 5000 साल पहले वाराणसी एक वन प्रांत था जिसे आनंद कानन भी कहा जाता था महाराज काश ने इसे नगर का स्वरूप प्रदान किया था काश के पुत्र धनव के जब कोई संतान नहीं हुई तब उन्होंने समुद्र के देवता वरुण की उपासना की थी इसके बाद पुत्र के रूप में उन्हें धन्वंतरी प्राप्त हुए इनका आविर्भाव “कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी” तिथि को हुआ था अर्थात इस दिन हम धनतेरस का पर्व भी मनाते हैं पुराणों ने इन्हें भगवान का अवतार कहा है आयुर्वेद भी धन्वंतरी को देवता के समान मानता है वे सम्राट काश के घर पैदा तो अवश्य हुए थे परंतु भोग और विलास उन्हें आकर्षित नहीं कर पाया था

इन्होंने महर्षि भारद्वाज से प्रयाग में शिक्षा ग्रहण की थी महर्षि भारद्वाज एक वैद्य थे उन्होंने चंद्र पल्ली पादप से एक ऐसा रसायन निर्मित किया जिसके सेवन से मानव 10 साल तक जीवित रह सकता है भगवान धन्वंतरी का रसायन ही अमृत है भगवान धन्वंतरी को अमृतसर का जनक भी कहा गया है गंभीर अनुसंधान करके धन्वंतरी ने 24 प्रकार के सोमरस बनाएं थे सुनहरे रंग वाली पत्तियों शाखा तथा चंद्रवल्ली पौधा जो जल में ही पनपता था उसी से ही अमृत रसायन बनाया था भगवान धन्वंतरि की इस अमृत खोजने संसार की समस्त वेदों और वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित कर दिया था जिससे बाध्य होकर उन्हें भगवान का अवतार मानना पड़ा वेदव्यास जी ने विष्णु जी के 24 अवतारों में से एक अवतार धनवंतरी को कहा है | भगवान धन्वंतरी का इतिहास |

पौराणिक कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया जिसमें 14 रत्न निकले थे अंतिम रतन अमृत था जिसे धनवंतरी हाथ में कलश लिए हुए अमृत को लेकर प्रकट हुए थे माता लक्ष्मी, रंभा, धनवंतरी मानव रूप में प्रकट हुए थे तब भगवान विष्णु धन्वंतरी के रूप में प्रकट हुए थे भगवान विष्णु ने कहा देवता और असुर एक ही पिता कश्यप की संतान है देवता आत्मा को और असुर शरीर को ही सब कुछ मानते थे इस बात को लेकर समुंदर तट पर गहन विचार चला था समुंद्र मंथन से जो रतन निकले थे उनका विभाजन भी देव और दानवो में हुआ था रत्नो के विभाजन को लेकर संघर्ष भी हुआ था तब धन्वंतरी ने अमृत रसायन का निर्माण किया था जिसे प्राप्त करने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध भी हुआ था

उसी को देवासुर संग्राम भी कहा जाता है धनवंतरी के आयुर्वेद का इतना प्रभाव था सभी देवता भी उनकी चिकित्सा का सम्मान करते थे क्योंकि जो ज्ञान धन्वंतरी को प्राप्त हो गया था वह स्वर्ग में भी दुर्लभ था ज्ञान औषधि से ना केवल रोग बल्कि वृद्धावस्था भी दूर की जा सकती थी अपितु इससे अकाल मृत्यु से भी बचा जा सकता था भगवान धन्वंतरी के कथन के अनुसार 101 प्रकार की मृत्यु मनुष्य के जीवन में आती है इसमें एक ही काल मृत्यु होती है जो प्रत्येक जीवधारी को स्वीकार करनी पड़ती है शेष100 अकाल मृत्यु होती है जिन्हें रोका जा सकता है उन्हें रोकने का प्रयास ही चिकित्सा है 

धनवंतरी के जन्म की दूसरी कथा 

धनवंतरी से जुड़ी दूसरी कथा के अनुसार एक बार जंगल भ्रमण के क्रम में एक ऋषि को की प्यास लग गई वह थक कर चूर हो चुके थे ऋषि का गला प्यार से सूख रहा था तभी संयोग से वीरभद्र नामक लड़की अपने माथे पर पानी का घड़ा लिए गुजर रही थी उस युवती ने उन्हें जल पिलाया तब जाकर ऋषि की जान में जान आई ऋषि ने प्रसन्न होकर अनजाने में उस युवती को अति ज्ञानवान पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया था उन्होंने कहा कि तुम्हारा पुत्र अपनी ज्ञान की ज्योति से समस्त संसार को आलोकित करेगा लेकिन जब लड़की ने बताया कि वह कुंवारी है तब ऋषि ने घास फूस का पुतला बनाकर उस लड़की की गोद में रखकर मंत्र का आह्वान किया

मंत्र के आह्वान से वह पुतला एक जीवित बालक के रूप में परिवर्तित हो गया कहते हैं कि यह बालक आगे चलकर विश्व के महान आयुर्वेदाचार्य के रूप में जगत प्रसिद्ध हुए धनवंतरी के अनेक शिष्य हुए जिन्होंने आयुर्वेद ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाकर लोक कल्याण किया उनके शिष्यों में सुश्रुत और आचार्य दिवो दास प्रसिद्ध माने जाते हैं सुश्रुत के द्वारा रचित ग्रंथों में भी धनवंतरी के विद्वता और प्रतिभा का उल्लेख मिलता है | भगवान धन्वंतरी का इतिहास |

धनतेरस का त्यौहार 

आज भी सनातन धर्म में भगवान धन्वंतरि की जयंती धनतेरस मनाई जाती है इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था इसलिए इसे धनतेरस के त्योहार के रूप में मनाया जाता है धन्वंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिन बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई इसलिए दीपावली से 2 दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है भगवान धन्वंतरी देवताओं के वैद्य हैं इनकी पूजा करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के साथ-साथ यमराज और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है धनतेरस के दिन कुबेर के बिना माता लक्ष्मी की पूजा अधूरी है धनतेरस के दिन संध्या के समय घर के मुख्य द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है | भगवान धन्वंतरी का इतिहास |

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