कांगड़ा किला का इतिहास

कांगड़ा किला का इतिहास, ऐतिहासिक धरोहर कांगड़ा किला, कांगड़ा किले पर किए गए आक्रमण, किला कांगड़ा का पौराणिक नाम क्या था, काँगड़ा विद्रोह कब शांत हुआ

ऐतिहासिक धरोहर कांगड़ा 

कांगड़ा का किला हिमाचल प्रदेश में स्थित है कांगड़ा किला दो महान प्रसिद्ध नदियों बानगंगा और मानसी नदी के किनारे पर बना हुआ है इस किले की दीवारें बहुत ही मोटी और ऊंची है यह किला दुनिया के सबसे पुराने किलो में से एक है यह हिमालय का सबसे बड़ा किला और भारत का सबसे पुराना किला है नगरकोट के नाम से जाना जाने वाला यह कांगड़ा किला कांगड़ा शहर के नजदीक पड़ता है कांगड़ा किले का निर्माण कांगड़ा शहर के मुख्य शाही परिवार ने करवाया था

कांगड़ा किले की समुद्र तल से ऊंचाई को देखा जाए तो यह तकरीबन 350 फुट की ऊंचाई पर स्थित है कांगड़ा किला 4 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है जहां पर कांगड़ा किला आज बना हुआ है उस स्थान को पुराना कांगड़ा के नाम से जाना जाता है कांगड़ा किले से धौलाधार की सुंदर पहाड़ियां दिखाई देती है कांगड़ा किले का निर्माण कांगड़ा किले का निर्माण 1500 शताब्दी के अंदर सू शर्मा चंद्र ने करवाया था

महाराजा सु शर्मा चंद्रा ने महाभारत में वर्णित कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के साथ लड़ाई लड़ी थी इस लड़ाई में पराजित होने के बाद उन्होंने त्रिगर्त साम्राज्य को अपने नियंत्रण में ले लिया और कांगड़ा किले को बनवाया था  इस किले में बृजेश्वरी मंदिर स्थित है यह किला 500 राजाओं की वंशावली के पूर्वज “राजा भूमचंद” के नगर की राजधानी था

यह किला कटोच शासकों के अतिरिक्त अनेक शासकों के आधिपत्य में रहा कटोच शासकों के अतिरिक्त इस किले पर मुगलों, सीखो, अंग्रेजों, ने आक्रमण किया था और अपने अधिपत्य में लिया था 4 अप्रैल 1905 को आए भयंकर भूकंप के कारण इस किले को भारी क्षति पहुंची थी पहले इस किले में अंग्रेजों का अधिपत्य था और बाद में इसे  कटोच वंश को वापस सौंप दिया गया था किले के प्राचीनतम अवशेष 9 वीं 10 वीं सदी के जैन व हिंदू मंदिरों के रूप में विद्यमान है | कांगड़ा किला का इतिहास |

कांगड़ा किले पर किए गए आक्रमण

 किले के प्राचीनतम लिखित प्रमाण मोहम्मद गजनी के आक्रमण साल 1009 से मिलते हैं आक्रमण के बाद मोहम्मद गजनी ने इस किले में एक किलेदार को नियुक्त किया था बाद में दिल्ली के तोमर शासकों द्वारा 1043 में कटोच शासकों को दरबार सौंपा गया था इसके बाद 1337 में मोहम्मद तुगलक और बाद में 1351 में फिरोजशाह तुगलक ने अपना आधिपत्य स्थापित किया था अकबर के शासन के दौरान 1556 में  कांगड़ा किला फिर से अस्तित्व में आया

जिसने इसे जीतकर धर्म चंद कटोच को सौंप दिया इसके बाद 1563 में धर्म चंद की मृत्यु के बाद यह किला उनके बेटे को सौंप दिया गया था इसके बाद 1571 में अकबर के सेनापति “खानजहां” ने इस किले पर आक्रमण किया था लेकिन यह किला मुस्लिमों के अधिपत्य के स्थाई रूप में साल 1621 के बाद ही आया था जहांगीर ने 14 महीने की पग बंदी के बाद किले पर अधिपत्य स्थापित कर इसे मुगल गवर्नर “सैफलीखान” को निगरानी के लिए सौंप दिया था इसके बाद 1781 में सैफ अली खान की मृत्यु हो जाती है और बटाला के जयसिंह ने इसे अपने अधीन कर लिया

1786 में मैदानी क्षेत्रों के बदले इस किले पर अधिकार ‘संसार चंद’ कटोच को सौंप दिया गया कांगड़ा पेंटिंग का विकास भी इसी समय में हुआ था इसके बाद 4(1804) वर्षों तक गोरखाओ ने इस किले के चारों ओर घेराबंदी डाल दीकुछ समय के बाद राजा संसार चंद और राजा रणजीत सिंह के बीच में एक संधि हुई और उस संधि में यह किला राजा रणजीत सिंह को सौंप दिया गया था इस प्रकार 1846 तक यह किला सिखों के अधिकार में रहा 4 अप्रैल 1905 को आए भूकंप के समय अंग्रेजों ने इसे खाली कर दिया था | कांगड़ा किला का इतिहास |

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