कृष्णदेव राय का इतिहास

कृष्णदेव राय का इतिहास, कृष्ण देव राय का जन्म, अष्ट दिग्गज की स्थापना, आदिलशाह के साथ युद्ध, कृष्णदेव राय की मृत्यु

कृष्ण देव राय का जन्म 

जिस समय दिल्ली में तुगलक वंश का शासन चल रहा था तुगलक वंश के शासक मोहम्मद तुगलक के शासनकाल के अंतिम समय उसकी गलत नीतियों की वजह से पूरे राज्य में अव्यवस्था फैल गई थी इसका दक्षिण के राजाओं ने बहुत ही फायदा उठाया उन्होंने अपने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दिया था इसी दौरान हरिहर और बुक्का ने 1333 ईस्वी में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की इस राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा कृष्णदेव राय थे

महान राजा कृष्णदेव राय का जन्म 16 फरवरी 1471 में कर्नाटक के हंपी में हुआ था उनके पिताजी का नाम “तुलुब नरसा नायक” था और इनकी की माता जी का नाम “नगला देवी” था उनके पिताजी शालू वंश के एक सेनानायक थे इनके बड़े भाई का नामवीर नरसिंह था इनके पिता जी शालू वंश के अंतिम शासक इमार्तन के संरक्षक थे 1491 ईस्वी में इमार्तन को इनके पिता ने उन्हें बंदी बनाकर विजयनगर की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी पिता के राजा बनते ही कृष्ण देव राय की किस्मत बदल गई पल भर में ही उनकी जिंदगी एक सेनानायक से राजा के बेटे में बदल गई

इसके बाद वे आलीशान जिंदगी व्यतीत करने लगे तभी उनके ऊपर बुरी किस्मत के बादल मंडराने लगे और उनके पिता को राज्य सभाले ज्यादा वक्त नहीं हुआ था कि उनके पिताजी की मौत हो गई थी उनके पिताजी की मौत के बाद उनका राज्य बिखरने लगा है ऐसी स्थिति में उनके बड़े भाई ने कृष्णदेव राय को राज्य संभालने का आग्रह किया इसके बाद 8 अगस्त 1509 को कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक किया गया उन्होंने राज्य की बागडोर हाथ में लेने के बाद राज्य में फैले हुए विद्रोह को शांत किया और अपने राज्य की सीमा को मजबूत किया

वह शांति और सूझबूझ से अपने फैसले लेते थे वह कभी भी अपना हीत नहीं देखते थे वह हमेशा एक बीच का रास्ता निकालते थे ताकि सभी का भला हो सके कृष्ण देव एक महान राजा थे उन्होंने उस समय अपने राज्य को संभाला जब वह टूटने के कगार पर था जो काम असंभव लग रहा था उस काम को उन्होंने संभव कर कर दिखा दिया था इसके बाद  उन्होंने अपना शासन शुरू किया कृष्ण देव राय जानते थे कि यदि अपने राज्य को विशाल बनाना है तो उन्हें प्रजा तक पहुंच रखनी होगी इसके लिए उन्होंने एक अनूठी पहल शुरू की थी | कृष्णदेव राय का इतिहास |

अष्ट दिग्गज की स्थापना

उन्होंने अवंतिका जनपद के महान राजा “विक्रमादित्य” के नवरत्न रखने की परंपरा से प्रभावित होकर “अष्ट दिग्गज” की स्थापना की यह अष्ट दिग्गज पूरी तरह से राजा कृष्णदेव के अधीन थे उनका काम था कि राज्य को सुखी बनाए रखने के लिए राजा को सलाह दे बात दुश्मनों की हो ,जंग की हो या फिर प्रजा की खुशी की कृष्णदेव के यह अष्ट दिग्गज उन्हें हर चीज की सलाह देते थे बाद में अष्ट दिग्गज  बदलकर नवरत्न कर दिए गए थे इस समिति में बाद में तेनालीराम को भी शामिल कर लिया गया था उन्हें कृष्णदेव राय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी माना जाता था

उनकी सलाह और बुद्धिमता की वजह से कई बार राज्य को आक्रमणकारियों से निजात मिली वहीं दरबार में उनकी मौजूदगी से राज्य में कला और संस्कृति को भी बढ़ावा मिला यह कहने में कोई शक नहीं है कि वह विजयनगर साम्राज्य के चाणक्य थे एक अच्छे राजा की हर निशानी कृष्णदेवराय में मौजूद थी सेनानायक के पुत्र होने की वजह से उन्हें युद्ध कि अच्छे से समझ थी इसी वजह से उन्हें जंग में हराना काफी मुश्किल काम था कृष्णदेव राय ने अपने 21 वर्ष के शासनकाल के दौरान 14 युद्ध लड़े थे इस दौरान उन्होंने सभी युद्धों में जीत हासिल की थे बाबर ने अपनी आत्मकथा “तुजुक ए बाबरी” में कृष्ण देव राय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक तक बता दिया था

कृष्णदेव राय के शासन में हर कोई उनसे प्रभावित था फिर चाहे वह दोस्त हो या फिर दुश्मन कृष्णदेवराय एक योद्धा ही नहीं बल्कि एक विद्वान भी थे उन्होंने तेलुगू के प्रसिद्ध ग्रंथ अमुक्ता मालियन की रचना की थी उनकी यह रचना तेलुगु के प्रसिद्ध महाकाव्यों में से एक है लेकिन इसके अलावा कृष्ण देव राय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक जामवंती कल्याण को भी लिखा था इन्हें लोग इनके तेज दिमाग के लिए जानते हैं उन्होंने हर उस चीज को अपनाया जिसके जरिए उनका राज्य खुशहाल रहें यही कारण है की इतिहास में कृष्ण देव राय का नाम दर्ज है इस महान राजा का राज्य अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था हिंद महासागर में स्थित कुछ द्वीप भी उनका आधिपत्य स्वीकार करते थे उनके राज्य की राजधानी हंपी थी | कृष्णदेव राय का इतिहास |

आदिलशाह के साथ युद्ध 

इस महान राजा की सेना में 10लाख सैनिक 6000 घुड़सवार और 300 हाथी थे कृष्णदेव राय ने एक मुस्लिम सैनिक को ₹50000 देकर गोवा भेजा था घोड़े खरीदने के लिए परंतु वह सैनिक आदिलशाह के पास भाग गया इसके बाद  सुल्तान ने उसे वापस भेजने से अस्वीकार कर दिया इसके बाद कृष्णदेवराय ने युद्ध की घोषणा कर दी और गोलकुंडा और कई राज्यों के सुल्तानों को यह सूचना भेज दी थी

सूचना मिलने के बाद सभी सुल्तानों ने समर्थन स्वीकार किया इसके बाद 1520 ईसवी में आदिल शाह के साथ युद्ध हुआ और इस युद्ध में आदिल शाह को अपनी हार का सामना करना पड़ा था इसके बाद रायचूर का किला विजयनगर के अधिकार में हो गया कृष्णदेवराय एक महान भवन निर्माता भी थे उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मंदिर तथा 1000 खंभों वाला एक मंदिर भी बनवाया था उन्होंने विजय नगर के पास एक शहर भी बनवाया और एक बहुत बड़ा तालाब भी बनवाया था कृष्ण देव राय को अभिनय भोज की उपाधि प्राप्त थी 

कृष्णदेव राय की मृत्यु

 कृष्ण देव राय ने अपने पुत्र तिरुमल को राजगद्दी देकर उसे प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया था परंतु तिरुमल की एक षड्यंत्र के अंतर्गत हत्या कर दी गई इसी विषाद में 1529 ईसवी में उनकी भी हंपी  में मृत्यु हो गई थी 

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