लोक देवता तेजाजी का इतिहास
लोक देवता तेजाजी का इतिहास
तेजाजी राजस्थान के लोक देवता है तेजाजी को सांपों का देवता माना जाता है इन्हें गायों का रक्षक भी माना जाता है क्योंकि इन्होंने गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का त्याग कर दिया था राजस्थान में लोग कृषि करते समय तेजाजी के गीत गाते हैं
उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी फसल बहुत ही अच्छी होगी इन्हें कृषि कार्यों का उप कारक देवता भी कहा जाता है तेजाजी को शिव का 11वां अवतार माना जाता है तेजाजी के बुजुर्ग उदय राज ने खरनाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया था खरनाल परगने में 24 गांव थे
तेजाजी का जन्म
तेजाजी का जन्म एक जाट घराने में हुआ था जो धोलिया वंशी थे तेजाजी का जन्म माघ शुक्ला चतुर्दशी विक्रम संवत 1130 (29 जनवरी1074 ईस्वी) में नागौर जिले के खड़नाल गांव में हुआ था इनके पिता जी का नाम ताहड़ जी और इनकी माता का नाम रामकुंवरी थी इनके माता-पिता शिव के उपासक थे जन्म के समय तेजाजी की आभा इतनी तेज थी कि इन्हें तेजा बाबा का नाम दिया गया
तेजाजी का विवाह
तेजाजी का विवाह 1074 ईस्वी अजमेर के पनेर गांव के रायमल की पुत्री पेमलदे से हुआ था तेजाजी जब 9 महीने के थे तब उनका विवाह हुआ था | लोक देवता तेजाजी का इतिहास |
तेजाजी के साथ घटी हुई घटना
एक बार तेजाजी ने अपनी पत्नी को उनके मायके छोड़ा हुआ था इसके बाद उनकी माताजी ने कहा कि बेटा खेत में जाओ और खेती का काम करो फिर तेजाजी ने हल जोतना शुरू कर दिया तेजाजी सुबह से लेकर शाम तक खेत में कार्य करते रहे
तेजाजी के लिए जो भोजन दोपहर को आना था वह समय पर नहीं पहुंचा इसके बाद उनकी भाभी जी शाम के समय उनके लिए भोजन लेकर आती है उस पर तेजाजी बहुत ही नाराज होते हैं और कहते हैं कि यह भोजन अब क्यों लेकर आए हो और उन्हें कहते हैं कि यह भोजन मुझे नहीं खाना यह भोजन पशु व पक्षियों को डाल दो मुझे यह भोजन नहीं चाहिए इसके बाद उनकी भाभी जी बहुत ही क्रोधित हो गई और उन्होंने कहा कि आप अपना गुस्सा मेरे पर निकाल रहे हो जबकि आपने अपनी पत्नी को उनके मायके छोड़ा हुआ है
इसके बाद तेजाजी को बहुत ही गुस्सा आया और वह अपनी पत्नी को लेने के लिए चले गए जब तेजाजी अपनी घोड़ी लीलण को लेकर ससुराल की ओर चलने लगे तो कुछ अशुभ हुआ इसके बाद उनकी माता जी बहुत ही चिंतित हो गई और उन्होंने एक पंडित को बुलाया और उनसे उस अशुभ घटना के बारे में कहा और पूछा कि इसका क्या परिणाम हो सकता है इसके बाद पंडित जी ने कहा कि तेजाजी अपनी पत्नी को लेने के लिए गए हैं परंतु मार्ग में ही उनकी मृत्यु हो जाएगी उनकी माताजी ने उन्हें रोकने का बहुत ही प्रयास किया परंतु वह नहीं रुके
जब तेजाजी अपनी ससुराल पहुंचे तो उनकी सास गाय का दूध निकाल रही थी तेजाजी को देखकर गाय ने दूध नहीं दिया और वह दूर जाकर खड़ी हो गई यह देखकर उनकी सास नेउन्हें भला-बुरा कहना शुरू कर दिया परंतु उन्होंने यह नहीं देखा कि दरवाजे पर कौन खड़ा है यह सब देख कर तेजा जी नाराज हो गए और वह नाराज होकर लौटने लगे परंतु उनकी पत्नी को यह पता चल गया था कि दरवाजे पर तेजाजी खड़े हैं और उन्होंने उन्हें मनाने की बहुत ही कोशिश की परंतु तेजाजी नहीं माने इसके बाद उनकी पत्नी ने अपनी सखी लांछा गुजरी को तेजाजी को मनाने के लिए कहा इसके बाद तेजाजी लांछा गुजरी के कहने पर रुक गए उसी रात मीणाओं ने लांछा गुजरी की गायों को चुरा लिया
तेजाजी द्वारा गायों की रक्षा
लांछा गुजरी ने अपने गायों की रक्षा के लिए तेजा जी से प्रार्थना की इसके बाद तेजाजी गए और उन्होंने लांछा गुजरी की गायों को छुड़ा लिया था तेजाजी का मीणाओं के साथ मांडवालिया गांव में संघर्ष हुआ था तेजाजी लाचा गुजरी की गायों को छुड़ा कर वापस ले आए थे परंतु वहां पर एक बछड़ा मीणाओं के अधिकार में रह गया था | लोक देवता तेजाजी का इतिहास |
तेजा जी द्वारा अपने वचन का पालन करना
तेजाजी बछड़े को छुड़ाने के लिए वापस चले परंतु रास्ते में सेंद्रिय गांव में उन्होंने देखा कि रास्ते में सांप को जलाया जा रहा था तो उन्होंने उस सांप को आग से बाहर निकाल लिया इसके बाद सांप ने तेजाजी से कहा कि तुमने मुझे क्यों बचाया मेरा जीवन समाप्त हो रहा था इसके बाद तेजाजी ने कहा कि एक तो मैंने आपकी जान बचाई है और आप मुझ पर ही क्रोधित हो रहे हो
इसके बाद सांप ने कहा कि मैं तुम्हें काटना चाहता हूं इसके बाद तेजाजी ने सांप को लाचा गुजरी और उनकी गायों के बारे में बताया और कहा कि मैं पहले अपना कार्य पूरा कर लूं उसके बाद आप मुझे काट लेना यह मैं आपको वचन देता हूं इसके बाद तेजाजी अपना कार्य पूरा कर कर सांप के पास वापस लौट आए उन्होंने उस बछड़े को लांछा गुजरी को सौंप दिया था इसके बाद सांप ने तेजाजी को काटने से मना कर दिया सांप ने कहा कि तुम्हारा शरीर युद्ध के कारण पूरी तरह से घायल हो चुका है अब मैं तुम्हें नहीं काट लूंगा
तुम्हारे शरीर पर बहुत से जख्म हो चुके हैं इसके बाद तेजाजी ने अपना वचन पूरा करने के लिए अपनी जीभ को बाहर निकाला और सांप से कहा कि तुम मेरी जीभ को काट सकते हो मैं अपना वचन जरूर पूरा करूंगा इसके बाद सांप ने उनकी जीभ को काटने से पहले यह भविष्यवाणी की कि जब भी किसी व्यक्ति को कोई सांप काटेगा तो वह आपकी पूजा करने से ठीक हो जाएगा
तेजाजी की मृत्यु
सांप के काटने के बाद तेजाजी आगे बढ़े और सुरसुरा गांव में उनकी मृत्यु 28 अगस्त 1103 को भाद्रपद शुक्ल दशमी को हो गई तेजाजी का पूजा का मुख्य स्थल नागौर जिले के परबतसर में है हर वर्ष यहां भाद्रपद, शुक्ल पक्ष दशमी को पशुओं का मेला लगता है तेजाजी का दूसरा पूजा स्थल सुरसुरा में है ,तेजाजी का एक और पूजा स्थल सेदरिया में है तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहा जाता है तेजाजी की मृत्यु का समाचार उनके घर तक उनकी घोड़ी लीलन ने पहुंचाया था
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