मंगल पांडे का इतिहास हिंदी

मंगल पांडे का इतिहास हिंदी, मंगल पांडे का जन्म, अंग्रेजो के खिलाफ बगावत, मंगल पांडे को फांसी की सजा

मंगल पांडे का इतिहास हिंदी

 मंगल पांडे को 1857 की क्रांति का जनक कहा जाता है मंगल पांडे को स्थानीय जल्लादों ने फांसी देने से मना कर दिया था इसके बाद कोलकाता से चार जल्लादों को बुलाकर इस फौजी को फांसी दी गई थी मंगल पांडे ने फांसी से पहले खुद की जान लेने की कोशिश की थी परंतु वह नाकामयाब रहे लेकिन वह पूरी तरह से जख्मी भी हो गए थे

मंगल पांडे एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया  

मंगल पांडे का जन्म

 आजादी की लड़ाई के अगदूत कहे जाने वाले मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था उनके पिता जी का नाम “दिवाकर पांडे” एवं उनकी माता जी का नाम श्रीमती “अभय रानी” था उनका जन्म एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ थामंगल पांडे की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव की पाठशाला में हुई बाल्यावस्था में मंगल पांडे की रुचि शिक्षा की अपेक्षा खेलकूद व वीरता वाले कार्यों में थी उनमें व्यवहारिक बुद्धि ज्यादा थी उनके अंदर साहस और वीरता की प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई थी

1849 में जब वे 22 साल के थे तभी से वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए और मंगल बैरकपुर कि सैनिक छावनी में “34 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही रहे थे इसकी नीव उस समय पड़ी जब सिपाहियों को 1853 में ‘एनफील्ड पी 53’ नामक बंदूक दी गई यह बंदूक पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लाई जा रही ब्राउन बेस के मुकाबले में शक्तिशाली थी ईस्ट इंडिया कंपनी की सवार्थी नीतियों के कारण मंगल पांडे के मन में अंग्रेजी हुकूमत के प्रति पहले ही नफरत थी 

अंग्रेजो के खिलाफ बगावत 

जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में एनफील्ड P55 राइफल में नई कारतूसो का इस्तेमाल शुरू हुआ तो इन कारतूसो को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूस को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है जो कि हिंदू और मुसलमानों दोनों के लिए गंभीर और धार्मिक विषय था इस अफवाह ने सैनिकों के  मन में अंग्रेजी सेना के विरुद्ध आक्रोश पैदा कर दिया अंग्रेजी सेना में सिपाहियों की नैतिक धार्मिक भावनाओं का अनादर पहले भी किया जाता था लेकिन इस घटना ने भारतीयों को काफी आहत किया

मंगल पांडे सहित अधिकतर भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली थी इसके बाद 9 फरवरी 1857 को जब यह कारतूस देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पांडे ने उसे लेने से इनकार कर दिया और इसका विरोध किया इस बात से गुस्साए अंग्रेज अफसर दवारा मंगल पांडे से उनके हथियार छीन लेने और वर्दी उतरवाने का आदेश दिया जिसे मानने से मंगल पांडे ने इंकार कर दिया मंगल पांडे ने राइफल छीनने के लिए आगे बढ़ने वाले अंग्रेज अफसर मेजर हसन पर आक्रमण कर दिया

मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया था इसके बाद मंगल पांडे ने राइफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर हुसैन को मौत के घाट उतार दिया मंगल पांडे ने उनके रास्ते में आए एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट को भी मौत के घाट उतार दिया था इस घटना के बाद उन्हें अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार किया गया और उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 8 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गई थी 

मंगल पांडे को फांसी की सजा 

फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेजों द्वारा मंगल पांडे को 10 दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में फांसी दे दी गई मंगल पांडे द्वारा विद्रोह किए जाने के एक महीने बाद ही 10 मई को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हुई और यह विद्रोह देखते देखते पूरे उत्तर भारत में फैल गया था मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजो के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा

अंग्रेज इसे काबू करने में कामयाब रहे लेकिन मंगल पांडे द्वारा लगाई गई है चिंगारी ही आजादी की लड़ाई का मूल बीज साबित हुआ यह विद्रोही भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था जिसमें सिर्फ सैनिक ही नहीं राजा, रजवाड़े, किसान, मजदूर एवं अन्य सभी सामान्य लोग शामिल हुए थे इस विद्रोह के बाद भारत पर राज करने का अंग्रेजों का सपना उन्हें कमजोर होता हुआ साबित हुआ मंगल पांडे के प्रयास का नतीजा था 1857 में भड़की क्रांति जो 90 वर्षों के बाद 1947 में भारत की पूर्ण स्वतंत्रता का सबक बनी 

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