महर्षि वाल्मीकि का इतिहास, महर्षि वाल्मीकि की पौराणिक कथा , महर्षि वाल्मीकि की तपस्या, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना
महर्षि वाल्मीकि का इतिहास
महर्षि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था इनके पिता जी का नाम वरुण था और उनकी माता जी का नाम चर्षणी था हजारों साल पहले इनका जन्म त्रेता युग में हुआ था ऋषि मुनि बनने से पहले यह एक डाकू थे और इनका नाम रत्नाकर था बचपन में इन्हें एक डाकू ने कैद कर लिया और अपने साथ ले गया उन्हीं के साथ इनका पालन-पोषण हुआ
फिर बाद में यह भी डाकू बन गए महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है महर्षि वाल्मीकि परम ज्ञानी थे इन्होंने रामायण की रचना की थी जब महर्षि वाल्मीकि डाकू थे तब अपने परिवार का पालन पोषण लोगों को लूट कर किया करते मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, आदि इन्हीं के भाई थे | महर्षि वाल्मीकि का इतिहास |
महर्षि वाल्मीकि की पौराणिक कथा
एक बार नारद मुनि जंगल से होकर गुजर रहे थे और उनका सामना डाकू रत्नाकर से हो गया था इसके बाद रत्नाकर ने नारद मुनि से कहा कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह तुम मुझे दे दो तब नारद मुनि ने कहा कि मेरे पास तो यह वीणा है यह तुम ले लो तब रत्नाकर ने उनसे पूछा कि यह क्या काम आती है तब और नारद मुनि ने कहा कि यह बजाने के काम आती है इसके बाद रत्नाकर ने नारद मुनि को वह वीणा बजा कर दिखाने के लिए कहा तब नारद मुनि ने वीणा बजा कर तीनो लोको का बखान किया
जिससे महर्षि वाल्मीकि पर बहुत ही प्रभाव पड़ा इसके बाद नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि से पूछा कि तुम यह कार्य क्यों करते हो तब डाकू रत्नाकर ने कहा कि मैं अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए यह लूटपाट का कार्य करता हूं तब नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि से पूछा कि क्या तुम्हारे इस अपराध का भागीदारी तुम्हारा परिवार बनेगा ,तुम अपने परिवार से यह पूछ कर आओ की इस अपराध का दंड भुगतने के लिए क्या तुम्हारा साथ देंगे जब नारद मुनि की यह बात महर्षि वाल्मीकि ने सुनी तो वह तुरंत नारद मुनि को एक पेड़ से बांधकर अपने परिवार के पास गए और उनसे जाकर यह सभी बातें पूछी
तब सभी ने पाप का भागीदार बनने से इंकार कर दिया उन्होंने कहा जो पाप करता है वही पाप भोगने का उत्तरदाई है अपने परिवार का यह जवाब सुनकर महर्षि वाल्मीकि हैरान रह गए,तब महर्षि वाल्मीकि ने सोचा कि जिनके लिए मैं यह अपराध कर रहा था उन्होंने आज मेरा साथ देने से इनकार कर दिया इसके बाद महर्षि वाल्मीकि वापस नारद मुनि के पास आए और उन्हें बंधन से मुक्त किया और पैरों में गिर कर माफी मांगी और सही ज्ञान देने के लिए प्रार्थना करने लगा इसके बाद नारद मुनि ने उन्हें राम नाम दिया यही डाकू रत्नाकर आगे चलकर महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए जिन्होंने रामायण की रचना की है | महर्षि वाल्मीकि का इतिहास |
महर्षि वाल्मीकि की तपस्या
नारद मुनि से राम नाम लेने के बाद इन्होंने बहुत ही कठोर तपस्या की थी जिसके कारण इनके शरीर को चारों ओर से दिमको को ने घेर लिया था दिमको के घर को भी वाल्मीकि कहा जाता है जब महर्षि वाल्मीकि की साधना पूरी हुई तो वह दिमको के घर से बाहर निकले
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना
एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के किनारे गए तब उन्होंने वहां पर सारस पक्षी के जोड़े को प्रेम करते हुए देखा तब उन्होंने देखा कि एक शिकारी ने क्रोज सारस जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी उसके विलाप को सुनकर उनकी करुणा जाग उठी और उनके मुख से एक श्लोक निकला जिसका अर्थ है कि तुम्हें कभी भी शांति नहीं मिलेगी क्योंकि तुमने एक जोड़े में से नर पक्षी को बिना वजह के मार दिया जो कि अपने प्रेम में मगन था
यही श्लोक रामायण का आधार बना महर्षि वाल्मीकि ने तमसा नदी के किनारे रहकर बहुत से ग्रंथों की रचना की थी यहीं पर उन्होंने रामायण जैसे महा ग्रंथ की रचना की थी जिसमें राम के जीवन का वर्णन किया गया है तमसा नदी के किनारे ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का आदि कवि माना जाता है इन्होंने रामायण मे राम के जीवन का ही नहीं बल्कि उस समय के समाज, स्थिति, वातावरण और शासन का भी वर्णन किया है
रामायण को त्रेता युग का इतिहास ग्रंथ भी माना जाता है इसी ग्रंथ से तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ की रचना की थी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पुरुषोत्तम राम के बेटे लव, कुश का जन्म हुआ था उनकी शिक्षा भी महर्षि की देखरेख में हुई थी महर्षि वाल्मीकि को आज भी उनकी कृतियों के कारण समाज में उन्हें जाना जाता है महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में कई काव्य रचनाएं की थी भगवान ब्रह्मा ने उन्हें अपना मानस पुत्र भी माना था और उन्हीं के आशीर्वाद से उन्होंने यह सब रचनाएं की थी | महर्षि वाल्मीकि का इतिहास |