भाटी राजवंश का इतिहास, तीसरी राजधानी , जैसलमेर पर आक्रमण, भाटी वंशावली, जैसलमेर भाटी वंशावली, भाटी वंश का गोत्र, भाटी जाति, भाटी राजपूत की शाखाएं
भाटी राजवंश का इतिहास
जैसलमेर के भाटी चंद्रवंशी यादव थे वह अपने आप को भगवान श्री कृष्ण का वंशज बताते हैं जैसलमेर के राजवंश संग्रहालय में रखा मेघा आडंबर छत्र भगवान श्री कृष्ण का शासकीय छत्र है यह छत्र करीब 5000 साल पुराना है यह चित्र भगवान श्री कृष्ण का शासकीय छतर था जो कि उन्होंने अपने वंशजों को आशीर्वाद के रूप में दे दिया था आज भी यह छत्र भाटी राजवंशों के पास हैं इसी छत्र के कारण इस वंश को “छत्राला यादव पति” कहा जाता है “स्वांगिया माता” भाटी वंश की कुलदेवी मानी जाती है स्वांगिया माता को ‘उत्तर ढ़ाल’ के नाम से भी जाना जाता है 750 से 800 ईसवी के लगभग भाटी पंजाब से आकर राजस्थान के रेगिस्तान में बस गए थे
8वीं -9वीं शताब्दी के बीच भाटी वंश के लोग राजस्थान के कई राज्यों में अपना शासन करने लगे थे भट्टी नाम के व्यक्ति ने 285 ईसवी में भाटी वंश की स्थापना की थी भाटी वंश की स्थापना की थी इन्होंने भटनेर किले का निर्माण करवा कर इसे अपनी राजधानी बनाया था बाद में इस किले को इनके पुत्र ‘भूपत’ ने पूरा करवाया था भटनेर का किला वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले में स्थित है भट्टी को ही भाटी वंश का आदि पुरुष और भाटी राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है
भटनेर किले के कारण ही भाटियों को उत्तरी सीमा का प्रहरी कहा जाता है यह उपाधि इसलिए दी गई है क्योंकि यह उत्तर भाग के उत्तर व पश्चिम में आक्रमणकारियों से रक्षा करता था इस किले ने अपने इतिहास में सबसे अधिक आक्रमणों का सामना किया है और वर्तमान में भी यह किला अपनी पहचान बनाए हुए हैं
दूलचंद भाटी के समय भटनेर के दुर्ग पर तैमूर लंग ने आक्रमण किया था इस आक्रमण में दूलचंद भाटी वीरगति को प्राप्त हुए थे और उनकी रानियों ने जौहर किया था इस किले के मजबूत स्तंभों को देखकर तैमूर दंग रह गया इसके बाद “मंगल राय भाटी” गजनी के एक शासक से पराजित हो गया इसके बाद उन्होंने भटनेर को छोड़कर ‘तनोट’ को भाटी राजवंश की राजधानी बनाया
इसके बाद केहर सिंह भाटी ने तनोट मंदिर का निर्माण करवाया था तनोट माता को ‘रुमाल वाली माता’ भी कहा जाता है यहां पर 1965 में भारत और पाकिस्तान के युद्ध के समय भारत की जीत हुई थी इस जीत के प्रतीक के रूप में यहां पर विजय स्तंभ बना हुआ है | भाटी राजवंश का इतिहास |
तीसरी राजधानी
इसके बाद तनोट के शासक देवराज भाटी ने पवार शासकों से ‘लूथरमा’ को जीतकर भाटी राजवंश की तीसरी राजधानी बनाया वर्तमान में यह जैसलमेर के निकट स्थित है और जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है इसके बाद विजय राज भाटी को धनावा किला लेख में इन्हें “महाराजा” की उपाधि से नवाजा गया है
विजय राज भाटी के समय भटनेर दुर्ग पर मोहम्मद गजनवी ने आक्रमण किया था और रानियों ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया था विजय राज का पुत्र महारावल भोज आक्रमणकारियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था महारावल जैसल देव भाटी ने 1152 से 1167 ईस्वी तक शासन किया था
जैसलमेर दुर्ग को राव जैसल के पुत्र शालीवाहन प्रथम ने 1148 ईसवी के आसपास पूर्ण करवाया था राव जैसल ने जैसलमेर दुर्ग की स्थापना त्रिकोणी पहाड़ी पर करवाई थी जिसे त्रिकुट भी कहा जाता है इसके अलावा जैसलमेर दुर्ग को सुनारगढ़, स्वर्ग गिरी और भाटियों की मरोड़ भी कहा जाता है जैसलमेर दुर्ग में 99 बुर्ज बने हुए हैं
जैसलमेर में चित्तौड़गढ़ के बाद सबसे बड़ा किला जैसलमेर दुर्ग को ही माना जाता है इस किले का परकोटा घागरा नुमा आकृति का बना हुआ है जिसे ‘कमर कोट’ कहा जाता है यह किला बिना चूना पत्थर के बनाया गया है इस किले का निर्माण पत्थरों को आपस में जोड़कर किया गया है यह राजस्थान का एकमात्र किला है जिसमें चूने का प्रयोग नहीं किया गया है | भाटी राजवंश का इतिहास |
जैसलमेर पर आक्रमण
मूलराज प्रथम ने जैसलमेर पर 1296 ईस्वी से 1600 ईसवी तक शासन किया था मूलराज प्रथम के समय में अलाउद्दीन खिलजी ने जैसलमेर पर आक्रमण किया था आक्रमण का कारण यह था कि भाटियो ने अलाउद्दीन खिलजी के घोड़ों को चुरा लिया था उसी समय जैसलमेर का प्रथम साका हुआ था इस युद्ध में मूलराज प्रथम वीरगति को प्राप्त हुए उस समय साका का अर्थ हुआ करता था राजपूत
अपनी आन बान शान के लिए केसरिया धारण कर के दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होते हैं रानियां अपने आप को जोहर कर लेती है ताकि दुश्मनों के हाथ उन तक ना पहुंचे इसके बाद “दुर्जन साल” ने1358 से 1388 के बीच शासन किया उसी समय फिरोजशाह तुगलक ने जैसलमेर पर आक्रमण किया उस समय जैसलमेर का दूसरा साका हुआ था इसके बाद “महारावल गड़सी” ने 1316 से 1334 ईस्वी तक शासन किया
इन्होंने जैसलमेर के निकट गड़सी नामक तलाब भी बनवाया 1366 को महारावल गड़सी की मृत्यु हुई थी इसके बाद “महारावल लूणकरण भाटी” ने 1528 से 1550 तक शासन किया इन्होंने अपनी पुत्री का विवाह मालदेव के साथ करवाया था लूणकरण ने ‘जैत पद’ यज्ञ करवाया था जिसका अर्थ होता है कि जिन हिंदुओं ने इस्लाम धारण कर लिया था उन्हें फिर से हिंदू बनाने के लिए यह यज्ञ करवाया गया था भारतीय इतिहास में यह शुद्धीकरण की पहली घटना थी
लूणकरण ने कंधार के आमिर खान को अपना धर्म भाई बनाया था जिसने बाद में विश्वासघात किया था उसने जैसलमेर को अपने कब्जे में करने के लिए षड्यंत्र रचा था 1550 ईसवी में यह जैसलमेर का अर्ध साका हुआ इसमें पुरुषों ने वीरगति तो प्राप्त की थी परंतु महिलाओं ने जोहर नहीं किया था क्योंकि भाटी सेना ने अंत में विजय प्राप्त की थी इसके बाद “हरराज भाटी” ने 1561 से 1677 तक शासन किया
1570 ईस्वी में नागौर के दरबार में भारमल के कहने पर अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी पुत्री नाथी बाई का विवाह अकबर से करवाया था हर राज भाटी मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाले पहले राज भाटी थे इसके बाद “भीम सिंह भाटी” ने 1577 से 1613 ईस्वी तक शासन किया भीम सिंह भाटी ने अपनी पुत्री का विवाह जहांगीर से किया था भीम सिंह भाटी ने अपनी पुत्री का विवाह जहांगीर से किया था
इसके बाद “अमर सिंह भाटी” ने 1659 से 1701 ईसवी तक शासन किया यह औरंगजेब के समकालीन थे इन्होंने सिंधु नदी का पानी जैसलमेर में लाने के लिए ‘अमरप्रकाश’ नामक झील का निर्माण करवाया था इसके बाद “अखि सिंह भाटी” ने 1722- 1761 ईसवी तक शासन किया इन्होंने जैसलमेर में कर प्रणाली को निश्चित करने का काम किया था इसके बाद “मूलराज द्वितीय” ने 1761 से 1819 ईसवी तक शासन किया
इन्होंने 12 दिसंबर 1818 को अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली थी इसके बाद महारावल गज सिंह भाटी ने 1819 -1846 ईसवी तक शासन किया इन्होंने 1878 में जो अफगान का युद्ध हुआ था उसमें अंग्रेजों की मदद की थी इसके बाद “रणजीत सिंह भाटी” ने 1846-1864 ईसवी तक शासन किया था इसके बाद “बेरिसाल सिंह भाटी” ने 1864 – 1890 तक शासन किया था
इन्होंने 1885 में जैसलमेर में ‘नथमहल हवेली’ का निर्माण करवाया था इसके बाद “शालिवाहन सिंह द्वितीय” ने 1890 से 1914 ईस्वी तक शासन किया था इनके समय में मोहनगढ़ दुर्ग का निर्माण हुआ था अंतिम शासक जवाहर सिंह, रघुनाथ सिंह और पृथ्वी सिंह थे जैसलमेर में प्रत्येक शासक के स्मारक में एक संगमरमर का स्लैब है जिसमें घोड़े पर सवार व्यक्ति को दर्शाया गया है इसे झुंझार बोला जाता है जो देव तुल्य होता है
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