गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय

गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय, गुरु गोरखनाथ का जन्म , गोरखनाथ के जन्म की कथा, गुरु गोरखनाथ के शिष्य 

गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय

 सिद्धू की वाममार्गी तथा भोग प्रधान योग साधना की प्रतिक्रिया में आदि काल में ही नाथ पंथीयो की हठ योग साधना का प्रादुर्भाव हुआ है नाथ संप्रदाय का विकास बौद्धों की वज्रयान- सहजयान शाखा से ही हुआ है स्वयं गोरखनाथ का नाम 84 सिद्धों में ‘गोरखक्षया’ के नाम से विद्यमान है गोरखनाथ ने ही सिद्धों की परंपरा से अलग नाथ पंथ का प्रचार प्रसार किया था

वे सिद्धों की वज्रयान शाखा में प्रचलित अश्लीलता और विधानो से दूर हिंदू योग साधना में प्रवृत्त हुए यह पंथ सिद्दो और संतों के बीच की कड़ी है नाथ संप्रदाय के आरंभ कर्ता गोरखनाथ को ही माना जाता है वे मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे एक बार मछंदर नाथ नारी भोग के विषय चरण में जा फंसे थे जिनका उद्धार उनके शिष्य गोरखनाथ ने ही किया था शंकराचार्य के बाद गोरखनाथ निसंदेह ऐसे महापुरुष थे

जिन्होंने शक्तिशाली धर्म की नीव डाली इन्होंने योग मार्ग की परंपरा चलाई गोरखनाथ शुन्य के साधक थे नाद और विंदू के अंतर्गत उन्होंने शिव और शक्ति की कल्पना की उन्होंने सहज समाधि, उल्टी साधना, अचेतन मन आदि पर अपनी रचनाओं में विचार किया इनकी साधना और इनके सिद्धांत का प्रभाव कबीरदास पर भी दिखाई पड़ता है | गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय |

गुरु गोरखनाथ का जन्म 

गुरु गोरखनाथ का जन्म 8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच माना जाता है इनको भगवान शिव का अवतार माना जाता है गुरु गोरखनाथ जी राजा भरतरी एवं उनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य के समय में थेगुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रंथों की रचना की थी गोरखनाथ जी का मंदिर उत्तर प्रदेश के “गोरखपुर” नगर में स्थित है गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा था गोरखनाथ के शिष्य का नाम ‘भैरोनाथ’ था जिन का उद्धार माता वैष्णो देवी ने किया था

गुरु गोरखनाथ जी के नाम से ही नेपाल के गोरखा ने नाम पाया नेपाल में एक जिला है गोरखा उस जिले का नाम ‘गोरखा’ भी इन्हीं के नाम से पड़ा था गुरु गोरखनाथ सबसे पहले यही दिखाई दिखे थे गोरखा जिला में एक ‘गुफा’ है जहां गोरखनाथ का पग चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है यहां हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे रोट महोत्सव कहते हैं और यहां मेला भी लगता है गुरु गोरखनाथ जी का 1 स्थान ऊंचे टीले गोगा मेडी, राजस्थान “हनुमानगढ़” जिले में भी है | गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय |

गोरखनाथ के जन्म की कथा 

 एक बार गुरु मत्स्येंद्रनाथ नाथ घूमते घूमते अयोध्या के पास ‘जय श्री’ नामक नगर में गए वहां वह भिक्षा मांगते हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंचे अलख निरंजन की आवाज सुनते ही ब्राह्मणी बाहर आई बड़े ही आदर भाव से बाबा की झोली में भिक्षा डाल दी वैसे तो ब्राह्मणी के मुख पर पतिव्रत का अपूर्व तेज था उसे देखकर मछंदर नाथ को बड़ी प्रसन्नता हुई परंतु साथ ही उन्हें उसके चेहरे पर उदासी की क्षिण रेखा दिखाई पड़ी जब उन्होंने उस ब्राह्मणी से इस उदासी का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि निसंतान होने से संसार फीका सा जान पड़ता है मछंदर नाथ ने तुरंत झोली से थोड़ी सी भभूत निकाली और उसे ब्राह्मणी के हाथ पर रखते हुए कहा इसे खा लो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा इतना कहकर वे वहां से चले गए

इधर ब्राह्मणी की एक पड़ोसन स्त्री ने जब यह बात सुनी तो उसने कई तरह के डर दिखाकर उस भभूत को खाने से मना कर दिया इसके बाद उस ब्राह्मणी ने उस भभूत को एक गड्ढे में फेंक दिया 12 वर्ष बाद जब मछंदर नाथ वापस उनके घर आए और उन्होंने उस घर के द्वार पर जाकर अलख निरंजन जगाया तो उस ब्राह्मणी ने बाहर आकर देखा ब्राह्मणी के बाहर आने पर उन्होंने कहा कि अब तो तुम्हारा बेटा 12 वर्ष का हो गया होगा देखु तो वह कहां है? यह सुनते ही वह घबरा गई और उस ब्राह्मणी ने सारी बातें मत्स्येंद्रनाथ नाथ को बताईइसके बाद मछंदर नाथ उस ब्राह्मणी के साथ उस गड्ढे के पास गए और अलख शब्द किया यह सुनते ही 12 वर्ष का तेज पुंज बालक वहां से प्रकट हो गया और मछंदर नाथ के चरणों पर सिर रखकर प्रणाम करने लगा

इसी बालक का नाम मत्स्येंद्रनाथ ने गोरखनाथ रखा था यह घटना रायबरेली जिले के अंतर्गत जायज नामक कस्बे में हुई थी जिस गांव में बाबा गोरखनाथ ने जन्म लिया था उस गांव का नाम बाद में “गोरखपुर” कर दिया गया गोरखनाथ एक योगी ही नहीं बल्कि एक बहुत बड़े विद्वान और कवि भी थे उनकी अनेक रचनाएं हैं संस्कृत भाषा में एक गोरख क्लप, गोरख संहिता, गोरख शतक, गोरख गीता आदि अनेक ग्रंथ मिलते हैं | गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय |

 गुरु गोरखनाथ के शिष्य 

गोरखनाथ के दो प्रधान शिष्य हुए गहिनीनाथ और चर्पटीनाथ, जालंधर नाथ,भर्तृहरि, गोपी चंद्र आदि योग संपन्न अनेक योग नाथ संप्रदाय में हुए गोरखनाथ महायोगी के साथ-साथ ‘शैव धर्म’ के श्रेष्ठ प्रचारक थे संपूर्ण भारत में उन्होंने नागरिकों को अपनी योगिक शक्ति के द्वारा शिव भगत बनाया था राजा भरतरी बाबा गोरखनाथ के शिष्य थे जो रानी पिंगला के विरह में व्याकुल होकर गोरखनाथ की शरण में आए थे

उत्तर भारत में योगी आज भी सारंगी बनाते हुए गाते हैं ‘भिक्षा दे माही पिंगला’ गेरुआ रंग का धोती कुर्ता और सर पर पगड़ी बांधे रखते हैं शहर और गांवों मे सर्वत्र इनकी सारंगी बजती है जिस प्रकार गोरखनाथ के जन्म तथा जन्म स्थान का पता नहीं चला ठीक उसी प्रकार उनके तिरोधन का पता नहीं लग सका नाथ संप्रदाय के लोगों में विचार है कि गोरखनाथ अमर है अभी तक भी उनकी विभूति कभी-कभी प्रकट होती है | गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय |

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