चौधरी चरण सिंह का जीवन परिचय

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चौधरी चरण सिंह का जीवन परिचय

चौधरी चरण सिंह एक भारतीय राजनेता और देश के पांचवें प्रधानमंत्री थे भारत में उन्हें किसानों की आवाज बुलंद करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है यह भारत के प्रधानमंत्री बनें परंतु उनका कार्यकाल बहुत ही छोटा रहा

प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने भारत के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के तौर पर भी कार्य किया था वह दो बार उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे और उसके पूर्व दूसरे मंत्रालयों का कार्यभार भी संभाला था वह महज 5 महीने और कुछ दिन ही देश का प्रधानमंत्री रह पाए और बहुमत सिद्ध करने से पहले ही त्यागपत्र दे दिया | चौधरी चरण सिंह का जीवन परिचय |

चौधरी चरण सिंह का जन्म

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के ‘नूरपुर’ गांव में एक किसान परिवार में हुआ था इनके पिता जी का नाम चौधरी मीर सिंह था इनके परिवार का संबंध बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह से था जिन्होंने 1887 की क्रांति में अपना विशेष योगदान दिया था ब्रिटिश हुकूमत ने नाहर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक में फांसी पर चढ़ा दिया था

अंग्रेजों के अत्याचार से बचने के लिए नाहर सिंह के समर्थक और चौधरी चरण सिंह के दादा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में निष्क्रमण कर गए चौधरी चरण सिंह को आरंभ से ही शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ जिसके कारण उनका शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा

उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूरपुर में ही हुई और उसके बाद मैट्रिकुलेशन के लिए उनका दाखिला मेरठ के सरकारी हाई स्कूल में करा दिया गया सन 1923 में चरण सिंह ने विज्ञान विषय में स्नातक किया और 2 वर्ष बाद सन् 1925 में उन्होंने कला वर्ग में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की इसके पश्चात उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1928 में गाजियाबाद में वकालत आरंभ कर दिया वकालत के दौरान वह अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष उन्हें न्याय पूर्ण प्रतीत होता था 

चौधरी चरण सिंह का विवाह 

चरण सिंह का विवाह सन 1929 में गायत्री देवी के साथ हुआ था इन दोनों के 5 संतानें हुई उनके पुत्र अजीत सिंह अपनी पार्टी ‘राष्ट्रीय लोक दल’ के अध्यक्ष हैं 

 चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन 

चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929 )के बाद गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया और सन 1930 में “सविनय अवज्ञा आंदोलन” के दौरान “नमक कानून” तोड़ने के जुर्म में चरण सिंह को 6 महीने की सजा सुनाई गई थी जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वयं को देश के स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया था इसके बाद सन् 1937 में मात्र 34 वर्ष की उम्र में वे ‘छपरौली’ से विधानसभा के चुनाव के लिए चुने गए और कृषिको के अधिकार की रक्षा के लिए विधानसभा में एक बिल पेश किया

यह बिल किसानों द्वारा पैदा की गई फसलों के विपड़न से संबंधित था इसके बाद इस बिल को भारत के तमाम राज्यों ने अपनाया सन 1940 में गांधी जी द्वारा किए गए व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह को गिरफ्तार किया गया जिसके बाद वे अक्टूबर 1941 में रिहा किए गए थे सन 1942 के दौरान संपूर्ण देश में असंतोष व्याप्त था और महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के माध्यम से “करो या मरो” का आह्वान किया था इस दौरान चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथाना, बुलंदशहर आदि के गांव में घूम-घूम कर गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया पुलिस चरण सिंह के पीछे पड़ी हुई थी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा सुनाई जेल में उन्होंने शिष्टाचार शीर्षक से एक पुस्तक लिखी | चौधरी चरण सिंह का जीवन परिचय |

स्वाधीनता के बाद

चौधरी चरण सिंह ने नेहरू के सोवियत पद्धति पर आधारित आर्थिक सुधारों का विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि सहकारी पद्धति की खेती भारत में सफल नहीं हो सकती एक किसान परिवार से संबंध रखने वाले चरण सिंह का यह मानना था कि किसान का जमीन पर मालिकाना अधिकार होने से ही इस क्षेत्र में प्रगति हो सकती नेहरू के सिद्धांतों का विरोध का असर उनके राजनीतिक जीवन पर भी पड़ा था देश की आजादी के बाद चरण सिंह 1952, 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव में जीतकर राज्य विधानसभा के लिए चुने गए

पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में इन्हें “पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी” बनाया गया इस भूमिका में उन्होंने राजस्व, न्याय ,सूचना, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य आदि विभागों में अपने दायित्वों का निर्वहन किया इसके बाद 1951 में इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद दिया गया जिसके अंतर्गत इन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग का दायित्व संभाला इसके बाद 1952 में डॉ संपूर्णानंद के सरकार में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग की जिम्मेदारी प्राप्त हुई चौधरी चरण सिंह स्वभाव से भी एक कृषक थे वह किसानों के हितों के लिए लगातार प्रयास करते रहे जब 1960 में चंद्र भानु गुप्ता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तब उन्हें कृषि मंत्रालय दिया गया था | चौधरी चरण सिंह का जीवन परिचय |

क्रांति दल की स्थापना 

चरण सिंह ने सन 1967 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और एक नए राजनीतिक दल “भारतीय क्रांति दल” की स्थापना की थी राजनारायण और मनोहर लोहिया जैसे नेताओं के सहयोग से उन्होंने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई और सन 1967 और 1970 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने इसके बाद सन् 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया और चरण सिंह समेत सभी राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया आपातकाल के बाद हुए सन 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हार हुई और केंद्र में ‘मोरारजी देसाई’ के नेतृत्व में “जनता पार्टी” की सरकार बनी

चरण सिंह इस सरकार में गृहमंत्री और उप- प्रधानमंत्री रहे थे जनता पार्टी में आपसी कलह के कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई जिसके बाद कांग्रेस और सी.पी.आई. के समर्थन से चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी राष्ट्रपति ‘नीलम संजीव रेड्डी’ ने उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 20 अगस्त तक का वक्त दिया पर इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को ही अपना समर्थन वापस ले लिया इस प्रकार संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया

 चौधरी चरण सिंह की मृत्यु 

चौधरी चरण सिंह की मृत्यु 29 मई 1987 को दिल्ली में हुई थी चौधरी चरण सिंह एक राजनेता के साथ-साथ एक कुशल लेखक भी थे और अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार रखते थे उन्होंने ‘अबोलिशन ऑफ़ जमीदारी”, ‘लीजेंड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियाज पावर्टी’ एंड ‘इट्स सॉल्यूशंस’ नामक पुस्तकों का लेखन भी किया था

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