ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय

ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय, ज्ञानी जैल सिंह का जन्म, ज्ञानी जेल सिंह की शिक्षा, श्री ज्ञानी जेल सिंह का राजनीतिक जीवन, श्री ज्ञानी जैल सिंह की मृत्यु

श्री ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय

 ज्ञानी जैल सिंह भारत के सातवें निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में जाने जाते हैं यह बेहद साधारण परिवार से संबंध रखते थे इनका राष्ट्रपति बनना एक साधारण इंसान के लिए चक्रवर्ती सम्राट बनने जैसा ही अनुभव कहा जाना चाहिए दुनिया में ऐसे कई राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए जिन्होंने पृथ्वी से लेकर आसमान तक को स्पर्श करने में सफलता प्राप्त की है

ज्ञानी जैल सिंह भी इन्हीं लोगों की कतार में नजर आते हैं कुछ लोग स्वयं सिद्ध होते हैं और उन्हें भाग्य का सहारा भी प्राप्त होता है ज्ञानी जेल सिंह भी ऐसे ही व्यक्ति थे ज्ञानी जैल सिंह गरीब, कमजोर और दबे कुचले व्यक्तियों के मसीहा बनकर अवतरित हुए तथा अपने सेवा कर्म को सीडी बनाकर राष्ट्रपति जैसे ऊंचे पद पर पहुंचने में सफल रहे हैं लेकिन परम पद पाने के बावजूद वे सीडी के उस पर प्राथमिक हिस्से नहीं भूले

जिस के निकट इनका जीवन गुजरा था इनका कर्म स्थल फरीदकोट जिले का गांव साधवान था पंजाब के इस छोटे से गांव में इनका मिट्टी का मकान था लेकिन इस मकान की मिट्टी की महक लिए जेल सिंह नामक एक बालक भारत का राष्ट्रपति बनकर प्रथम नागरिक के महल तक पहुंच जाएगा यह किसी ने भी नहीं सोचा था | ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय |

ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 

ज्ञानी जेल सिंह का जन्म 5 मई 1916 को हुआ था इसी दिन ‘कार्ल मार्क्स’ का भी जन्म हुआ था जो समाजवाद के प्रवर्तक माने जाते हैं ज्ञानी जैल सिंह के परदादा सरदार बुध सिंह ने अपनी आजीविका हेतु कृषि को अवलंब बनाया था और आने वाली पुस्तो द्वारा भी यह कार्य किया  जाता रहा लेकिन उन दिनों कृषि का उत्पादन इतना नहीं होता था कि कृषक अन्य गतिविधियां संपन्न किए बिना परिवार का भरण पोषण कर सके इसलिए कई कृषक परिवार कोई सहायक व्यापारिक कार्य भी करते थे

ज्ञानी जैल सिंह दादा ‘सरदार राम सिंह’ एक शिल्पकार थे और इनका संबंध विश्वकर्मा वंशी परिवार से था लेकिन इनके परिवार ने बाद में सिख धर्म अपना लिया इस प्रकार के परिवारों को पंजाब में रामगढ़िया का संबोधन प्राप्त हुआ सरदार राम सिंह 5 पुत्र और एक पुत्री के पिता बने इनमें से सबसे छोटे पुत्र का नाम किशन सिंह था यानी कि ज्ञानी जैल सिंह के पिता का नाम किशन सिंह था किशन सिंह को पुरखों की जमीन से 56 एकड़ भूमि प्राप्त हुई जो सागवान गांव में स्थित थी

किशन सिंह को तीन शादियां करनी पड़ी थी इनके प्रथम पत्नी का नाम दयाकोर दूसरी पत्नी का नाम मारिया को और तीसरी पत्नी का नाम हिंदी कौन था यह तीनों पंजाब सिंह की पुत्रियां थी शादी के कुछ वर्षों बाद जब इन्हें प्रथम पत्नी दयाकोर से कोई संतान नहीं हुई तो इनका विवाह दूसरी बहन मारिया कोर से हुआ लेकिन मारिया कौर कीअचानक मृत्यु हो गई फिर इनका विवाह इंदी कौर के साथ संपन्न हुआ इंदी कौर से इन्हें 3 पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुई ज्ञानी जैल सिंह सबसे छोटे पुत्र थे और तीसरी संतान के रूप में इनकी बहन थी

ज्ञानी जैल सिंह सबसे छोटे पुत्र होने के कारण परिवार में सभी के दुलारे और माता के विशेष लाडले थे लेकिन श्री जेल सिंह की माता की असामयिक मृत्यु उस समय हो गई जब इनकी उम्र 11 महीने थी ऐसे में उनका लालन-पालन सगी मौसी और सौतेली मां दयाकोर ने किया श्रीमती दयाकोर मासूम जेल सिंह को इतना प्रेम दिया कि 13 वर्ष की उम्र तक इन्हें यह नहीं मालूम हो सका कि दयाकोर सगी मां नहीं है | ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय |

ज्ञानी जेल सिंह की शिक्षा 

इनके पिता किशन सिंह सिख धर्म से इतने प्रभावित हैं कि उन्होंने घर के एक कमरे को गुरुद्वारा बना लिया था छत पर सिख धर्म का पवित्र निशान फहराता रहता था और घर में प्रतिदिन कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता था श्री जैल सिंह जब 5 वर्ष के थे तभी गुरु ग्रंथ साहिब पढ़ लिया करते थे जेल सिंह ने भी सदैव जातिवाद का विरोध किया वह मानते थे कि गुरुओं की शिक्षा सभी को समान रुप से मिलनी चाहिए

जेल सिंह मानते थे कि एक ही ईश्वर, गुरुद्वार, मंदिर और मस्जिद में निवास करता है बचपन में इनका यह नियम था कि घर के गुरुद्वारे वाले कमरे में जाकर 1 घंटे तक गुरु ग्रंथ साहिब के शिक्षा श्लोको को उच्चारित करते थे बचपन के संस्कार इतने गहरे थे कि जब जेल सिंह राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद राष्ट्रपति भवन में रहने के लिए जाने लगे तो गुरु ग्रंथ साहिब को परंपरागत रूप से अपने सिर पर धारण करके वहां से पूजा घर तक ले गए ज्ञानी जैल सिंह ने उर्दू माध्यम वाले स्कूल से 1930 में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की थी

फिर पिता की राय में गुरुमुखी पढ़ने लगे इसी बीच में वे एक परमहंस साधु के संपर्क में आए ढाई वर्ष तक उससे बहुत कुछ सीखने को मिला फिर गाना बजाना सीखने की धुन सवार हुई तो एक “हारमोनियम” बजाने वाले के कपड़े धोकर ,उसका खाना बनाकर हारमोनियम बजाना सीखने लगे पिता ने राय दी कि तुम्हें गाना आता है तो फिर कीर्तन करो, गुरुवाणी का पाठ करो इसके बाद ज्ञानी जेल सिंह ने ग्रंथि बनाने का निश्चय किया और स्कूली शिक्षा अधूरी रह गई गुरु ग्रंथ साहिब के “व्यवसायिक” वाचक बन गए इसी से ज्ञानी की उपाधि मिली अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में जेल सिंह को भी जेल जाना पड़ा था वहां उन्होंने अपना नाम जेल सिंह लिखवा दिया छूटने पर यही जैल सिंह नाम प्रसिद्ध हो गया | ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय |

श्री ज्ञानी जेल सिंह का राजनीतिक जीवन

 ज्ञानी जैल सिंह बचपन से भारत की स्वतंत्रता के लिए जागरूक थे उन्होंने प्रजामंडल नामक एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया था जो कि भारतीय कांग्रेस के साथ संबंध होकर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन किया करती थी ब्रिटिशो ने उनको जेल भेज दिया था इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर  जैल सिंह (जेल सिंह )रख लिया था स्वतंत्रता के पश्चात ज्ञानी  जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री बनाया गया 1951में उनको कृषि मंत्री बनाया गया था

1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे थे इसके बाद 1972 से 1977 तक ज्ञानी जी पंजाब के मुख्यमंत्री रहे1980 में जब इंदिरा गांधी जी पुनः सत्ता में आई तो उन्होंने ज्ञानी जी को देश का  गृहमंत्री बनाया इसके बाद1982 में श्री नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने पर ज्ञानी जी देश के आठवें  राष्ट्रपति चुने गए 25 जुलाई 1982 को उन्होंने पद की शपथ ली उनके राष्ट्रपति कार्यकाल में बहुत सी घटनाएं घटी जिनमें मुख्य रुप से “ऑपरेशन ब्लू स्टार”, ‘इंदिरा गांधी की हत्या’ और 1984 में सिख विरोधी दंगा भी शामिल है इंदिरा गांधी जी की हत्या के बाद ‘राजीव गांधी’ को इन्होंने ही प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई यद्यपि अंतिम दिनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबंधों में खिंचाव के समाचार आने लगे थे पर ज्ञानी जी अपना संतुलन बनाए रहे 25 जुलाई 1987 को उनका कार्यकाल पूरा हुआ था 

श्री ज्ञानी जैल सिंह की मृत्यु 

29 नवंबर 1994 को रोपर जिले के करतारपुर के पास से यात्रा करते समय एक ट्रक गलत साइड से आ रहा था और कार में यात्रा कर रहे जेल सिंह की कार ट्रक से टकरा गई और उनका एक्सीडेंट हो गया इस हादसे के बाद जैल सिंह बहुत सी बीमारियों से जूझ रहे थे और उन्हें बहुत चोट भी लगी थी 25 दिसंबर 1994 में चंडीगढ़ में उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी उनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार ने 7 दिन का राष्ट्रीय शोक भी घोषित किया था दिल्ली के राजघाट मेमोरियल में उनका अंतिम संस्कार किया गया था उनकी याद में भारतीय पोस्ट विभाग ने 1995 में ज्ञान सिंह की पहली मृत्यु एनिवर्सरी पर एक पोस्टेज स्टैंप भी जारी किया था | ज्ञानी जेल सिंह का जीवन परिचय |

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