खुदीराम बोस का जीवन परिचय

खुदीराम बोस का जीवन परिचय और इतिहास, खुदीराम बोस का जन्म, खुदीराम बोस की शिक्षा, बंगाल का विभाजन, खुदीराम बोस की मृत्यु

खुदीराम बोस का जन्म 

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मदीनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था इनकी माता जी का नाम लक्ष्मीप्रिया था इनके पिता जी का नाम त्रिलोकनाथ बोस था इनके पिताजी एक तहसीलदार थे खुदीराम बोस को बचपन से ही आजादी की लगन हो गई थी उन्होंने मन में ठान लिया था कि मुझे क्रांतिकारी बनना है उस समय लोकमान्य तिलक को 4 पेज का संपादक लिखने के कारण जेल हुई थी

जब खुदीराम बोस को इस बात का पता लगा तो उन्होंने जीवन में संकल्प किया कि मुझे इसका बदला लेना है जब इनके पिताजी को कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने काली माता की पूजा की उन्होंने लगातार तीन दिन तक काली माता की पूजा की और तीसरे दिन मां काली प्रकट हुई और उन्होंने इनके पिता जी से कहा कि तुम्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी और वह पुत्र यशस्वी होगा वह बड़ा होकर नाम करेगा परंतु वह ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रहेगा

उस समय एक मान्यता थी की जिसके बारे में ज्योतिषी यह कह देते थे कि यह बच्चा ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रहेगा तो उसके माता-पिता उस बच्चे को बेच देते थे ऐसा ही खुदीराम बोस के साथ हुआ तीन मुट्ठी चावल के बदले इनकी बहन ने इन्हें खरीद लिया ताकि यह ज्यादा दिन तक जीवित रह सके 6 वर्ष की आयु में खुदीराम बोस के माता पिता चल बसे थे उस समय इनकी बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी | खुदीराम बोस का जीवन परिचय |

खुदीराम बोस की शिक्षा

 इसके बाद इनकी बहन खुदीराम बोस को अपने घर ले गई उसके घर में खुदीराम बोस के उम्र का बेटा था खुदीराम बोस को तमलुक शहर में  ‘हमिल्टन’ स्कूल में भेजा गया इसके बाद खुदीराम बोस 12 साल के हो चुके थे और उनके अंदर क्रांतिकारी के गुण थे उनका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था वह बहुत ही निडर थे वह खेल खेल में जंगलों में चले जाते थे और जंगलों से सांप पकड़ कर ले आते थे

उनके साथ खेलने के बाद वापस उन्हें जंगलों में छोड़ आते थे एक बार वह बच्चों के साथ खेल रहे थे तो एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गए ऊंचे पेड़ से छलांग लगाने पर उनके शरीर पर कई चोटें आई उसी समय उनके स्कूल का अध्यापक वहां आ जाता है और उनके सामने खुदीराम बोस ने ऐसा दिखाया कि उनको कोई भी चोट नहीं लगी है वह सिर्फ खेल रहे हैं जब खुदीराम बोस स्कूल में पढ़ रहे थे उस समय हेजै की बीमारी फैली हुई थी खुदीराम बोस अपनी जान की परवाह किए बिना रोगियों की सहायता करते थे | खुदीराम बोस का जीवन परिचय |

 बंगाल का विभाजन

 जब 1950 में बंगाल का विभाजन हुआ उस समय लोकमान्य तिलक ने स्वदेशी आंदोलन चलाया हुआ था तो खुदीराम बोस भी उस आंदोलन में शामिल हो गए उस समय उनके स्कूल में स्वदेशी को हीन दृष्टि से देखा जाता था एक बार उनके स्कूल में एक बच्चा सफेद धोती पहन कर आ गया था तब सभी ने उसका मजाक उड़ाया तब खुदीराम बोस ने उसका पक्ष लिया और कहा कि स्वदेशी वस्त्र पहनना हमारे लिए गर्व की बात है स्वदेशी गौरव के विषय में खुदीराम बोस ने बचपन में ही सीख लिया था

उस समय एक और क्रांतिकारी थे हेमचंद्रकानून वह बड़े जमींदार थे 1896 में उन्होंने अपनी सारी संपत्ति बेच दी और वह यूरोप चले गए वहां जाकर उन्होंने बम बनाना सिखा उस समय क्रांतिकारियों के पास बम बनाने की तकनीक नहीं होती थी उन्हें लगता था यदि अंग्रेजों को यहां से भगाना है तो हमें बम बनाना सीखना होगा  खुदीराम बोस ने 1906 से लेकर 1907 तक स्वदेशी का प्रचार प्रसार किया 

एक बार खुदीराम बोस ने मदीना के शिव मंदिर में जाकर दंडवत पूजा की और भगवान शिव से यह कामना की कि मुझे अंग्रेजों से अपने देश को आजाद करवाना है खुदीराम बोस अपने साथ हमेशा भागवत गीता और देशभक्ति की पुस्तके रखते थे  खुदीराम बोस ने व्यायाम करके अपने शरीर को बहुत ही मजबूत बना लिया था शरीर को मजबूत बनाकर उन्होंने लाठी चलाना सीख लिया था और साथ ही बम बनाना भी सीख लिया था फरवरी 1996 मदीना में अंग्रेजों ने औद्योगिक मेले का आयोजन किया  तो उस समय नौजवानों में क्रांतिकारी की भावना जागृत करने के लिए एक क्रांतिकारी ने सोनार बग्ला पत्रिका निकलवाई इस पत्रिका को नौजवानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी खुदीराम बोस को दी गई

इसके बाद खुदीराम बोस ने मदीनापुर में हो रहे औद्योगिक मेले में अपनी पत्रिका बांटने शुरू कर दी पत्रिका बांट रहे थे तो यह सूचना पुलिस तक पहुंच गई और वहां पर पुलिस आ गई जब पुलिस ने खुदीराम बोस को पकड़ने की कोशिश की तो वह वहां से भाग गई परंतु कुछ समय के बाद पुलिस वालों ने खुदीराम बोस को पकड़ लिया और उन्हें जेल में डाल दिया कई महीनों की सजा काटने के बाद खुदीराम बोस जेल से बाहर आए और बाहर आने के बाद उन्होंने फिर से पत्रिका बांटना शुरू कर दिया | खुदीराम बोस का जीवन परिचय |

गवर्नर को मारने की योजना

1907मे खुदीराम और उनके क्रांतिकारियों ने यूरोप के गवर्नर को मारने की योजना बनाई उन्होंने नारायण स्टेशन पर रेल को बम से उड़ाने की योजना बनाई जिसमें कि गवर्नर बैठे थे परंतु दुर्भाग्य से उस दिन उस रेल के डिब्बे में गवर्नर नहीं थे और उनकी योजना निसफल रही उस समय किंग्स फोर्ड नाम का एक जज होता था जो मदीना पुर में काम करता था

उसे क्रांतिकारियों से बहुत ही नफरत थी वह क्रांतिकारियों को बहुत ही कड़ी सजा देता था खुदीराम बोस को जेल से छोड़ा गया तो उसने खुदीराम बोस का पूरे शहर में जुलूस निकाला था इसके बाद सभी क्रांतिकारियों ने उससे बदला लेने की ठान ली और उन्होंने योजना बनाई की हम किंग्स के पास एक पार्सल भेजेंगे जिसमें बम होगा जब वह पार्षद खोलेगा तो बम फटने की वजह से उसकी मौत हो जाएगी परंतु दुर्भाग्य से वह पार्सल कोर्ट के किसी और व्यक्ति ने खोल लिया था उनकी यह योजना भी सफल नहीं हो पाई इसके बाद अंग्रेजों को पता लग गया कि उनके जज की जान को खतरा है इसलिए उन्होंने उसे बिहार के मुजफ्फरनगर में भेज दिया

इसके बाद खुदीराम और उनके दोस्त मुजफ्फरनगर गए और उन्होंने वहां जाकर जज के ऊपर नजर रखना शुरू कर दिया और 30 अप्रैल 1960 को उन्होंने जज की बुग्गी पर बम डालने की योजना बनाई और जब जज घर जा रहे थे तब उन्होंने जज की बुग्गी पर बम फेंक दिया परंतु उन्हें नहीं पता था कि उस बुग्गी में जज नहीं है बम फटने के बाद खुदीराम वहां से निकल गए और वह 36 किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक स्टेशन पर पहुंचे जब वह स्टेशन पर पहुंचे तो वहां पर खड़े लोग आपस में बातचीत कर रहे थे कि जज मरे नहीं है जब उनकी बात खुदीराम ने सुनी तो उन्होंने कहा ‘क्या जज मरे नहीं है’ इसके बाद उन लोगों को खुदीराम पर शक हो गया और उन्होंने खुदीराम को पुलिस के हवाले कर दिया| खुदीराम बोस का जीवन परिचय |

खुदीराम बोस की मृत्यु

 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दी गई और वह खुशी-खुशी फांसी पर झूल गए खुदीराम बोस के अंतिम संस्कार में 18000 लोग इकट्ठे हुए थे और उन्होंने खुदीराम बोस को सह दिल से श्रद्धांजलि दी खुदीराम बोस ने लोगों के दिल में अपनी जगह बना ली थी इसके बाद नौजवान खुदीराम बोस का नाम छपी हुई धोती पहनने लगे खुदीराम बोस एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो इतनी कम उम्र में फांसी  के फंदे पर झूले थे उस समय उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी पुलिस से गिरा हुआ देख प्रफुल्ल कुमार चाकि ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी इस प्रकार इन दोनों क्रांतिकारी वीरों ने अपनी जान देश के लिए निछावर कर दी | खुदीराम बोस का जीवन परिचय |

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