हरेली का त्यौहार कब और कहां मनाया जाता है हरेली का त्यौहार बनाने की विधि हरेली के त्यौहार पर किसकी पूजा की जाती है हरेली के त्यौहार का क्या महत्व है
हरेली का त्यौहार
हरेली का त्यौहार छत्तीसगढ़ में पहले त्योहार के रूप में मनाया जाता है छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है हरेली त्यौहार सावन कृष्ण पक्ष के अमावस्या के दिन मनाया जाता है सावन के महीने में सभी तरफ हरियाली रहती है किसान अपने खेतों में धान लगाने का काम करते हैं इसलिए इस महीने में हरेली त्यौहार मनाया जाता है हरेली शब्द हिंदी के हरियाली शब्द का छत्तीसगढ़ी रूप है तब से इस त्यौहार को खेती किसानी करने वाले लोग मनाते हैं पहले के जमाने में खेती-किसानी खत्म करने के बाद लोग खेती के प्रयोग मैं आने वाले औजारों को धो कर उनकी पूजा करते थे धीरे-धीरे समय के साथ यह एक त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा
हरेली के दिन सभी औजार जैसे कुदारी ,डांगी आदि को धोकर अपने कुल देवी देवताओं की पूजा की जाती है इस त्यौहार में सभी के घरों में गुड़ के साथ-साथ फैक्ट्री कुर्मी जैसे पकवान बनाए जाते हैं गांव के सभी बच्चे और किशोर बांस की बनी गेड़ी का मजा लेते हैं इस दिन किसान अपने पशुओं को पर घंटा का पत्ता खिलाते है ताकि वह रोग से बचे रहें हरेली के दिन सभी के घरों में नीम के पत्ते लटकाए जाते हैं ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट सेड़ाअच्छी होती है यह त्योहार हमारे भारत और विश्व में हमेशा हरियाली रहे इसलिए मनाया जाता है हमेशा सुख शांति बनी रहे यह कामना कर कर यह त्यौहार मनाया जाता है हरेली के त्यौहार को गोड़ी पर भी कहा जाता है इस त्यौहार पर घर के बाहर गोबर की प्रतिमा बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है
छत्तीसगढ़ में पूरे वर्ष अलग-अलग महीनों में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन अधिकतर त्योहारों का संबंध सीधा हमारी प्रकृति से है हमारी कृषि और किसानों से है हमारे पूर्वजों ने हमारे त्यौहारों को प्रकृति से जोड़कर प्रकृति और इंसान से घनिष्ठ संबंध को समझाया है तथा समय-समय पर प्रकृति के प्रति अपनी असीम श्रद्धा और सम्मान को इन त्योहारों के द्वारा दर्शाया है वह प्रकृति के महत्व को बखूबी समझते थे इसलिए उन्होंने अनेक त्योहारों को सीधे प्रकृति या हरियाली से जोड़ा है ऐसा ही एक त्यौहार है हरेला जिससे घर में सुख शांति समृद्धि बनी रहे खेतों में अच्छी फसल हो इन शुभकामनाओं के लिए तो बनाया ही जाता है
साथ ही वृक्षारोपण त्यौहार या हरियाली त्यौहार घोषित कर इस दिन वृक्षों को अनिवार्य रूप से लगाने की परंपरा बनाई गई है ताकि धरती हरी भरी रहे हैं छोटी प्राकृतिक रूप से सुंदर बने रहे हमें फल फूल अनाज पानी शुद्ध हवा और हमारी जानवरों को चारा मिलता रहे हमारी आने वाली पीढ़ी को यह धरती इतनी सुंदर और सुरक्षित रहे हरेली का त्यौहार सिर्फ अच्छी फसल के लिए नहीं बनाया जाता बल्कि आने वाली ऋतु के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है वैसे तो पूरे वर्ष में हरेला तीन बार मनाया जाता है
इस त्योहार पर भगवान शिव के परिवार की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है इस त्योहार को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है
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हरेला त्यौहार के पूजा की विधि
इस त्योहार पर एक टोकरी में मिट्टी लेकर 7 बीज बोए जाते हैं यह अलग-अलग फसल की बीज होते हैं और इन्हें घर में एक पवित्र जगह पर रखा जाता है इसके बाद इन टोकरी में से छोटे-छोटे पौधे उग ने शुरू होते हैं इन्हें ही हरेला कहा जाता है
इसके बाद इन पौधों के कुछ बड़ा होने पर घर के किसी पूर्वज द्वारा इन्हें काटा जाता है और सबसे पहले अपने इष्ट देव को चलाया जाता है और इसके बाद घर के सभी सदस्यों को तिलक करके इन हरेला दवारा पूजा की जाती है इसके बाद पूरे विधि विधान से इस हरेला का पूजन किया जाता है सूरज की रोशनी से दूर होने के कारण इन हसीनों का रंग पीला होता है इसको आशीर्वाद स्वरुप सिर पर रखा जाता है या कान में लगाया जाता है
बुजुर्ग महिला घर के सभी सदस्यों का हरेला पूजन बहुत ही सुंदर गीत गाते हुए करती है उस गांव में इसको सामूहिक रूप से गांव के मंदिर में बोया जाता है और मंदिर के पुजारी की देखरेख में ही 9 दिन तक रहता है और दसवें दिन पुजारी जी इसको काट कर सारे गांव वालों को आशीर्वाद देते हैं | हरेली का त्यौहार |
हरेला त्यौहार का महत्व
यह भी माना जाता है कि उसे उगने वाले पौधे जितने बड़े होंगे या जितनी अच्छी तरह से होंगे उतनी अच्छी फसल उस साल की होगी वह सुख समृद्धि बनी रहेगी श्रावण मास के घरेलू को वृक्षारोपण त्यौहार या हरियाली त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है इसलिए त्योहारों के बाद वटवृक्ष को लगाना जरूरी माना गया है इस दिन लगने वाला पौधा बहुत लंबे समय तक जीवित रहता है यदि इस दिन किसी पौधे की टहनी ही को लगाया जाता है तो कुछ समय बाद उसकी जड़ आ जाती है और वह एक पेड़ के रूप में पनपने लगता है और अपनी जड़े धरती पर डाल देता है इस दिन कुंवारी कन्या टीका लगाकर पूजा करती हैं
घर के बड़े उन्हें आशीर्वाद देते हैं और साथ में कुछ उपहार भी देते हैं लोग अपने रिश्तेदारी में एक-दूसरे को शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद भी देते हैं इस दिन घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं जैसे चावल की रोटियां, चावल की खीर ,उड़द के दाल, बड़े आदि छत्तीसगढ़ में यह त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इस दिन मंदिरों में जाकर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं
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