कवि देव दत्त द्विवेदी का जीवन परिचय

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कवि देव दत्त द्विवेदी का जीवन परिचय

 देव रीतिकाल के प्रमुख कवि थे रीतिकाल की कविताओं का संबंध दरबारों और आशीर्वाद दाताओं से है इस कारण उनकी काव्य में दरबारी संस्कृत का चित्रण अधिक मिलता है परंतु देव के काव्यो में प्रेम और सौंदर्य का चित्रण भी देखने को मिलता है जो अत्यंत मनमोहक है अलंकारिकता और श्रृंगारिकता देव के काव्य की प्रमुख विशेषता है इनके  कवित सवालों में एक और जहां रूप सौंदर्य का अलंकारिक चित्रण देखने को मिलता है वहीं दूसरी और प्रेम और  प्रकृति के प्रति कवि के भावों की अतरंग अभिव्यक्ति देखने को मिलती है रस विलास, विलास, काव्य रसायन, भवानी विलास आदि कवि देव जी के द्वारा लिखे गए कई काव्य ग्रंथों में से प्रमुख काव्य ग्रंथ है | कवि देव दत्त द्विवेदी का जीवन परिचय | 

कवि देव दत्त का जन्म 

रीतिकालीन कवि देव का पूरा नाम देव दत्त द्विवेदी था इनका जन्म सन 1673 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के इटावा के घोसरिया ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनके पिता जी का नाम पंडित बिहारीलाल था यह एक दरबारी कवि थेवे संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे काव्य कौशल की दृष्टि से देवजी महाकवि बिहारी के समकक्ष माने जाते थे औरंगजेब के पुत्र आलम शाह के संपर्क में आने के बाद देव ने अनेक आश्रय दाता बदले किंतु उन्हें सबसे अधिक संतुष्टि भोगीलाल नाम के आश्रय दाता के यहां प्राप्त हुई जिसने उनके काव्य से प्रसन्न होकर उन्हें लाखों की संपत्ति दान की थी अनेक आश्रय दाता राजाओं, नवाबों धनीको से संबंध रहने के कारण राज दरबारों का आडंबरपूर्ण और चाटकारिता भरा जीवन देव ने बहुत निकट से देखा था इसलिए उन्हें ऐसे जीवन से वितृष्णा हो गई थी 

कवि देव की रचनाएं 

देव कृत कुल ग्रंथों की संख्या 52 से 70 तक मानी जाती है जिनमें प्रमुख हैं- 

1.रस विलास- राजा भोगीलाल के लिए 

2.भाव विलास- औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के लिए 

3.भवानी विलास- भवानी दत्त वेश्या के नाम पर 

4.कुशल विलास- कुशल सिंह के लिए 

5.अष्टयाम- औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के लिए 

6.सुजान विनोद- सुजान सिंह के लिए 

7.प्रेम चंद्रिका- राजा उद्योत के लिए 

8.जाति विलास -भ्रमण के अनुभव पर आधारित 

सुनील विनोद, काव्य रसायन, प्रेम तरंग आदि 

देवदत्त द्विवेदी ने 1689 ईस्वी में मात्र 16 वर्ष की आयु में प्रथम ग्रंथ ‘भाव विलास’ की रचना की थी श्रृंगार, रस नायक नायिका भेद एवं 39 अलंकारों का निरूपण है यह ग्रंथ आजमशाह के आश्रय में लिखा था 

कवि देव की साहित्यिक विशेषताएं

कवि देव अपने भावभिव्यक्ति की श्रेष्ठ शैली के कारण वे रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं इनकी रचनाओं में एक और जहां रूप सौंदर्य का अलंकारिक चित्रण हुआ वही रागात्मक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी संवेदनशीलता के साथ हुई है कवि देव ने अपनी रचनाओं में प्रकृति के सुकुमारता, सरसता, रमणीयता के सुंदर चित्र दर्शाए हैं इनको प्रेम और सौंदर्य का कवि माना जाता है इनके काव्य में श्रृंगार के उदात रूप का चित्रण है भक्ति और वैराग्य भी इनके विषय रहे हैं प्रकृति के उद्दीपन रूप का सफल चित्रण इनकी कविताओं में हुआ है ध्वनि योजना इन के काव्य में पग-पग पर प्राप्त होती है

“देव शतक” नामक रचना में कवि ने दार्शनिक विचारों को समझा है देव की काव्य भाषा शुद्ध ब्रज है पर उसमें यत्र तत्र राजस्थानी, बुंदेलखंडी तथा अवधि शब्द प्रयुक्त मिलते हैं इसके बाद भी सर्वत्र अनुशासन ब्रज का ही है देव रीतिसिद्ध कवि थे रस विवेचन के प्रसंग में उन्होंने ‘छल’ नामक एक नवीन संचारी की भी कल्पना की है उन्होंने सामान्य जीवन से चुनकर अनेक नवीन एवं आकर्षक उपनाम जुटाए हैं कल्पना की ऊंची उड़ान के परिणाम स्वरूप रंग वैभव और प्रसाधन सामग्री ने देव की बिंबयोजना में सौंदर्य की सृष्टि की है रूप, अनुभव, मिलन आदि से संबंधित अपने लक्षित और उपलक्षित रूपों में इतने स्पष्ट और आकर्षक हैं कि इस युग के उत्कृष्ट कलाकारों के संबंधित बिंब ही इनके समक्ष ठहर पाते हैं | कवि देव दत्त द्विवेदी का जीवन परिचय |

कवि देव की भाषा शैली 

इनकी भाषा प्रवाहमई और साहित्यिक है देव आचार्य और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं इनके काव्य की भाषा कोमलकांत पदावली युक्त ब्रजभाषा है इनकी शब्दावली में संगीतमय प्रवाह युक्त शब्द चयन छंद को सहज स्मरणीय बना देता है इनका प्रिय रस श्रृंगार है जिसका इन्होंने दोनों पक्षों का श्रेष्ठ चित्रण किया है इन्होंने प्रचलित मुहावरों का भी खूब प्रयोग किया है

अनुप्रास और यमक इनके प्रिय अलंकार हैं इन्होंने दोहा और सवैया छंद में रचना की है सवैया में कवि देव ने कृष्ण के रूप सौंदर्य का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है उन्होंने श्रृंगार के माध्यम से श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का गुणगान किया है उन्होंने कृष्ण को दूल्हे के रूप में बताया है कवि के अनुसार श्रीकृष्ण के पैरों में बजती हुई पायल बहुत ही मधुर ध्वनि पैदा कर रही है उनकी कमर में बंधी हुई करगनी जब हिलती है, तो उससे निकलने वाली किन-किन की आवाज भी बड़ी ही सुरीली लगती है

देव जी ने अपनी कविता के माध्यम से श्री कृष्ण के श्रृंगार के विषय में बताया है कि उनके सामने शरीर पर पीले रंग का वस्त्र बहुत ही शोभित हो रहा है उनके गले में पड़ी पुष्पों की माला देखते ही बनती है श्री कृष्ण के माथे पर मुकुट है और उनके चांद रूपी मुख से मंद मुस्कान मानो चांदनी के समान फैल रही है उनकी बड़ी-बड़ी आंखें चंचलता से भरी हुई है जो उनके मुख मंडल पर चार चांद लगा रही है कवि के अनुसार ब्रिज दूल्हे श्री कृष्ण इस संसार रूपी मंदिर में किसी दिए की भांति प्रज्वलित है 

कवि देव दत्त की मृत्यु 

कवि देव दत्त की मृत्यु 1767 ईस्वी में हुई थी देव जी का प्रमुख ग्रंथ “काव्य रसायन” है जीवन के अंतिम दिनों में यह अकबर अली खान के आश्रम में रहे और अपने समस्त रचनाओं को सुख सागर तरंग नाम से उन्हीं को समर्पित किया | कवि देव दत्त द्विवेदी का जीवन परिचय |

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