गोगा जी महाराज का इतिहास
गोगा जी महाराज का जन्म
वीर गोगा जी महाराज गुरु गोरखनाथ जी के परम शिष्य थे जाहरवीर गोगा जी का जन्म “ चूरू जिले के ददरेवा गांव में विक्रम संवत 1003 में हुआ था ”अपनी अपार लोकप्रियता के कारण जाहरवीर को मुस्लिम समुदाय के लोग भी बड़े चाव से पूजते हैं इसीलिए यह पावन स्थान हिंदू मुस्लिम एकता का सबसे बड़ा प्रतीक भी माना जाता है
गोगा जी का जन्म राजस्थान के ददरेवा चुरु जिले के सास्वत परिवार जेवर सिंह चौहान वंश के राजपूत की पत्नी बाछल देवी की कोख से गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से भाद्र शुक्ल पक्ष की नवमी को गोगा जी ने जन्म लिया था और सभी प्राणी मात्र का कल्याण किया गोगा जी महाराज को सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है इन्हें लोग जाहरवीर गोगा जी के नाम से भी पुकारते हैं | गोगा जी महाराज का इतिहास |
गोगामेड़ी का रहस्य
गोगादेव राजस्थान के लोकप्रिय देवता है गोगा जी महाराज को जाहरवीर और सांपों के देवता के नाम से जाना और पहचाना जाता है राजगढ़ से हनुमानगढ़ जिले का गोगामेडी शहर है इस स्थान पर भादव शुक्ल की नवमी को गोगा जी का विशाल मेला लगता है यहां गोगा जी महाराज को सभी धर्मों के लोग बड़े चाव से पूजते हैं यहां ऊंच-नीच कोई मायने नहीं रखती गोगा जी महाराज के इस पावन दरबार में सभी भक्त समान है
गोगा जी महाराज के गुरु
वीर गोगा जी महाराज गुरु गोरखनाथ जी के परम शिष्य थे
गुरु गोरखनाथ जी के नाम के पहले अक्षर से ही गोगाजी का नाम रखा गया है- गुरु का गु और गोरखनाथ जी के गो शब्द से गो यानी गोगो नाम बना जिन्हें बाद में गोगो कहा जाने लगा इन्होंने गुरु गोरखनाथ से अनेक सिद्धियां प्राप्त की थी राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगा जी महाराज ही वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे
गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी तक था एक चौंकाने वाली बात यह भी है इतने साल बीत जाने के बावजूद भी गोगा जी महाराज के घोड़े का अस्तबल आज भी वैसे का वैसा है और आज सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी गोगाजी की प्रिय घोड़े का रकाब आज भी मौजूद है
| गोगा जी महाराज का इतिहास |
गोगाजी का प्रतीक
गोगा जी के जन्म स्थान पर ही गुरु गोरखनाथ जी का आश्रम बनाया गया है गोगामेडी में गोगा जी महाराज की घोड़े पर सवार मूर्ति भी स्थापित है यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं यहां आने के बाद गोगा जी के भगत अपने आप को पावर और धन्य महसूस करते हैं आज भी सर्पदर्श की मुक्ति के लिए गोगा जी महाराज को भी रीजाया जाता है
श्रद्धालुओं का यह मानना है कि सर्पदर्श मुक्ति के लिए उस इंसान को यदि मेडी तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सर्पदंश से मुक्ति पा सकता है आज भी सर्पदर्श मुक्ति के लिए गोगा जी की पूजा की जाती है गोगाजी के प्रतीक के रूप में पथर या लकड़ी पर सर्प की मूर्ति बनाई जाती है भादो मास की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की नवमी को यहां बड़ा भारी मेला लगता है हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में गोगा जी का पावन धाम गोगामेड़ी स्थित है जो कि गोगा जी के जन्म स्थान से 80 किलोमीटर दूर है यहां पर एक हिंदू और मुस्लिम पुजारी भक्तों की सेवा में लगे रहते हैं | गोगा जी महाराज का इतिहास |
गोगा जी की छड़ी का महत्व
यहां पर गोगाजी की एक छड़ी भी है जिसका अलग ही महत्व है यहां पर जो व्यक्ति छड़ी की पूजा नहीं करता उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है क्योंकि यह माना जाता है कि जाहरवीर गोगा जी इस छड़ी में निवास करते हैं
यह छड़ी घर में ही रखी जाती है सावन और भादो में इस छड़ी को बाहर निकाला जाता है और फेरी के तौर पर सारे नगर में घुमाया जाता है ताकि नगर में किसी भी प्रकार की रोग बाधाएं ना हो गोगा जी के भगत दाहिने कंधे पर छड़ी रखकर फेरी लगवाते हैं इस छड़ी को लाल या भव्य रंग के वस्त्र पर रखा जाता है यहां पर श्रद्धालु भजन और जागरण करते हैं इसमें डेरु और काशी की थाली बजाई जाती है| गोगा जी महाराज का इतिहास |
गोगा जी की मृत्यु
महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तब पश्चिमी राजस्थान में गोगा देव जी ने ही गजनवी का रास्ता रोका था घमासान युद्ध हुआ गोगा जी ने 900 सैनिकों के साथ केसरिया रंग के वस्त्र पहन कर गजनवी पर 1024 मेंआक्रमण किया गोगा देव जी ने अपने सभी पुत्रों ,भाइयों और रिश्तेदारों सहित जन्मभूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया
लड़ते हुए जिस स्थान पर उनका शरीर गिरा था उसे गोगामेड़ी कहते हैं यह स्थान हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है गोगा जी ने आक्रमणकारियों से 12 बार युद्ध कर उन्हें हराया था अफगानिस्तान के बादशाह द्वारा लूटी गई हजारों गायों को उन्होंने बचाया था उनकी वीरता के डर से अरब के लुटेरों ने गोधन को लूटना बंद कर दिया था