लोक देवता देवनारायण जी का इतिहास पौराणिक कथा बाघ सिंह का विवाह देवनारायण जी की मृत्यु
लोक देवता देवनारायण जी का इतिहास
देवनारायण राजस्थान के लोक देवता है इन्हें हरियाणा, राजस्थान ,गुजरात और मध्य प्रदेश में भी पूजा जाता है देवनारायण जी का जन्म आसींद में हुआ था इनका बचपन का नाम “उदय सिंह” था यह एक गुर्जर योद्धा थे इन्होंने गुर्जर समाज की स्थापना की थी इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है इनका भव्य मंदिर आसींद में है देवनारायण जी की माता का नाम सेडू खटानीऔर पिताजी का नाम सवाई भोज था इनके दादा जी का नाम बाघ सिंह था इनके घोड़े का नाम लीलागर था इनकी पत्नी का नाम पीपलदे था देवनारायण जी आयुर्वेद के ज्ञाता थे
पौराणिक कथा
राजा बीसलदेव के राज्य में एक बार एक शेर ने आतंक फैला रखा था गांव के छोटे-छोटे बच्चों को वह रात को चुपचाप उठाकर के ले जाता था थक हार कर के लोगों ने तय किया कि शेर का भोजन बनने के लिए हर घर का एक सदस्य बारी-बारी से जाएगा एक रात मंडल जी के पुत्र हरिराम जी जिन्हें शिकार खेलने का बहुत शौक होता है वहां से गुजर रहे होते हैं रात बिताने के लिए एक बुढ़िया से उसके घर में रहने की अनुमति मांगते हैं और बुढ़िया उन्हें अनुमति दे देती है रात को जब वह अपने बेटे को भोजन खिला रही होती है तो हरिराम जी देखते हैं कि वह अपने बेटे को बहुत प्यार से भोजन करा रही हैं और रोती भी जा रही हैं
हरिराम जी बुढ़िया से उसके रोने का कारण पूछते हैं वह उन्हें शेर के बारे में बताती है और कहती है कि मेरे दो बेटे थे एक बेटा पहले ही शेर का भोजन बन चुका है और आज रात दूसरे बेटे की बारी है यह सुनकर हरिराम जी बुढ़िया को कहते हैं कि मां मैं आज तेरे बेटे की जगह शेर का भोजन बनने के लिए चला जाता हूं जंगल में जाकर के हरिराम जी आटे का एक पुतला बनाकर अपनी जगह रख देते हैं और खुद पास की झाड़ी में छुप जाते हैं
जब शेर आटे के पुतले पर हमला करता है तो हरिराम जी झाड़ी से बाहर आ करके अपनी तलवार के एक ही बार से शेर की गर्दन अलग कर देते हैं इसके बाद शेर का कटा हुआ सिर हाथ में लेकर के अपने खून से सनी तलवार को धोने के लिए पुष्कर घाट की ओर जाते हैं पुष्कर के रास्ते में एक औरत जो की ब्राह्मणी थी वह रहती थी और वह सुबह सवेरे सबसे पहले पुष्कर घाट पर नहा धोकर के वराह भगवान की पूजा करने के लिए जाती थी उसने प्रण ले रखा था कि वह वराह भगवान की पूजा करने के बाद ही किसी इंसान का मुंह देखेगी पुष्कर घाट पहुंचकर जब हरिराम जी तलवार को पानी से साफ करके अपने म्यान में डाल रहे हैं तो लीला सेवड़ी भगवान की पूजा कर रही होती है इसके बाद लीला सेवड़ी आहट सुनकर के पीछे मुड़कर देखती है
हरिराम जी डर के कारण शेर का कटा हुआ सिर आगे कर देते हैं जिससे लीला सेवड़ी को सिर तो शेर का और धड़ इंसान का दिखाई देता है वह कहती है यह तुमने क्या किया अब मेरे जो संतान होगी वह ऐसी ही होगी जिसका सिर तो शेर का होगा और शरीर आदमी का अब लीला सेवड़ी कहती है कि आपको मेरे साथ विवाह करना होगा हरिराम जी सोचते हैं ऐसी सती औरत कहां मिलेगी वह विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं कुछ समय पश्चात हरिराम जी और लीला जी के यहां एक संतान पैदा होती है जिसका सिर तो शेर का बाकी शरीर मनुष्य का होता है हरिराम जी उस बच्चे को लेकर के एक बाग में बरगद के पेड़ की छाल में छिपा कर के चले आते हैं
दूसरे दिन बाग का माली आ जाता है और देखता है कि बाग तो एकदम हरा भरा हो गया है यह क्या चमत्कार है और वह पूरे बाग में घूम फिर कर के देखता है तो उसे बरगद की खोल में एक नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई देती है और बाग का माली दौड़कर के बरगद के पेड़ के खोल में से बच्चे को उठा लेता है वह देखकर दंग रह जाता है कि बच्चे का मुंह शेर का और शरीर इंसान का है वह बच्चे को राजा के पास लेकर जाता है राजा बीसलदेव हरिराम जी से सारी बात का पता चलता है तो उस बच्चे के लालन का जिम्मा वह स्वयं उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं और उस बच्चे का लालन-पालन करने लगते हैं राजा बीसलदेव उस बच्चे का नाम बाघ सिंह रख लेते हैं बाघ सिंह का सिर शेर का था और धड़ इंसान का बाघ सिंह की देखरेख के लिए उस बाग में एक ब्राम्हण को नियुक्त कर देते हैं इसके बाद बाघ सिंह उसी बाग में खेलते कूदते बड़े होते हैं
बाघ सिंह का विवाह
राजस्थान में यह प्रथा है कि सावन के महीने में तीज के दिन कुंवारी कन्याएं झूला झूलने के लिए बाग में जाती हैं यह जानकर उस दिन बाघ सिंह और ब्राम्हण भी अपने बाग में झूला डालते हैं बाघ सिंह झूला झूलने के लिए आई हुई कन्याओं से झूलने के लिए एक शर्त रखते हैं कि झूला झूलना है तो मेरे साथ विवाह करना पड़ेगा हैइसके बाद कुछ लड़कियां बाग सिंह के साथ फेरे लेने के लिए तैयार हो जाती है और कुछ लड़कियां वापस घर को लौट जाती है इसके बाद बाघ सिंह 13 लड़कियों से विवाह कर लेता है और उनसे उन्हें 24 संताने होती है जो कि बगड़ावत कहलाते है इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन था इन्होंने गायों की नस्ल सुधारी थी बगड़ावत भाइयों में सबसे बड़े तेजाजी थे
देवनारायण जी की मृत्यु
देवनारायण जी की देवमाली (ब्यावर अजमेर) में मृत्यु हुई थी इस गांव को बगड़ावतों का गांव कहा जाता है देवनारायण जी का “भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी” को मेला लगता है
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