मां काली का इतिहास, मां काली की उत्पत्ति, मां काली के मंदिर का इतिहास, मां काली का चमत्कार ,
मां काली का इतिहास
शास्त्रों के अनुसार मां भगवती ने दुष्टों का अंत करने के लिए विकराल रूप धारण कर लिया था जिन्हें मां काली के नाम से जाना जाता है इनकी आराधना से मनुष्य के सभी भय, सभी दुख दूर हो जाते हैं मां दुर्गा का मां काली विकराल रूप है दुष्टों का का संघार करने के लिए मां ने यह रूप धारण किया था शास्त्रों में मां के इस रूप को धारण करने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं और उनका व्याख्यान भी यहां मिलता है मां काली को देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता हैमहाविद्याओं में से साधक महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, जो किसी भी कार्य का तुरंत परिणाम देती है साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्ट सिद्धि प्राप्त होती है | मां काली का इतिहास |
मां काली की उत्पत्ति
एक बार दारुक नाम के असुर ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया उनके द्वारा दिए गए वरदान से वह देवों और ब्राह्मणों को प्रलय की अग्नि के समान दुख देने लगा उस दैत्य ने सभी धार्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्ग लोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया था इसके बाद सभी देवता ब्रह्मा और विष्णु के धाम पहुंचे ब्रह्मा जी ने बताया कि यह दुष्ट केवल स्त्री द्वारा ही मारा जाएगा तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवता स्त्री रूप धारण कर के उस दैत्य को मारने चले गए परंतु वह देते हैं बहुत ही बलशाली था इसके बाद ब्रह्मा, विष्णुसहित सभी देवता शिव के धाम “कैलाश” पहुंचे और उन्होंने भगवान शिव को उस दैत्य के विषय में बताया उनकी बात सुनकर भगवान शिव ने पार्वती की ओर देखा और कहा -हे कल्याणी जगत केहित के लिए और दुष्ट दारुक के वध के लिए मैं तुम से प्रार्थना करता हूं यह सुनकर माता पार्वती मुस्कुराए और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रवेश कराया था
उस समय मां भगवती की माया को कोई नहीं देख पाया था मां भगवती का यह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा विष के प्रभाव से वह काले रंग में परिवर्तित हुआ भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला उनके नेत्र द्वारा भयंकर विकराल रूप ही काले वर्ण वाली मां काली उत्पन्न हुई थी मां काली के ललाट में तीसरा नेत्र और चंद्र रेखा थी उनके कंठ में करार विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल और नाना प्रकार के आभूषण और वस्त्रों से सुशोभित थी मां काली के भयंकर और विशाल रूप को देखकर देवता व सिद्ध लोग भागने लगे मां काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत सभी असुर सेना जलकर भस्म हो गई
मां काली के क्रोध की ज्वाला से संपूर्ण लोक जलने लगा उनके क्रोध से संसार को जलते देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया और शमशान पहुंचे और वहां लेट कर रोने लगे तब मां काली ने शिव रूपी उस बालक को देखा तो वह उनके उस रूप में मोहित हो गई इसके बाद मां काली ने वात्सल्य भाव से शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगी भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध को भी पी लिया उनके उस क्रोध से 8 मूर्ति हुई जो क्षेत्रपाल कहलाई थी इसके बाद शिवजी द्वारा मां काली का क्रोध पी जाने के कारण वह मूर्छित हो गई देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया इसके बाद होश में आने पर मां काली ने जब शिव को नृत्य करते हुए देखा तो वह भी नाचने लगी जिस कारण उन्हें “योगिनी” भी कहा जाता है | मां काली का इतिहास |
मां काली के मंदिर का इतिहास
बंगाल की राजधानी कोलकाता में मां काली की पूजा की जाती है कोलकाता में मां काली का सबसे बड़ा भव्य मंदिर स्थित है यह मंदिर दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से जगत प्रसिद्ध है यह मंदिर हुगली नदी के तट पर बसा हुआ है इस मंदिर को माता के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है जब भगवान विष्णु ने माता के शव के कई टुकड़े किए इस स्थान पर माता के दाएं पांव की 4 अंगुलियां गिरी थी इस मंदिर को माता काली का दिव्य धाम भी कहा जाता है काली माता का यह मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है यह मंदिर 46 फुट चौड़ा और 100 फुट ऊंचा है इस मंदिर के अंदर एक कमल का फूल चांदी से बनाया गया है जिसकी हजारों पंखुड़ियां है इस कमल पर मां काली को दर्शाया गया है
मां काली के इस मंदिर में 12 कुमद बने हुए हैं इस मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के 12 मंदिर स्थापित किए गए हैं माता काली का यह मंदिर एक इमारत के रूप में एक चबूतरे पर स्थित है दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर 3 मंजिला बना हुआ है इस मंदिर में सीढ़ियों द्वारा प्रवेश किया जा सकता है इस मंदिर की ऊपर की दो मंजिलों पर 9 कुमद समान रूप से फैले हुए हैं इस मंदिर में कुमुदो कि छत पर सुंदर आकृतियां बनाई गई है इस मंदिर के अंदर दक्षिण की तरफ मां काली भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई दिखाई देती है मां काली की यह प्रतिमा जिस पवित्र स्थान पर रखी गई है उसके आसपास भक्तजन बैठे रहते हैं और मां काली की आराधना करते रहते हैं | मां काली का इतिहास |
मां काली का चमत्कार
जब 1847 में भारत पर अंग्रेजों का शासन था उस समय भारत के पश्चिम में एक बहुत ही अमीर ‘रासमनी’ नाम की एक विधवा औरत रहती थी रानी रासमनी के जीवन में धन की कोई भी कमी नहीं थी परंतु उनके जीवन में पति का सुख नहीं था जब रानी अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंची तब उनके मन में सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण करने का विचार आया रानी रासमनी की देवी माता में अत्यंत श्रद्धा थी इसलिए उन्होंने सोचा कि वह अपनी तीर्थ यात्रा का आरंभ वाराणसी से करेगी उस समय कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए कोई भी यातायात की सुविधा उपलब्ध नहीं थी
कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए लोग नाव का प्रयोग किया करते थे यात्रा पर जाने से पहले रानी रासमनीदेवी मां का ध्यान कर के सो गई उसी रात रानी को एक अजीब सपना आया और उनके सपने में मां काली ने उन्हें दर्शन दिए और कहां की हे रानी तुम्हें वाराणसी जाने की कोई आवश्यकता नहीं है तुम गंगा नदी के किनारे मेरी प्रतिमा को स्थापित करो और मेरे एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाओ उस मंदिर की प्रतिमा में ,मैं स्वयं प्रकट होऊंगी और श्रद्धालुओं की पूजा को स्वीकार करूंगी इसके बाद रानी की आंखें खुल गई और उन्होंने इस सपने पर विश्वास करके अपने अगले दिन की वाराणसी की यात्रा स्थगित कर दी इसके बाद रानी की आज्ञा पाकर उनके सैनिकों ने गंगा नदी के किनारे मां काली के मंदिर के लिए उचित स्थान खोजना शुरू कर दिया था
इसके बाद इसी स्थान पर रानी को मंदिर बनाने का विचार आया और उन्होंने वहां मंदिर बनाने के लिए तैयारियां शुरू करवा दी इस मंदिर की नींव 1847 में रखी गई थी और यह मंदिर बनकर 1855 में तैयार हुआ था कहा जाता है कि जब यह मंदिर बनकर तैयार हुआ तब समाज के कुछ रूढ़िवादी लोगों को यह मंदिर पसंद नहीं आया तब वह कहने लगे कि जो औरत उच्च कुल की नहीं है उसके धन से बने हुए इस मंदिर में कौन पूजा करेगा उनकी बातों के कारण कोई भी पुजारी उस मंदिर में पूजा करने के लिए तैयार नहीं हुआ था कुछ समय के बाद स्वामी रामकृष्ण हंस ने इस मंदिर का कार्यभार संभाला था
उन्होंने स्वयं को मां काली के चरणों में समर्पित कर दिया था वह मां काली की भक्ति में इतना लीन रहते थे कि लोग उन्हें पागल समझने लगे थे एक दिन जब उनकी व्याकुलता चरम सीमा पर पहुंच गई तब मां काली ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन दिए और उन्हें कृतार्थ फल दिया मां काली के मंदिर के समिति रामकृष्ण परमहंस का एक कमरा है जहां पर उनकी कुछ स्मृति आज भी सुरक्षित रखी गई है मां काली के मंदिर के बाहर “रामकृष्ण परमहंस” और रानी रासमनी की समाधि बनाई गई है इस मंदिर के बाहर आज भी वह वटवृक्ष मौजूद है जिसके नीचे रामकृष्ण परमहंस ध्यान किया करते थे प्रतिवर्ष दूर-दूर से लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं | मां काली का इतिहास |