कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय, जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म, कर्पूरी ठाकुर की शिक्षा, किसानों के लिए किए गए काम, कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व, कर्पूरी ठाकुर का निधन
जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म
जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिला के पितौंझिया गांव में हुआ उनकी माता ‘राम दुलारी देवी’ और उनके पिताजी का नाम “गोकुल ठाकुर” था और उनकी पत्नी का नाम ‘फुलेशरी देवी’ था ठाकुर जी के बाल्यावस्था अन्य गरीब परिवार के बच्चों की तरह खेलकूद तथा गाय, भैंस और पशुओं के चराने में बीता उन्हें दौड़ने, तैरने, गीत गाने तथा डफली बजाने का शौक था | कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय |
कर्पूरी ठाकुर की शिक्षा
6 वर्ष की आयु में इनका गांव की ही पाठशाला में दाखिला कराया गया कर्पूरी ठाकुर के अंदर बचपन से ही नेतृत्व क्षमता ने जन्म लेना शुरू कर दिया था छात्र जीवन के दौरान युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर चुके कर्पूरी ठाकुर ने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया इसके बाद उन्होंने 1940 में मैट्रिक द्वितीय श्रेणी से पास किया और दरभंगा के चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय में आई.ए. में नामांकन करा लिया करपुरी ठाकुर अपने घर से कॉलेज रोज 50 -60 किलोमीटर तक यात्रा करते हुए 1942 में आइ.ए. द्वितीय श्रेणी से पास किया और पुनः उसी कॉलेज से B.A. में नामांकन करा लिया जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने 1942 में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और उस आंदोलन में हिस्सा लिया और जयप्रकाश नारायण के द्वारा गठित “आजाद दस्ता” के सक्रिय सदस्य बने तंग आर्थिक स्थिति से निजात पाने के लिए उन्होंने गांव के ही मध्य विद्यालय में ₹30 प्रति माह की दर प्रधानाध्यापक का पद स्वीकार किया उन्हें दिन में स्कूल के अध्यापक और रात में आजाद दस्ता के सदस्य के रूप में जो भी जिम्मेदारी मिलती उसे बखूबी निभाते थे | कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय |
किसानों के लिए किए गए काम
भारत छोड़ो आंदोलन में जबरदस्त तरीके से हिस्सा लेने और अंग्रेजी सरकार को हिलाने वाले कर्पूरी ठाकुर को 2 साल से ज्यादा समय तक जेल में गुजारना पड़ा 23 अक्टूबर 1943 को रात के लगभग 2:00 बजे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दरभंगा जेल में डाल दिया गया यह उनकी पहली जेल यात्रा थी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1952 के प्रथम आम चुनाव में वे समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भारी बहुमत से विजय पाए
पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे अपने दो कार्यकाल में कुल मिलाकर ढाई साल के मुख्यमंत्री तो काल में उन्होंने जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर छोड़ी है, वैसा दूसरा उदाहरण नहीं दिखता वह बिहार के पहले ‘गैर- कांग्रेसी’ मुख्यमंत्री थे 1967 में पहली बार उप मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया इसके चलते उनकी आलोचना भी खूब हुई लेकिन उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया इस दौर में अंग्रेजी में फैल मैट्रिक पास लोगों का मजाक ‘कर्पूरी डिवीजन’ से पास हुए कहकर उड़ाया जा रहा था
इसी दौरान उन्हें शिक्षा मंत्री का पद भी मिला हुआ था और उनकी कोशिशों के चलते ही मशीनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया और आर्थिक तौर पर गरीब बच्चों की स्कूल की फीस को माफ करने का काम भी उन्होंने किया था वह देश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक की मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया 1952 से 1988 के अपने जीवन के अंतिम दिन तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे उन्होंने सीएम बनने के बाद पिछड़े वर्ग के लोगों के हित के लिए बहुत से काम किए जिसके कारण उन्हें “जननायक” की उपाधि दी गई
कर्पूरी ठाकुर का जीवन जीना पसंद करते थे विधायक रहते हुए भी वह जो पड़ी नुमा मकान में रहते थे किसानों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं देने वाले कर्पूरी ठाकुर गाड़ी खराब होने पर पैदल ही चल दिया करते थे एक कार्यक्रम में जाते हुए रास्ते में उनकी गाड़ी खराब हो गई तो उन्होंने ट्रक में लिफ्ट ले ली कर्पूरी ठाकुर ने किसानों को राहत देने के लिए मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया सचिवालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मियों के लिए वर्जित लिफ्ट को उनके लिए खोल दिया गरीबों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मुंगेरीलाल कमीशन लागू करने पर कर्पूरी ठाकुर को सवर्णों का विरोध झेलना पड़ा उन्होंने राज्य कर्मचारियों के बीच कम ज्यादा वेतन और हीन भावना को खत्म करने के लिए समान वेतन आयोग लागू कर दिया | कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय |
कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व
एक बार जब उनकी लड़की का रिश्ता रांची में हुआ तब वह लड़का देखने के लिए किराए की गाड़ी लेकर गए थे परंतु शादी वहां नहीं हुई थी जब ठाकुर 1957 में गांव का दौरा कर रहे थे उसी दौरान उन्होंने देखा कि एक है जब पीड़ित अपने जीवन का अंतिम क्षण गिर रहा है स्थल वहां से काफी दूर था और उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई सड़क मार्ग भी नहीं था
उसके परिजन उसे मरते हुए देखने के लिए विवश थे लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने जब पीड़ित व्यक्ति को अपने कंधों पर उठाया और करीब 5 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाकर ही दम लिया इसलिए कृपया ठाकुर को “गरीबों का मसीहा” कहा जाता है जननायक करपुरी ठाकुर ने 1967 में बिहार के उप मुख्यमंत्री तथा 1970 एवं 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया
कर्पूरी ठाकुर का निधन
12 अगस्त 1987 को उन्हें विपक्ष के नेता पद से हटाया गया 17 फरवरी 1988 को 68 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण इस महान विभूति का निधन हो गया कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बनने के बावजूद भी अपना घर नहीं खरीद पाए इससे उनकी ईमानदारी और सादगी का पता चलता है वह कहते थे कि जब बिहार के गरीबों का घर नहीं बना दूं तब तक मैं अपना घर नहीं बनाऊंगा | कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय |