कामाख्या मंदिर का इतिहास, कामाख्या मंदिर का पौराणिक इतिहास, कामाख्या मंदिर का नाम कामाख्या कैसे पड़ा, कामाख्या मंदिर का प्रसाद
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है कामाख्या देवी के मासिक धर्म के रक्त से यहां लाल हो जाती है ब्रह्मपुत्र नदी कामाख्या मंदिर बहुत खूबसूरत और अपनी एक अलग संस्कृति लिए हुए हैं पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार गुवाहाटी आसाम का सबसे बड़ा शहर है ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर स्थित है प्राकृतिक सुंदरता से ओतप्रोत है यहां पर पूरे राज्य कि नहीं बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की विविधता साफ तौर पर देखी जा सकती है संस्कृति व्यवसाय और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र होने के कारण आप यहां विभिन्न नस्लों धर्म और क्षेत्र के लोगों को एक साथ देख सकते हैं
यह शहर पर्यटन स्थलों से भरा पड़ा है कामाख्या मंदिर गुवाहाटी का प्रमुख धार्मिक स्थल है यह मंदिर गुवाहाटी के अंतर्गत आने वाली नीलांचल पहाड़ियों में स्थित है यह मंदिर रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यह मंदिर एक तांत्रिक देवी को समर्पित है इस मंदिर में आपको मुख्य देवी कामाख्या के अलावा देवी काली के अन्य दस रूप देखने को मिलेंगे | कामाख्या मंदिर का इतिहास |
कामाख्या मंदिर का पौराणिक इतिहास
108 शक्ति पीठ में शुमार होने के अलावा यह मंदिर और इससे जुड़ी कृदंती अपने में एक दास्तां समेटे हुए हैं एक बार देवी सती अपने पिता द्वारा किए जा रहे हैं महान यज्ञ में शामिल होने जा रही थी तब उनके पति भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया इसके बाद देवी सती अपने पति की आज्ञा लिए बिना वह उस यज्ञ में चली गई जब देवी सती यज्ञ में पहुंची तो वहां उनके पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का घोर अपमान किया गया अपने पिता के द्वारा पति के अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ के हवन कुंड में ही कूदकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी
जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष प्रजापति से प्रतिशोध लेने का निर्णय किया और उस स्थान पर पहुंचे जहां यह यज्ञ हो रहा था उन्होंने अपनी पत्नी के मृत शरीर को निकालकर अपने कंधे पर रखा और अपना विकराल रूप लेते हुए तांडव शुरू कर दिया भगवान शिव के गुस्से को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे देवी के शरीर के कई टुकड़े हुए जो कई स्थानों में गिरे जिन्हें शक्तिपीठों के नाम से जाना जाता है देवी सती का गर्भ और योनि यहां आकर गिरे और जिससे इस शक्तिपीठ का निर्माण हुआ है | कामाख्या मंदिर का इतिहास |
कामाख्या मंदिर का नाम कामाख्या कैसे पड़ा
एक बार किसी काम के चलते कामदेव ने अपना पोरस खो दिया जिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही इस श्राप से मुक्ति मिली तब से यहां कामाख्या देवी की मूर्ति को रखा गया और उसकी पूजा शुरू हुई यह वही स्थान है जहां देवी सती और भगवान शिव के बीच प्रेम की शुरुआत हुई संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है अतः इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया कामाख्या देवी को बहते हुए खून की देवी भी कहा जाता है यहां देवी के गर्भ और योनि को मंदिर के गर्भ गृह में रखा गया है जिसमें जून के महीने में रक्त का प्रवाह होता है यहां के लोगों में मान्यता है कि इस दौरान देवी अपने मासिक चक्र में होती है और इस दौरान यहां स्थित ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है
इस दौरान यह मंदिर 3 दिन बंद रहता है और इस लाल पानी को यहां आने वाले भक्तों के बीच बांटा जाता है यहां इस बात का कोई पौराणिक ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि देवी के रक्त से ही नदी लाल होती है यहां रक्त संबंध में कुछ लोगों का यह भी कहना है इस समय नदी में मंदिर के पुजारियों द्वारा सिंदूर दान किया जाता है जिससे यहां का पानी लाल प्रतीत होता है यह मंदिर एक स्त्री की रचनात्मकता को दर्शाता है और यह बताता है कि स्त्री ही इस ब्रह्मांड की जननी है और हमें उसका सम्मान हर हाल में करना | कामाख्या मंदिर का इतिहास |
कामाख्या मंदिर का प्रसाद
यहां पर दुर्गा की कोई मूर्ति नहीं मिलेगी यहां पर एक कुंड बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है और उससे हमेशा प्राकृतिक झरने का जल निकलता रहता है कामाख्या मंदिर को समस्त निर्माण का केंद्र माना जाता है क्योंकि समस्त रचना की उत्पत्ति महिला योनि को जीवन का प्रवेश द्वार मान कर की गई है पूरे भारत में मासिक धर्म को अशुद्ध माना जाता है यहां पर दिए जाने वाला प्रसाद दूसरी शक्तिपीठों से बहुत ही अलग है इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का कपड़ा दिया जाता है जब देवी को 3 दिन तक रजस्वला हुई तो सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अंदर बिछा दिया गया
3 दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले गए तो वह कपड़ा लाल हो गया इसके बाद उस कपड़े को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है यहां पर कोई मूर्ति नहीं है बल्कि एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि दर्शाता है एक प्राकृतिक झरने से हमेशा पानी निकलता रहता है और यह गीला रहता है इस झरने के जल को काफी प्रभाव कारी और शक्तिशाली माना गया है यहां पर पशुओं की बलि दी जाती है यह स्थान तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है यहां पर अघोरी और साधुओं का ताता लगा रहता है यहां पर काला जादू भी होता है अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रस्त है तो यहां आकर उसे इससे निजात मिल जाएगा कामाख्या के तांत्रिक और साधु चमत्कार करने में सक्षम होते हैं कई लोग विवाह बच्चे और कई इच्छाओं की आपूर्ति के लिए यहां आते हैं कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना है पहला हिस्सा है सबसे बड़ा जहां पर हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता दूसरे में माता के दर्शन होते हैं | कामाख्या मंदिर का इतिहास |