जैसलमेर का इतिहास

जैसलमेर का इतिहास, जैसलमेर का निर्माण, जैसलमेर पर आक्रमण, वैष्णव मंदिरों का निर्माण, आमिर अली का वध , विशाल यज्ञ का आयोजन

जैसलमेर का निर्माण

 जैसलमेर का अर्थ है जैसल का मेरु यानी जैसल का दुर्ग जैसलमेर के सोनार किले की आधारशिला महारावल जायसाल ने रखी थी लोद्रवा के यदुवंशी शासक महारावल दूसा जी ने अपने बड़े बेटे जय साल की जगह अपने छोटे बेटे विजय राज को जैसलमेर का उत्तराधिकारी बना दिया था जिससे नाराज होकर जयसाल साबुद्दीन गोरी के पास चला गया विजय राज की मृत्यु के बाद उसका बेटा लोद्रवा का शासक बना जिसे जयसाल ने मार डाला था इसके बाद जय साल ने लोद्रवा के नजदीक ही 1155 में एक दुर्ग की नींव रखी थी .

जय साल के नाम पर ही इसका नाम जैसलमेर पड़ा था जय साल के समय इस दुर्ग का मुख्य द्वार और कुछ ही भाग बन पाया था बाकी का निर्माण उसके उत्तराधिकारीयों ने करवाया था जय साल के पुत्र शालिवाहन प्रथम ने इस दुर्ग के निर्माण में सबसे ज्यादा योगदान दिया था इस दुर्ग की लंबाई 1500 मीटर और चौड़ाई 750 मीटर है इस दुर्ग पर 99 बुर्ज बने हुए हैं जो भारत के किसी भी किले में नहीं है इस दुर्ग में चुने और मिट्टी का प्रयोग नहीं किया गया है इस किले का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों को जोड़कर किया गया है | जैसलमेर का इतिहास |

जैसलमेर पर आक्रमण 

इसके बाद जयसिंह प्रथम जैसलमेर की गद्दी पर बैठे थे जयसिंह प्रथम के शासनकाल में उसके पुत्र मूलराज प्रथम और रतन सिंह ने अलाउद्दीन का खजाना लूट कर जैसलमेर भेजा था जब अलाउद्दीन खिलजी ने मंडोर के शासक पर आक्रमण किया तब उसने जैत सिंह प्रथम की शरण ली थी जिसके कारण अलाउद्दीन खिलजी ने जैसलमेर पर भी आक्रमण कर दिया था और 12 वर्षों तक इस दुर्ग के चारों ओर घेरा डाले रखा था प्रथम 8 वर्षों तक दुर्ग के अंदर ही जयसिंह ने युद्ध का संचालन किया था और उनके वीरगति को प्राप्त हो जाने के बाद उनके बेटे मूलराज ने 4 वर्षों तक युद्ध का संचालन किया था

जब यह युद्ध पूरी तरह से समाप्त हो गया तब भाटी राजवंशों ने साका करने का निर्णय लिया और राजपूत महिलाओं ने जौहर किया अगले दिन दुर्ग के दरवाजे खोलकर भाटी राजवंशों ने मूल राज प्रथम और रतन सिंह के नेतृत्व में वीरगति को प्राप्त हुए और इस दुर्ग में राजपूतों की हार हुई और अलाउद्दीन खिलजी का इस पर अधिकार हो गया था कुछ वर्षों बाद भाटी राजवंशों ने विशाल सेना एकत्रित कर के अलाउद्दीन खिलजी पर आक्रमण कर दिया और जैसलमेर दुर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया था दिल्ली सल्तनत पर खिलजी वंश का अधिकार समाप्त होने के बाद तुगलक वंश के शासक मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी सेना जैसलमेर भेजी किंतु 6 वर्षों तक दुर्ग पर घेरा डालने के बाद भी इस दुर्ग पर अधिकार नहीं कर सका था

इस बार भी रसद समाप्त होने पर भाटी राजवंशों ने साका करने का निर्णय लिया और राजपूत महिलाओं ने जौहर किया राजपूत सैनिक दुर्ग के दरवाजे खोलकर वीरगति को प्राप्त हुए इस दुर्ग पर फिर से मुसलमानों का अधिकार हो गया था ऊपर से मुसलमानों का अधिकार हो गया भाटी सरदार गड़सी जिनके नाम पर गड़ीसर तालाब का भी नाम रखा गया है जो कि मूलराज के भाई रतन सिंह के बेटे थे उन्होंने किलेदार को मारकर फिर से मुसलमानों के अधिकार से किले को अपने कब्जे में कर लिया जिसे बाद में उसी के सरदारों ने छलपूर्वक मार दिया था | जैसलमेर का इतिहास |

वैष्णव मंदिरों का निर्माण 

गड़सी की रानी ने मूलराज के पुत्र देवराज के बेटे रूप सिंह के दौहित्र केहर को छायादार मंडोर से बुलाकर गद्दी पर बैठाया केहर के बाद उसका दूसरा बेटा लक्ष्मण दे गद्दी पर बैठा जिसके समय जैसलमेर के प्रसिद्ध लक्ष्मण और वैष्णव मंदिरों का निर्माण हुआ इसी समय से राज्य का वास्तविक स्वामी लक्ष्मण नाथ को माना गया और महारावल को उसका दीवान माना गया लक्ष्मणदेव के बाद उनका बेटा राज्य का स्वामी बना जिसने अपनी रानियों के नाम से सूर्य मंदिर रत्नेश्वर महादेव मंदिर और दुर्ग में स्थित कुएं पुलित सर और रानी सर बनवाए थे और राव जोधा को चित्तौड़ से भाग कर आने पर शरण दी थी

और सिसोदिया से मंडोर को छुड़ाने में भी सहायता की थी बेरसिंह के बाद जातिक देवीदास और ‘जयसिंह द्वितीय’ जैसलमेर के शासक हुए थे जयसिंह द्वितीय के समय जैत बंद सरोवर का निर्माण करवाया गया था जिनकी मृत्यु के बाद युवराज लूणकरण कंधार गया हुआ था इसलिए 15 दिन तक ‘कर्म सिंह’ ने राज्य किया जिसे ‘लूणकरण’ ने वापस आते ही हटा दिया और महारावल बन गया | जैसलमेर का इतिहास |

विशाल यज्ञ का आयोजन

 लूणकरण के दो बेटे तीन बेटियां हुई थी जिसमें पहली बेटी राम कुमारी और तीसरी बेटी उमादे का विवाह मारवाड़ के शासक मालदेव से हुआ था और दूसरी कन्या का विवाह उदयपुर के “महाराणा उदय सिंह” के साथ हुआ था जिस महारानी का विवाह मालदेव के साथ हुआ था उसको रूठी रानी भी कहते थे उमा देवी के विवाह के समय मालदेव ने कह दिया था की वह उसके लिए नहीं बल्कि उसकी दासी भारमल के लिए आया है जिसके कारण उमा देवी रूठ कर अपने निहाल चली गई और पूरी जिंदगी वही रही मालदेव की मृत्यु होने पर वह वहीं पर सती हो गई थी इसीलिए इन्हें रूठी रानी के नाम से भी जाना जाता है 

महारावल लूणकरण के समय मुगल बादशाह हुमायूं जैसलमेर होता हुआ अमरकोट और इरान की तरफ भाग गया था लूणकरण ने हुमायूं की सेनाओं को जैसलमेर में डेरा नहीं डालने दिया था लूणकरण ने ही एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था जिसमें विगत 800 सालों में तलवार के बल पर जबरन मुसलमान बनाए गए हिंदुओं को फिर से हिंदू धर्म में शामिल करवाया गया इसमें यज्ञ में भाग लेने के लिए सिंध, मारवाड़ और कच्छ से कई लोग आए थे महारावल लूणकरण ने कंधार के पठान आमिर अली को पगड़ी बदलकर भाई बनाया हुआ था

उसने जैसलमेर का राज्य हत्याने का षड्यंत्र रचा और जैसलमेर पहुंचने पर उसने महारावल से कहा कि वह महल में रानियों से मिलना चाहती हैं और महारावल की आज्ञा प्राप्त होने पर उसने डोलियों में हथियारबंद सैनिकों को भेजा एक पहरेदार को डोली में पुरुष आवाज सुनाई देने पर और उसके द्वारा डोली का पर्दा हटाने पर भेद खुल गया और किले में मारकाट मच गई आमिर का षड्यंत्र खुलने पर रणभेरी बज गई और समस्त राज स्त्रियों का सिर अपनी तलवार से अलग कर अपने सरदारों के साथ महारावल रण में कूद गया और अपने चार भाई और तीन बेटे और 400 योद्धाओं के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ | जैसलमेर का इतिहास |

आमिर अली का वध 

इस घटना के समय युवराज मालदेव शिकार खेलने गए थे और वापस लौटकर उसने आमिर अली को पराजित कर कैद कर लिया था और चमड़े के बोरे में बंद कर तोप से उड़ा दिया था लूणकरण के बाद उनका बेटा “मालदेव” महारावल बना महारावल मालदेव के बाद उनका बेटा ‘हंस राज’ गद्दी पर बैठा हंसराज ने अपनी बेटी का विवाह मुगल बादशाह अकबर से कर दिया जिससे सदैव के लिए शत्रु डर से समाप्त हो गया किंतु हिंदू कुल के गौरव के रूप में जो प्रतिष्ठा थी वह भी समाप्त हो गई थी

हंसराज  के बाद भीम, कल्याण, मनोज ,रामचंद्र ,सबल सिंह, अमर सिंह,जसवंत सिंह,बुद्ध सिंह,तेज सिंह,सवाई सिंह,आखै सिंह गद्दी पर बैठे सभी महारावलो के समय जैसलमेर में कला, साहित्य,स्थापत्य के क्षेत्र में खूबउन्नति हुई थी आखै सिंह के बाद मूलराज द्वितीय महारावल बना किंतु उसके काल में दीवान मेहता स्वरूप सिंह और सालिम सिंह का ही अधिक प्रभाव रहा वहीं राज्य के वास्तविक स्वामी बने रहे जिसके कारण मूल सिंह ने सालिम सिंह के अत्याचारों से तंग आकर 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली और कंपनी का संरक्षण प्राप्त कर लिया मूलराज के बाद गज सिंह जैसलमेर का महारावल बना जिसने आना सिंह राजपूत के माध्यम से दीवान सालम सिंह की हत्या करवाई

गज सिंह के बाद 3 सालों तक बालक रणजीत सिंह महारावल बना जो गज सिंह के छोटे भाई केसरी सिंह का बेटा था रणजीत सिंह की व्यस्त होने तक केसरी सिंह ने राज्य का राज्य भार संभाला किंतु मात्र 21 वर्ष की आयु में ही रणजीत सिंह का स्वर्गवास हो गया तब कंपनी ने केसरी सिंह के दूसरे बेटे ‘वेरी साल’ सिंह को महारावल बनाया ‘बेरीसाल’ के निसंतान मरने पर लाठी के ठाकुर खुशाल सिंह के 5 वर्षीय पुत्र शालिवाहन को महारावल बना दिया गया किंतु बड़ा होकर शराब के नशे का वह भी आदि हो गया और नशे की लत के कारण उसकी मृत्यु हो गई और वह भी निसंतान ही था

इसके बाद मान सिंह के बेटे जवाहर सिंह को 1914 में जैसलमेर महारावल बनाया गया जिनकी 1949 में मृत्यु हो गई तब तक देश आजाद हो चुका था और रियासतों के एकीकरण का काम चल रहा था  महारावल जवाहर सिंह के बेटे गिरधर सिंह की मृत्यु 1950 में हो गई और उसके बाद उनके बेटे रघुनाथ सिंह जी महाराज बने इनके बाद इनके बेटे भरत राज वर्तमान में जैसलमेर के महारावल माने जाते हैं | जैसलमेर का इतिहास |

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