महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय

महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय,  महर्षि पाणिनि का जन्म , प्रत्यय का आविष्कार, महर्षि पाणिनि की मृत्यु

महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय 

पाणिनि का जीवन समय 700 ईसा पूर्व माना जाता है इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्याई है जिसमें 8 अध्याय और लगभग सहस्त्र सूत्र हैं पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वेयाकरण हुए हैं संस्कृत भाषा को व्याकरण रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है

अष्टाध्याई मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है इसमें प्रकार अंतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक, चिंतन, खान-पान रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान स्थान पर अंकित है महर्षि पाणिनि जब बड़े हुए तो उन्होंने व्याकरण शास्त्र का गहरा अध्ययन किया था पाणिनि ने अपने समय की संस्कृत भाषा की सूक्ष्म छानबीन की थी

इस छानबीन के आधार पर उन्होंने जिस व्याकरण शास्त्र का प्रवचन किया वह न केवल तत्कालीन संस्कृत भाषा का नियामक शास्त्र बना, बल्कि उसमें आगामी संस्कृत रचनाओं को भी प्रभावित किया पाणिनि से पूर्व भी व्याकरण शास्त्र के अन्य आचार्यों ने इस विशाल संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया था, परंतु पाणिनि  का शास्त्र विस्तार और गंभीर्य की दृष्टि से इन सभी में सिरमोर सिद्ध हुआ | महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय | 

 महर्षि पाणिनि का जन्म 

महर्षि पाणिनि का जन्म 520 से 400 ईसा पूर्व माना जाता है इनका जन्म शालातूर नामक गांव में हुआ था जो वर्तमान में पाकिस्तान में है इनके जन्म स्थान के अनुसार पाणिनि शालातुरिय भी कहे गई अष्टाध्याई  में इस नाम का उल्लेख किया गया है इनके पिता जी का नाम “पणिन शलांक” था इनकी माता जी का नाम दाक्षी था इनके गुरु का नाम उप वर्ष था एक सूची ‘धातु पाठ’ की थी जिसे पाणिनि ने अष्टाध्याई से अलग रखा है पाणिनि के सूत्रों की शैली अत्यंत संक्षिप्त है वह सूत्र युग में ही हुए थे स्रोत सूत्र, धर्मसूत्र, गृहस्थ सूत्र ,प्राप्ति साक्ष्य सूत्र भी इसी शैली में है किंतु पाणिनि के सूत्रों में जो निखार है वह अन्य कहीं नहीं है इसलिए  जीवनपानी के सूत्रों को प्रतिषणात सूत्र कहा गया है

पाणिनि का व्याकरण शब्दानुशासन के नाम से विद्वानों में प्रसिद्ध है आठ अध्यायों में विभक्त होने के कारण यही शब्द अनुशासन लोक में अष्टाध्याई अथवा पाणिनियाष्टक के रूप में जाना जाता है पाणिनि ने अपनी अष्टाध्याई से संस्कृत भाषा को अमरता प्रदान की है पाणिनीय अष्टाध्याई की सहायता से संस्कृत के प्राचीनतम साहित्य से लेकर नवीनतम रचनाओं का रसास्वाद कर सकते हैं पाणिनि को मांगलिक आचार्य कहा गया है उनके हृदय की उदार वृत्ति मंगलात्मक कर्म और फल की इच्छुक थी जब शास्त्र पूरा हो गया तब पाणिनि हिमालय से उतरे और वह पाटलिपुत्र पहुंचे वहां उन दिनों नंद राज का राज हुआ करता था

उनके दरबार में सभी विषयों के बड़े पंडित रहते थे हर साल देशभर से और चुने विद्वान बुलाए जाते थे इस ‘जमघट’ को सभा कहते थे किसी भी विषय में कोई नई खोज करने वाला विद्वान अपनी खोज को उस सभा के सामने रखता था सभा के पंडित खोज करने वाले से बहस करते थे सभी तर्कों का संतोषजनक उत्तर देकर अपनी खोज को सही साबित करने वाला विद्वान “शास्त्रकार” मान लिया जाता था शास्त्रकार परीक्षा में इस तरह पास होने को ‘सन्यन’ कहते थे यह बहुत बड़ा सम्मान था सन्यन के बाद शास्त्र कार को इनाम मिलता था और उसके सारे कर माफ कर दिए जाते थे | महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय | 

प्रत्यय का आविष्कार 

अष्टाध्याई में 8 अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं पहले दूसरे अध्यायों में संज्ञा और परिभाषा संबंधी सूत्र है क्रिया और संज्ञा शब्दों के पारस्परिक संबंध के नियामक प्रकरण भी हैं जैसे क्रिया के लिए आत्मनेपद, परस्मैपद प्रकरण एवं संज्ञाओ के लिए विभक्ति समास आदि तीसरे, चौथे और पांचवें अध्याय में सब प्रकार के प्रत्ययो का विधान है तीसरे अध्याय में धातुओं में प्रत्यय लगाकर कृदंत शब्दों का निर्वाचन है और चौथे तथा पांचवें अध्याय में संज्ञा शब्दों में प्रत्यय जोड़कर बने नए संज्ञा शब्दों का विस्तृत निर्वचन बताया गया है

यह प्रत्यय जिन अर्थविषय को प्रकट करते हैं उन्हें व्याकरण की परिभाषा में वृत्ति कहते हैं जैसे वर्षों में होने वाले इंद्रधनु को वार्षिक इंद्रधनु कहेंगे वर्षा में होने वाले इस विशेष अर्थ को प्रकट करने वाला ‘इक’ प्रत्यय तद्धित प्रत्यय है तद्धित प्रत्यय में 1,190 सूत्र है कृदंत प्रकरण में 631 इस प्रकार कृदंत, तद्धित प्रत्यय के विधान के लिए अष्टाध्याई के 1,821 सूत्र विनियुक्त हुए हैं भाषाकार ने पाणिनि को प्रमाण भूत आचार्य ,मांगलिक आचार्य, भगवान आदि से संबोधित किया है उनके अनुसार पाणिनि के सूत्र में एक भी शब्द अनर्थक नहीं हो सकता और पाणिनि  शास्त्र में ऐसा कुछ नहीं है

जो निरर्थक हो मणिका संस्कृत व्याकरण चार भागों में है- माहेश्वर सूत्र, अष्टाध्यायी, सूत्र पाठ, धातू पाठ ,गण पाठ पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्याई पर अपनी टिप्पणी लिखि जिसे “महाभाष्य” का नाम दिया गया है पाणिनि ने वर्ण या वर्णमाला को 14 प्रत्याहार सूत्रों में बांटा और उन्हें विशेष कर्म देकर 42 प्रत्याहार सूत्र बनाएं यदि अष्टाध्याई के अक्षरों को गिना जाए तो उसके 3,995 सूत्र एक सहस्त्र श्लोक के बराबर होते हैं पाणिनि  को दो साहित्यिक रचनाओं के लिए भी जाना जाता है यद्यपि वह अब प्राप्त नहीं है जामवंती विजय आज एक अप्राप्य रचना है जिसका उल्लेख राज शेखर नामक व्यक्ति ने सूक्ति मुक्तावली में किया है | महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय | 

महर्षि पाणिनि की मृत्यु

महर्षि पाणिनि की मृत्यु के संबंध में कहा जाता है कि उन्हें किसी सिंह ने मार डाला था संसार में आज तक पानी के बराबरी करने वाला कोई शब्द शास्त्री नहीं हुआ है संसार का कोई भी व्याकरण अष्टाध्याई के जैसा विशालता और विराट कल्पना तक पहुंच नहीं सका है पाणिनि की अष्टाध्याई संस्कृत भाषा के बड़े समय में काम आई वैदिक भाषा का समय बीत चुका था नए विषय, नया साहित्य नए शब्द जन्म ले रहे थे गोदवरी से उत्तर के भारत में संस्कृत भाषा फैल गई थी इस भाषा को नियमों में बांधने की सारी कोशिश विफल हो चुकी थी ऐसे समय में जब अष्टाध्याई आई तो उसकी धूम मची गई | महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय

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