बीकानेर का इतिहास

बीकानेर का इतिहास , बीकानेर राज्य स्थापना, गिरी सुमेल का युद्ध, मुगलों के साथ संबंध स्थापित, जूनागढ़ किले का निर्माण 

बीकानेर राज्य स्थापना

 बीकानेर पर राव बीकाजी ने 1465 से 1504 ईसवी तक शासन किया था जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के बेटे थे राव बीकाजी जो अपने पिता से अलग होकर अपने विश्वस्त सरदारों के साथ नए राज्य की स्थापना हेतु जांगल प्रदेश की ओर चले गए थे बीकानेर का प्राचीन नाम जांगल प्रदेश था करणी माता के वरदान से राव बीकाजी ने कई छोटे-बड़े राज्यों को जीतकर 1465 में राठौड़ वंश की स्थापना की थी इसके बाद 1488 ईस्वी में उन्होंने बीकानेर की स्थापना की थी और उसे अपनी राजधानी बनाया

1504 ईसवी में राव बीका जी का निधन हो गया था इसके बाद “राव लूणकरण” ने 1504 ईसवी से लेकर 1526 ईसवी तक बीकानेर पर शासन किया था लूणकरण ने अपने पराक्रम से बीकानेर राज्य का विस्तार किया था जैसलमेर के नरेश रावल जेत सिंह को हराकर उन्होंने समझौते के लिए बाध्य किया सन 1526 में लूणकरण ने नारनौल के नवाब पर आक्रमण कर दिया परंतु डोसा स्थान पर वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे इसके बाद इनके बेटे “राव जैतसी” बीकानेर की गद्दी पर बैठे थे | बीकानेर का इतिहास |

गिरी सुमेल का युद्ध

 राव जैतसी  ने 1526-1542 ईसवी तक बीकानेर की गद्दी पर शासन किया था अपने पिता की मृत्यु के बाद इन्होंने बीकानेर की बागडोर संभाली थी इनके समय में बाबर के पुत्र और लाहौर के शासक कामरान ने सुदृढ़ किले भटनेर पर 1534 में आक्रमण करके अपने अधिकार में कर लिया था इसके बाद कामरान ने बीकानेर पर आक्रमण किया और एक बार तो बीकानेर पर कब्जा भी किया परंतु  राव जैतसी ने 26 अक्टूबर 1534 को एक मजबूत सेना इकट्ठे कर “कामरान” पर आक्रमण कर दिया

अप्रत्यक्ष आक्रमण से मुगल सेना बीकानेर छोड़कर भाग गई और राव जैतसी इस युद्ध में विजई रहे थे इसके बाद 1541 ईसवी में जोधपुर के शासक मालदेव ने भी बीकानेर पर आक्रमण किया था जिसमें राव जैतसी की मौत हो गई थी और बीकानेर पर मालदेव का कब्जा हो गया था इसके बाद 1544 में राव जैतसी के बेटे “कल्याणमल” ने शेरशाह सूरी के साथ मिलकर बीकानेर पर आक्रमण किया जिसे गिरी सुमेल का युद्ध कहा जाता है

इस युद्ध में मालदेव को हरा दिया गया और बीकानेर की गद्दी पर कल्याणमल ने शासन किया इन्होंने 1544 से लेकर 1574 ईसवी तक बीकानेर की गद्दी पर राज किया था यह बीकानेर के पहले शासक थे जिन्होंने 1570 में अकबर के नागौर दरबार में उपस्थित होकर उनकी अधीनता स्वीकार की थी और मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे कल्याणमल ने अपने छोटे बेटे “पृथ्वीराज” जो कि उच्च कोटि के कवि और विद्वान थे उसे अकबर की सेना में छोड़ दिया था अकबर के नवरत्नों में से एक था पृथ्वीराज ने ही प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ ‘कृष्ण रुक्मणी’ की रचना की थी | बीकानेर का इतिहास |

मुगलों के साथ संबंध स्थापित

 इसके बाद अकबर ने नागौर दरबार के बाद 1572 ईस्वी में कल्याणमल के बेटे रायसिंह को जोधपुर की देखरेख के लिए नियुक्त किया था सन 1574 ईस्वी में राव कल्याणमल की मृत्यु हो गई थी इसके बाद बीकानेर के राजा राय सिंह बने थे उन्होंने बीकानेर की गद्दी को संभाला था बीकानेर के शासकों का मुगलों के साथ संबंध शेरशाह सूरी के समय से ही स्थापित हो गए थे राजा राय सिंह का जन्म 20 जुलाई 1541 ईस्वी को हुआ था महाराजा रायसिंह के शासनकाल में बीकानेर रियासत के मुगलों से  घनिष्ठ संबंध हो गए थे जिस संबंध का सूत्रपात इनके पिता कल्याणमल ने अकबर के शासन में किया उसको राय सिंह ने आगे बढ़ाया था

रायसिंह अकबर के कार्य, कुशल और राजनीतिक निपुण योद्धा में से एक थे थोड़े समय में ही वह अकबर के विश्वासपात्र बन गए थे जोधपुर के बाद अकबर के बीकानेर से ही अच्छे संबंध स्थापित हो चुके थे जब जोधपुर के राजा चंद्रसेन ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की तब अकबर ने जोधपुर पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया और जोधपुर को राय सिंह के अधिकार में दे दिया था 1573 ईस्वी में राय सिंह ने इब्राहिम हुसैन मिर्जा के साथ युद्ध किया था

राय सिंह ने शाही सेना का नेतृत्व करते हुए “इब्राहिम मिर्जा” को कठोली नामक स्थान पर घेर लिया था जिसे कठोली की लड़ाई कहा जाता है इसके बाद राय सिंह ने 1574 ईसवी में जोधपुर के सिवाना किले पर अपना अधिकार जमा लिया था इसके बाद 1576 ईस्वी में राजस्थान के जालौर के शासक देवड़ा का दमन करने के लिए राय सिंह के नेतृत्व में शाही सेना भेजी गई ताजका और सुल्तान ने राय सिंह के समक्ष उपस्थित होकर अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी रायसिंह ज्ञानी और दानवीर थे रायसिंह को राजपूताने का करण भी कहा जाता है | बीकानेर का इतिहास | 

जूनागढ़ किले का निर्माण 

राय सिंह ने अपने मंत्री कर्म चंद की देखरेख में 1589- 1694 तक जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया था इसके बाद महाराणा “कर्ण सिंह” ने 1631 से लेकर 1669 तक बीकानेर पर शासन किया था अपने पिता सुर सिंह की मौत के बाद बड़े बेटे कर्ण सिंह ने बीकानेर की गद्दी संभाली थी यह बीकानेर के प्रतापी राजा हुए थे करण सिंह के समय अनेक साहित्यिक ग्रंथों की रचना हुई थी जिसमें “कर्ण भूषण”,कल्प भ्रम’ यह गंगा मैथिली द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ है इसके बाद महाराजा अनूप सिंह ने 1669 से लेकर 1698 तक बीकानेर की गद्दी पर शासन किया था इनकी दक्षिण में मराठों के विरुद्ध की गई कार्रवाई से खुश होकर औरंगजेब ने इन्हें “महाराजा” की उपाधि दी थी

महाराजा अनूप सिंह एक विद्वान,कूटनीतिज्ञ और संगीत प्रेमी थे इन्होंने अनेक संस्कृत ग्रंथों की रचना की थी इनके दरबारी विद्वानों ने दरबारी विद्वानों ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की इनमें मणिराम की लिखी हुई जो अनूप संगीत विलास, अनंत भट्ट की लिखी हुई तीर्थ रत्नाकर और संगीत आचार्य भवा भट्ट की लिखी हुई अनूप संगीत विलास यह वह ग्रंथ है जो उनके शासनकाल में लिखे गए प्रसिद्ध ग्रंथ थे उन्होंने दक्षिण भारत से अनेक ग्रंथ लाकर अपने पुस्तकालय में सुरक्षित किए थे अनूप पुस्तकालय में वर्तमान में ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण ग्रंथों का संग्रह मौजूद है

सन 1818 में बीकानेर रियासत ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि कर ली थी इस प्रकार बीकानेर ब्रिटिश प्रभुत्व में चला गया राठौड़ वंश का तीसरा राज्य किशनगढ़ था इसकी स्थापना 1609 में जोधपुर के शासक उदय सिंह के बेटे किशन सिंह ने की थी जहांगीर ने यहां के  शासक को महाराजा का खिताब दिया था और यहां महाराजा सावंत सिंह प्रसिद्ध राजा हुए जो कृष्ण भक्ति में राजपाट छोड़कर वृंदावन चले गए थे और बाद में नागरिक दास के नाम से प्रसिद्ध हुए थे | बीकानेर का इतिहास |

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