भगवान परशुराम का इतिहास 

भगवान परशुराम का इतिहास, भगवान परशुराम का जन्म, परशुराम का नाम परशुराम क्यों पड़ा, परशुराम ने अपनी माता का सिर क्यों काटा, भगवान परशुराम के शिष्य 

भगवान परशुराम का जन्म 

प्राचीन काल में कन्नौज में गाधी नाम के एक राजा राज्य करते थे उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यंत रूपवती कन्या थी राजा गाधी ने सत्यवती का विवाह रघुनंदन ऋषि के साथ किया सत्यवती के विवाह के पश्चात वह भृगु ऋषि ने आकर अपनी पुत्रवती को आशीर्वाद दिया और उसे वर मांगने के लिए कहा इस पर सत्यवती ने ससुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपने और अपने माता के लिए एक पुत्र की याचना की सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुए कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी मां पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना फिर मेरे द्वारा दिए गए इन चरुओ का सावधानी के साथ अलग-अलग सेवन कर लेना

इधर जब सत्यवती की मां ने देखा कि  भृगु ने अपने पुत्र वधू को उत्तम संतान होने का चरू दिया है तो उसने अपने चरू को अपनी पुत्री के साथ बदल दिया इस प्रकार सत्यवती ने अपने माता वाले चरू का सेवन कर लिया योग शक्ति से भृगु ऋषि को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले की पुत्री तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है इसलिए अब तुम्हारी संतान ब्राह्मण होते हुए भी क्षेत्रीय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी

इस पर सत्यवती ने भृगु से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करें भले ही मेरा पोत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करें भृगु ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ जमदग्नि अत्यंत तेजस्वी थे बड़े होने पर उनका विवाह प्रसनजीत की कन्या रेणुका के साथ हुआ था रेणुका के 5 पुत्र थे बसु, रुकुमवान,सुखेण,विश्वानस और परशुराम भगवान परशुराम जी का जन्म “वैशाख शुक्ल तृतीया” के दिन हुआ था | भगवान परशुराम का इतिहास |

परशुराम का नाम परशुराम क्यों पड़ा

 बचपन में परशुराम जी को उनके माता-पिता ‘राम’ कहकर बुलाते थे बाद में जब बड़े हुए तब उनके पिता जमदग्नि ने उन्हें हिमालय जाकर भगवान शिव की आराधना करने को कहा पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया उनके तप से प्रसन्न होकर शिव ने दर्शन दिए और असुरों के नाश का आदेश दिया राम ने अपना पराक्रम दिखाया और असुरों का नाश हो गया राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें ‘परशु’ नाम का एक शास्त्र दिया इसलिए वह राम से परशुराम हो गए 

परशुराम ने अपनी माता का सिर क्यों काटा

  एक बार जमदग्नि ऋषि ने अपनी पुत्री रेणुका को जल लेने के लिए भेजा तब रेणुका नदी में चित्ररथ अप्सराओं के साथ स्नान कर रहे थे यह देख रेणुका कुछ समय के लिए वहीं रुक गई इधर यज्ञ समय व्यतीत हो गया जमदग्नि ऋषि ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब देख लिया और रेणुका को लौटने के बाद कहा कि तुमने घोर पाप किया है उन्होंने अपने चारों पुत्रों को अपनी मां का गला काटने का आदेश दिया लेकिन माता प्रेम के चलते चारों भाइयों में से किसी ने उनको नहीं मारा

उतने में ही परशुराम जी आए और उनके पिता जमदग्नि ने अपनी माता और चारों भाइयों का सिर काटने का आदेश दिया भगवान परशुराम ने अपने पिता के आदेश के मुताबिक अपनी माता और चारों भाइयों के सिर काट दिए परशुराम जी से प्रसन्न होकर उनके पिताजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा परशुराम जी ने वरदान मांगा कि उनके भाई और माता फिर से जीवित हो जाएं और उन्हें इस घटना के बारे में कुछ भी याद ना रहे | भगवान परशुराम का इतिहास |

परशुराम द्वारा क्षत्रियों का विनाश

परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का विनाश किया था भगवान परशुराम जी युद्ध लड़ने में बहुत ही माहिर थे उन्होंने क्षत्रियों का विनाश कर इस धरती को मुक्त किया था एक बार वंश आदिपति कार्तवीर्यार्जुन एक बार जमदग्नी के आश्रम में आए और वहां उनके स्वागत से काफी प्रसन्न हुए और इसका कारण थी ‘कामधेनु’ गाय का कार्तवीर्यार्जुन जाते समय कामधेनु गाय को बिना पूछे ले गए और जब परशुराम जी आश्रम में आए तब उनको यह बात पता चली तब वह क्रोधित होकर कार्तवीर्यार्जुन को युद्ध के लिए ललकारा इसके बाद परशुराम जी ने कार्तवीर्यार्जुन की हजार भुजाओं को काट के उसका वध कर दिया +

इसके बाद इसका बदला लेने के लिए कार्तवीर्यार्जुन के पुत्रों ने परशुराम जी की अनुपस्थिति में उनकी माता और उनके पिता जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया इससे क्रोधित होकर परशुराम ने प्रतिज्ञा की कि जब तक वह ‘अह’ वंश के सभी क्षत्रियों को समाप्त नहीं कर देंगे और उन्होंने यह किया भी था उन्होंने 21 बार ‘अह’ वंश के क्षेत्रीय का विनाश किया था  लेकिन वह हर युद्ध में केवल गर्भवती महिलाओं को ही छोड़ते थे उन्होंने है क्षत्रियों का विनाश कर के रक्त से पांच सरोवर भर दिए थे | भगवान परशुराम का इतिहास |

परशुराम जी की पौराणिक कथा 

परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे आवेश अवतार हैं एक बार जब परशुराम जी भगवान शिव से मिलने कैलाश गए तब महादेव ध्यान में थे इसलिए श्री गणेश ने परशुराम जी को रोक दिया इस पर परशुराम जी इतने नाराज हो गए की उनके बीच घमासान युद्ध हो गया इस युद्ध के दौरान परशुराम जी के परसे के वार से ‘गणपति’ जी का एक दांत टूट गया और तभी से गणेश जी को एक दंत भी कहा जाता है उसी टूटे दांत से गणपति जी ने महाभारत लिखी थी

जब प्रभु श्री राम और परशुराम जी आमने सामने आए तो क्या हुआ भगवान राम माता सीता के स्वयंवर में गए तो वहां उनसे प्रत्यंचा चढ़ाते हुए शिव धनुष टूट गया धनुष टूटने की आवाज सुनकर भगवान परशुराम की वहां आ गई क्योंकि वह धनुष भगवान शिव का था इसलिए परशुराम जी को क्रोध आ गया और भगवान राम व लक्ष्मण से उलझ पड़े लक्ष्मण से उनका संवाद विवाद रूप में बदल गया लेकिन जब भगवान विष्णु के सारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो परशुराम जी ने भगवान राम की वास्तविकता को जान लिया

उस समय भगवान राम ने एक चीज परशुराम जी को सौंपकर कहा कि इसे कृष्णावतार तक संभाल कर रखे भगवान राम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था कृष्ण अवतार के समय जब भगवान श्री कृष्ण ने “गुरु संदीपनी” के यहां शिक्षा ग्रहण की तब परशुराम जी ने आकर श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र सौंप दिया था यह भी कहा जाता है कि महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों भीष्म,गुरु द्रोण,और कर्ण को भगवान परशुराम जी ने शस्त्र विद्या सिखाई थी जब परशुराम जी अपने जीवन भर की कमाई ब्राह्मणों को दान कर रहे थे

तब द्रोणाचार्य उनके पास पहुंचे तब तक वे सब कुछ दान कर चुके थे तब परशुराम ने दया भाव से द्रोणाचार्य से कोई भी अस्त्र-शस्त्र चुनने के लिए कहा तब चतुर द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं आपके सभी अस्त्र-शस्त्र उनके मंत्रों सहित चाहता हूं ताकि जब भी उनकी आवश्यकता हो तब उसका प्रयोग किया जा सके परशुराम जी ने कहा ऐसा ही हो इससे द्रोणाचार्य शास्त्र विद्या में निपुण हो गए | भगवान परशुराम का इतिहास |

भगवान परशुराम के शिष्य 

दानवीर कर्ण भी परशुराम जी के शिष्य थे क्योंकि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही शस्त्र प्रशिक्षण देते थे लेकिन करण को पता नहीं था कि वह एक सूत पुत्र था ब्राह्मण नहीं या फिर उनकी हकीकत में वह एक क्षत्रिय थे जब परशुराम जी को यह पता चला तब उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जब जरूरत पड़ेगी तब वह सारा शास्त्र ज्ञान भूल जाएगा इसलिए कर्ण अर्जुन के सामने हार गए थे अंत में उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया और शक्ति युक्त पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया इसके बाद परशुराम जी गिरी श्रेष्ठ महेंद्र पर्वत पर चले गए

महेंद्र पर्वत हाल के उड़ीसा राज्य में है और कहा जाता है भगवान परशुराम आज भी यहीं पर है भारत में कई जगह पर भगवान परशुराम के मंदिर हैं जैसे कि परशुराम मंदिर आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर ,राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के इंदौर में जनपद हिल जी से उनका जन्म स्थल भी माना जाता है कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के 10वे अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे वे कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे | भगवान परशुराम का इतिहास |

 

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