चित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय

चित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय, चितरंजनदास जी का जन्म, चितरंजन दास का व्यक्तित्व, चितरंजन दास की मृत्यु

चित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय 

आजादी के आंदोलन में अपना सब कुछ दाव पर लगाने वाले देशबंधु चितरंजन दास जी का एक ही सपना था भारत को आजाद देखना उन्होंने भारत को आजाद कराने और ब्रिटिश हुकूमत को हिलाने के लिए स्वराज पार्टी  का गठन किया थाऔर स्वराज पार्टी ने देश को आजाद कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी चितरंजन दास स्वराज पार्टी के अध्यक्ष थे और मोतीलाल नेहरू स्वराज पार्टी के महामंत्रीओं में से एक थे

चितरंजन दास ने आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में काम किए थे जब राष्ट्रीय आंदोलन कमजोर पड़ता जा रहा था तब चितरंजन दास ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखा था चितरंजन दास में बचपन से ही उदारता और न्यायप्रियता का गुण विद्यमान था चितरंजन दास ने देश भक्तों के लिए अनेक मुकदमे लड़े थे आजादी के आंदोलन के समय देश में प्रतिभाशाली भारतीय वकीलों की कमी नहीं थी चितरंजन दास एक ऐसे वकील थे जो कठिन समय में भी अपनी योग्यता को साबित करते हुए अनेक लोगों को फांसी के फंदे से बचाया था 

चितरंजनदास जी का जन्म 

चितरंजनदास जी का जन्म 5 नवंबर 1870 को कोलकाता में हुआ था  इनके पिता भुवनमोहन दास कोलकाता उच्च न्यायालय के जाने-माने वकील थे चितरंजन दास ने 1890 में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया था इसके बाद आई. सी. एस. बनने के लिए वह इंग्लैंड चले गए परंतु आई.सी.एस.की परीक्षा में पास में होने के बाद उन्होंने वकालत का पेशा चुना था इसके बाद उन्होंने लंदन से सोसाइटी ‘ऑफ द इनर टेंपल’ से कानून की पढ़ाई पूरी की थी

बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1892 में चितरंजन दास भारत वापस लौट आए थे और कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे शुरुआत में उनके वकालत का मामला कुछ अच्छा नहीं चल पाया था लेकिन कुछ समय बाद उनकी वकालत बहुत अच्छे से चलने लगी और वह बहुत ही प्रसिद्ध हो गए थे जब1908 में अलीपुर कांड में उन्होंने अरविंद घोष का सफल बचाव किया तब उनकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ गई थी | चित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय |

चितरंजन दास का कांग्रेस में शामिल होना

चितरंजन दास साल 1906में कांग्रेस में शामिल हुए थे इसके बाद चितरंजन दास 1917 में बंगाल प्रांतीय राजकीय परिषद् के अध्यक्ष बने थे उस समय वह राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गए थे 1917 में जब कोलकाता कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो एनीबेसेंट चितरंजन दास के सहयोग से कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे उस समय कांग्रेस के अंदर ‘देशबंधु’ चितरंजन दास जी अपनी उम्र नीतियों और विचारों के लिए जाने जाते थे और इसी कारण सुरेंद्रनाथ बनर्जी के साथ अपने समर्थकों को लेकर कांग्रेस को छोड़कर चले गए और अलग ‘प्रगतिक परिषद’ की स्थापना की थी

इसके बाद 1918 में चितरंजन दास ने रॉलेक्ट एक्ट का जमकर विरोध किया था और महात्मा गांधी के सत्याग्रह का समर्थन किया था स्वदेशी में विश्वास रखने वाले चितरंजन दास ने पश्चिमी देशों के प्रचारित विकास की धारणा को खारिज कर दिया था इसके साथ ही 1920 में उन्होंने अपने सभी सुख साधनों का त्याग करके खादी का समर्थन किया था 1920 में चितरंजन दास ने वकालत छोड़ कर महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था इसके बाद वे पूरी तरह से राजनीति में शामिल हो गए थे राजनीति में आने के बाद चितरंजन दास ने सभी सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया था और सारे देश का भ्रमण किया | चित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय |

देशबंधु की उपाधि 

वकालत छोड़ने के बाद चितरंजन दास ने अपनी सारी संपत्ति राष्ट्रीय हित में समर्पित कर दी उनके इस महान त्याग को देखकर जनता ने उन्हें देशबंधु की उपाधि से नवाजा और वह देशबंधु कहलाने लगे राजनीति में शामिल होने के कुछ साल बाद कोलकाता “महानगर पालिका” के प्रमुख नियुक्त हुए इसी चुनाव में सुभाष चंद्र बोस कोलकाता निगम के मुख्य अधिकारी नियुक्त हुए इन दोनों के नियुक्त होने से कोलकाता “नगर महापालिका” यूरोपियन नियंत्रण से मुक्त हो गई असहयोग आंदोलन के दौरान हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए थे

उनकी शिक्षा के लिए देशबंधु चितरंजन दास ने ढाका में “राष्ट्रीय विद्यालय” की स्थापना की थी असहयोग आंदोलन के दौरान चितरंजन दास ने कांग्रेस के लिए भारी संख्या में सेवकों का प्रबंधन किया था उन्होंने कांग्रेस के खादी विक्रय कार्यकर्म को बढ़ाने में भी मदद की थी इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने असहयोग आंदोलन को अवैध करार दिया चितरंजन दास को उनकी पत्नी सहित गिरफ्तार कर लिया था उन्हें 6 महीने की सजा दी गई थी उनकी पत्नी बसंती देवी ऐसे ही आंदोलन में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी स्वाधीनता सेनानियों के बीच बसंती देवी का बहुत ही सम्मान था और ‘सुभाष चंद्र बोस’ तो उन्हें मां कहते थे

चितरंजन दास की राजनीतिक कुशलता को देखते हुए 1921में उन्हें कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया उस समय वह जेल में थे इसलिए उनके प्रतिनिधि के रूप में “हकीम अजमल खान” ने कार्यकारी अध्यक्ष का कार्यभार संभाला था चितरंजन दास के अध्यक्षीय भाषण को सरोजिनी नायडू ने पढ़ा था इसके बाद 1922 में ‘गया’ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ और फिर से चितरंजन दास को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था इसके बाद 1 जनवरी 1923 में उन्होंने मोतीलाल नेहरू के साथ “स्वराज पार्टी” की स्थापना की थी | चित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय |

चितरंजन दास का व्यक्तित्व 

चितरंजन दास कोटि के राजनीतिज्ञ और नेता तो थे ही इसके साथ साथ है वह बांग्ला भाषा के अच्छे कवि और पत्रकार भी थे उन्होंने बांग्ला साहित्य के आंदोलन में प्रमुख रूप से योगदान दिया था उनके तीन काव्य ग्रंथ है जो कि बहुत ही चर्चित है, ‘सागर संगीत, अंतर्यामी’ और किशोर किशोरी’ चितरंजन दास और अरविंद घोष ने मिलकर सागर संगीत का अंग्रेजी में अनुवाद किया था और उसे प्रकाशित भी किया था

चितरंजन दास ने “वैष्णव साहित्य प्रधान मासिक पत्रिका नारायण” का संपादन काफी समय तक किया था वह 1906 में शुरू हुए अंग्रेजी पत्र वंदेमातरम के प्रमुख सदस्य रहे थे इतना ही नहीं उन्होंने बंगाल स्वराज्य दल के मुख्य पत्र ‘फॉरवर्ड’ की पूरी जिम्मेदारी उठाई थी चितरंजन दास ने इंडिया फॉर इंडियन नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना भी की थी

 चितरंजन दास की मृत्यु 

उस समय चितरंजन दास का राजनीतिक जीवन अपने चरम पर था उस समय काम के बोझ के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा था उस समय महात्मा गांधी खुद उनसे मिलने के लिए दार्जिलिंग आए थे 16 जून 1925 को तेज बुखार के कारण उनका देहांत दार्जिलिंग में हो गया था चितरंजन दास की अंतिम यात्रा कोलकाता में निकाली गई थी जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था

महात्मा गांधी ने कहा- देशबंधु एक महान आत्मा थे उन्होंने एक ही सपना देखा था आजाद भारत का सपना उनके दिल में हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई अंतर नहीं था चितरंजन दास ने अपना पूरा जीवन देश के आजादी के लिए बलिदान कर दियाचित्तरंजन दास जी का जीवन परिचय |

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