महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय, बाणभट्ट का जन्म, बाणभट्ट की रचनाएं , कादंबरी की कथा
महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय
बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और एक बहुत ही प्रसिद्ध कवियों में से एक थे बाणभट्ट का आरंभिक जीवन बहुत ही सुखमय रुप से बीता है क्योंकि बाणभट्ट जी राजा हर्षवर्धन के दरबारी कवि थे ऐसे में उनके जीवन को बिना किसी विवाद का होना पाया गया है बाणभट्ट जी हर्षवर्धन के दरबार के न केवल एक प्रमुख लेखक थे बल्कि वह एक लेखक और कवि होने के साथ-साथ हर्षवर्धन के सभा के सामूहिक सभापंडित भी थे हर्षवर्धन बाणभट्ट जी को बहुत ही पसंद करते थे, क्योंकि बाणभट्ट जी सदैव हर्षवर्धन के लिए ही लिखते थे हर्षवर्धन के राज्य के उत्तर काल मे उनके सभा कवि माने जाते थे बाणभट्ट की लेखनी से कई ग्रंथों रत्नों का लेप हुआ है बाणभट्ट जी का महा कविता केवल हर्षचरित और कादंबरी के लिए सर्वमान्य है
बाणभट्ट संस्कृत गद्य साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि थे उनके वंश परिचय तथा रचनाओं के विषय में कोई संदेह नहीं है उन्होंने अपनी रचना हर्षचरित के प्रथम दो उच्छवास और ‘कादंबरी’ की भूमिका में अपनी आत्मकथा और वंश का परिचय दिया है इन के वंश प्रवर्तक सरस्वती के पुत्र सारस्वत के चचेरे भाई थे | महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय |
बाणभट्ट का जन्म
बाणभट्ट का जन्म चंद्रेह मध्यप्रदेश में हुआ था बाणभट्ट के पिता का नाम “चित्रभानु” और माता का नाम “राज देवी” था बाणभट्ट के दो भाई थे चित्रसेन और मित्र सेन और इनकी बहन का नाम मालती था बचपन में ही इनकी माता जी का देहांत हो गया था इसके बाद इनके पिता ने ही इनका पालन पोषण किया था जब यह 14 वर्ष के थे तभी इनके पिता का भी स्वर्गवास हो गया था पिता की मृत्यु के बाद शौक में बाणभट्ट अपने मित्रों के साथ देश भ्रमण करने निकल पड़े इस दौरान गुरुकुलो तथा राजदरबारों में भी गए इसके बाद विद्वानों के सानिध्य में विद्वता ग्रहण कर अपने वंश के अनुरूप गंभीर स्वभाव वाला होकर अपनी जन्मभूमि लौट आए थे इनके पूर्वजों का निवास स्थान सोन नदी के पास ‘प्रीतिकूट’ नामक ग्राम था बाद में बाणभट्ट सम्राट हर्षवर्धन का आश्रय ग्रहण कर उनका दरबारी कवि हो गए थे बाणभट्ट सम्राट हर्षवर्धन के सभापंडित थे हर्षवर्धन का शासन काल 606 से 647 ईसवी तक था चीनी यात्री ‘ह्वेनसांग’ ने 629से 645 ईस्वी भारत भ्रमण किया था ह्वेनसांग ने अपने संस्मरण में हर्षवर्धन के शासनकाल का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया है बाणभट्ट सम्राट हर्षवर्धन के समकालीन थे | महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय |
बाणभट्ट की रचनाएं
बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और कवि थे उनकी प्रमुख दो रचनाएं हैं हर्ष चरितम और कादंबरीइनके अलावा इनकी 3 ग्रंथ और भी थे 1.चंडी शतक 2.मुकुटताड़ीतक 3.पार्वती परिणय
हर्षचरित – हर्षचरितम में राजा हर्षवर्धन का जीवन चित्रित है यह 8 उच्छवासो में लिखी हुई एक आख्यायिका है इस के प्रारंभ में स्वंय बाण ने अपने वंश का वर्णन किया है और अगले उच्छवासो में हर्ष की वंश परंपरा से प्रारंभ करते हुए उनकी उत्पत्ति तथा विकास का विस्तृत वर्णन किया है
कादंबरी- ‘कादंबरी’ दुनिया का पहला उपन्यास था कादंबरी पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट जी का देहांत हो गया था इसके बाद इनके बेटे ‘भूषण भट्ट राव’ ने अपने हाथों में कादंबरी ग्रंथ को लिया और उसे पूर्ण किया दोनों ग्रंथ संस्कृत साहित्य के महत्वपूर्ण माने जाते हैं बाणभट्ट ‘पांचाल रीति’ के कवि है पंचाली का अर्थ है- विषय अनुरूप शब्दावली का प्रयोग करना बाणभट्ट की रचनाओं में तीन प्रकार की शैली का प्रयोग हुआ है दीर्घ समास ,अल्प समास, समास रहित शैली परंतु किसी भी एक शैली पर जोर नहीं दिया गया है भाव और भाषा शैली सभी दृष्टि से कादंबरी एक उत्कृष्ट रचना है
पार्वती परिणय- यह एक नाटक है इसमें भगवान शिव तथा पार्वती का विवाह वर्णित है
चंडी शतक-यह सो श्लोको का संग्रह ग्रंथ है इसमें अत्यंत सुंदर शब्दावली में भगवती चंडिका की स्तुति का वर्णन किया गया है मुकुटताड़ीतक- यह एक नाटक है परंतु यह अप्राप्य है
बाणभट्ट द्वारा रचित रचनाएं आज भी संपूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही प्रसिद्ध है यह रचना केवल भारत में बल्कि भारत की परंपरा पर चलने वाले कुछ अन्य देशों में भी बहुत ही प्रसिद्ध है बाणभट्ट जी को संस्कृत साहित्य के बहुत ही महत्वपूर्ण कवियों में से एक माना जाता है 21वी सदी अलंकारिक ऊपर से लेकर के आठवीं सदी के वर्तमान में प्रमुख ग्रंथों में बाणभट्ट जी ने हर्षवर्धन की जीवन संबंधित गतिविधियों के बारे में लिखा है
कादंबरी की कथा
प्राचीन काल में शुद्रक नामक एक राजा था विदिशा नाम की नगरी उसकी राजधानी थी एक बार जब वह सभा मंडप में बैठा हुआ था कि दक्षिण दिशा से एक चांडाल कन्या पिंजरे में एक तोता लिए हुए आई और उसके समीप आकर बोली महाराज यह तोता संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञाता और पृथ्वी का एक रतन है इसे आप स्वीकार करें राजा के पूछने एवं उनकी उत्सुकता को संतुष्ट करने के लिए सुक ने बताया कि बाल्यकाल में वह एक मुनि कुमार के द्वारा जाबली के आश्रम में पहुंच गया मेरे विषय में मुनियों की जगह सा जानकर जावली ऋषि ने इस प्रकार बताया-अवंती में उज्जयिनी नाम की एक नगरी में तारापीड नाम का एक राजा हुआ था शुकनास नाम का एक ब्राह्मण उसका मंत्री था देवताओं की आराधना, पूजा पाठ के बाद तारापीड को “चंद्रपीड” नाम का और मंत्री शुकनास को “वेश्म्पायन” नाम का पुत्र रत्न प्राप्त हुआ था विद्या अध्ययन एवं युवावस्था प्राप्त होने पर चंद्रापीड को युवराज और वेश्म्पायन को उसका मंत्री नियुक्त किया गया विजय में मिली कुलूत राजा की पुत्री राजकन्या पत्रलेखा को चंद्रापीड की सेवा में नियुक्त किया गया दिग्विजय अभियान में चंद्रापीड किरातो की नगरी सुवर्ण पहुंचा एक दिन शिकार खेलते समय किन्नरों के युगल का पीछा करते हुए सरोवर के तट पर पहुंच गया वहां शिव मंदिर में एक कन्या को पूजा करते हुए देखा तब चंद्रापीड के पूछने पर उस कन्या ने बताया कि वह गंधर्व राज हंस की पुत्री महाश्वेता है | महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय |