करणी माता का इतिहास 

करणी माता का इतिहास, करणी माता का जन्म, करणी माता का विवाह, माता करणी का चमत्कार , राठौड़ राजवंश की स्थापना 

करणी माता का जन्म

 करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर में 30 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है इस मंदिर में देश-विदेश से श्रद्धालु अपनी मन्नत मांगने के लिए आते हैं यह राठौड़ राजवंश की कुलदेवी है मीना जी के 5 बेटियां थी उनका एक भी बेटा नहीं था इसी संताप में मेहा जी दुखी रहा करते थे पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर वह मां हिंगलाज की यात्रा पर गए

मां हिंगलाज मेहा जी की श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देती है मेहा जी पुत्र प्राप्ति की आस लेकर लौट आए और इंतजार में 20 माह बीत गए देवल देवी गर्भ से थी मगर किसी शिशु ने जन्म नहीं लिया था इसी बीच एक रात मा दुर्गा ने सपने में देवल को दर्शन दिए कहा धैर्य रख देवल मैं अपनी इच्छा से तुम्हारी कोख से जन्म लूंगी इस तरह विक्रम संवत 1444 को सुवाप गांव में आश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन 21 माह के गर्भ के बाद करणी मां का जन्म होता है इस प्रकार1387ईस्वी को मारवाड़ के सुआ गांव ‘मेहा जी चारण’ के घर छठी बेटी का जन्म हुआ

‘मेहा जी को एक बेटे का इंतजार था उन्होंने छठी बेटी का नाम रीता बाई रखा था उसी काल में रीता बाई ने अपनी बुआ की टेढ़ी उंगली एक ही स्पर्श से ठीक कर दी थी उसके बाद उसकी बुआ ने उन्हें नया नाम दिया  करणी जिसका अर्थ होता है चमत्कारी करणी माता ने बाल्यकाल से ही कई आलौकिक चमत्कार किए थे | करणी माता का इतिहास |

करणी माता का विवाह 

जब करणी की उम्र शादी की हुई तो उनके पिता ने उनकी शादी साठिका के गांव “दीपो जी चारण” से कर दी थी शादी के बाद करणी ने साफ कर दिया की उनकी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है इसके बाद करणी ने अपनी छोटी बहन गुलाब की शादी दीपो चारण से करवा दी और खुद को गृहस्थ जीवन से दूर रखा उनका कहना था कि उनका जीवन लोक कल्याण के लिए है करणी माता की बहन और दीपो चारण के घर चार बेटों का जन्म हुआ थामां करणी उन चारों बेटों को अपने बेटों की तरह प्यार करती थी उन्हें अपना बेटा मानती थी बाद में इन चारों लड़कों के वंशज है

दीपो चारण के नाम से जाने गए यह चारों मां करणी के साथ ही रहते थे करणी माता के जाने के बाद यह लोग उनके मंदिर के पुजारी बने देशनोक में जहाज करणी माता का मंदिर है वहां दीपो चारण के चार मोहल्ले में बसे हुए हैं यदि दीपो चारण में कोई व्यक्ति मरता है तो वह करणी माता के मंदिर में चूहे के रूप में जन्म लेता है इन चूहों में सफेद चूहों को करणी जी का रूप माना जाता है इस का दर्शन करना शुभ माना जाता है यह चूहों को काबा कहा जाता है | करणी माता का इतिहास |

 माता करणी का चमत्कार 

एक समय मारवाड़ में भयंकर अकाल पड़ा था और दीपू जी ने अपनी और अपने मवेशियों की जिंदगी बचाने के लिए मारवाड़ से जांगल प्रदेश की तरफ रुख किया यहां के गांव में उन्होंने डेरा डाल दिया उस समय तक मारवाड़ के शासक ‘राव चूड़ा’ मारे जा चुके थे और उनके बड़े बेटे राव “कान्हा” का शासन इस इलाके पर चलता था लेकिन वह एक अयोग्य  शासक था जांगल प्रदेश में प्रवास के दौरान राव कान्हा के कुछ सैनिकों ने करणी और उसके मवेशियों को पानी पीने से रोक दिया जब यह खबर कान्हा के गौ भक्त भाई “राव रणमल” को लगी तो वे स्वयं करणी और दीपोजी के पास आए और उन्हें पास ही के गांव के गोचर में चलने का निवेदन किया

करणी जी के गोचर में जाने की बात सुनकर राव कान्हा काफी नाराज हो गया उसने मौके पर आकर करणी जी को आदेश दिया कि उसका राज्य छोड़कर चली जाए इसके बाद करणी जी ने कान्हा राव को काफी धीकारा चाहिए और अंत में करणी ने शर्त रखी कि यदि वह उसकी पूजा की पेटी को उठाकर रेलगाड़ी में रख देता है तो वह अभी उसका राज्य छोड़ कर चली जाएगी राव कान्हा बड़ी मशक्कत के बाद भी उस पेटी को उठा तक नहीं पाया और गुस्सा हो गया उसने करणी जी को ललकारते हुए पूछा कि वह जादू ही दिखा रही है तो बताइए कि वह कब मरेगा

इसके बाद मां करणी ने उसे चेताया उसकी जिंदगी महज 1 साल की बची है इसके बाद मां करणी ने जमीन पर एक लकीर खींची और गांजे से कहा कि यह लकीर ही उसकी जीवन रेखा है यदि वह इसे अभी पार करेगा तो वह अभी मारा जाएगा बताया जाता है कि गांजे ने चेतावनी के बाद भी ऐसा करने का दुस्साहस किया था और मारा गया इसके बाद मां करणी ने गांजे के छोटे भाई राव रणमल को जांगलो प्रदेश का राजा घोषित कर दिया यही राव रणमल जोधा के पिता थे | करणी माता का इतिहास |

राठौड़ राजवंश की स्थापना 

मारवाड़ में राठौर राजवंश की स्थापना का किस्सा आज से 750 वर्ष पुराना है राठौड़ राजवंश के मूल पुरुष ‘राव सीहा जी’ ने पाली और उसके आसपास के इलाकों को जीतकर मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की शुरुआत की थी राव सीहा के बाद ‘राव चूड़ा’ ने इस राज्य को बढ़ाया और राठौड़ वंश की ख्याति को चार और फैलाया राव चूड़ा ने अपनी पुत्री हनसा बाई का विवाह मेवाड़ के शासक ‘राणा लाखा’ से किया था राव चूड़ा की मृत्यु के बाद राव रणमल जी मां करणी जी के आशीर्वाद से मंडोर की राजगद्दी पर बैठे थे

उस समय मेवाड़ में महाराणा लाखा कि जल्द ही मृत्यु हो जाती है इसलिए  हनसा बाई  अपने पुत्र ‘मोकल’ के संरक्षक के रूप में राव रणमल जी को बुलावा भेजती है राव रणमल अपने पुत्रों और विश्वस्त सरदारों के साथ मेवाड़ में व्यवस्था बनाने में लग जाते हैं लेकिन इसी दौरान दरबारी षड्यंत्र के चलते गहरी नींद में सोए राव रणमल की हत्या करवा दी गई रणमल के बेटे जोधा को वहां से जान बचाकर भागने पर मजबूर होना पड़ा अपने साथ 700 घुड़सवार लिए राव जोधा मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ के किले से भागने में कामयाब रहा था उसकी मुठभेड़ चित्तौड़ की सेना से हुई जब वह वापस मारवाड़ की राजधानी मंडोर पहुंचा तो उसके पास अपने सहित महज 7 घुड़सवार बचे थे संकट की इस घड़ी में जोधा को इस शरणगहा की याद आई जहां कभी उसके पिता ने शरण ली थी औ

र वह स्थान था ‘जांगली प्रदेश’ जांगली प्रदेश पश्चिमी राजस्थान का वह हिस्सा जिसमें हम लोग आज बीकानेर, चूरू, हनुमानगढ़ ,और श्री गंगानगर के नाम से जानते हैं यहां उनकी मुलाकात मां करणी से होनी थी जिनके आशीर्वाद से राव जोधा के पिता राजा बने थे मां करणी की आशीष से राव जोधा जल्दी अपना खोया हुआ राज्य पुनः जीतने में कामयाब होते हैं और जोधपुर नगर की नींव रखते हैं इस समय खुद मां करणी यहां पधारी थी और जोधपुर में मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव अपने हाथों से रखी थी मां करणी ने 500 वर्षों तक राठौड़ का शासन बने रहने का आशीर्वाद दिया था | करणी माता का इतिहास |

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