नागार्जुन का जीवन परिचय, नागार्जुन द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद, नागार्जुन की रचनाएं, नागार्जुन को प्राप्त सम्मान और पुरस्कार, नागार्जुन की मृत्यु
नागार्जुन का जीवन परिचय
सुप्रसिद्ध जनवादी कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम “वैद्यनाथ मित्र” था इनका जन्म बिहार प्रदेश के ‘दरभंगा’ जिले के “सतलखा” नामक गांव में सन 30 जून1911 में हुआ30 जून के पिताजी का नाम गोकुल मिश्र था और इनकी माता जी का नाम “उमा देवी” था अल्पायु में ही इनका मां का देहांत हो गया एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में इनका लालन-पालन हुआ इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत विद्यालय में हुई संस्कृत की पढ़ाई बनारस जाकर शुरू की वहीं उन पर आर्य समाज का प्रभाव पड़ा
सनबनारस से निकलकर कोलकाता और फिर दक्षिण भारत घूमते हुए लंका के विख्यात “विद्यालंकार परिवेण” में जाकर 1936 में इन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के कारण अनेक बार इनको जेल जाना पड़ा था राजनीति में सुभाष चंद्र बोस इन के सबसे प्रिय थे बाल्यावस्था में कष्ट और पीड़ा को भोगने के कारण इनके काव्य में पीड़ा का अधिक महत्व है 1938 ईस्वी के मध्य में वे लंका से वापस लौट आए फिर आरंभ हुआ उनका घुमक्कड़ जीवन नागार्जुन ने 1945 में काव्य में अपना कदम रखा था इसके बाद स्वामी सहजानंद से प्रभावित होकर उन्होंने बिहार के किसान आंदोलन में भाग लिया और मार खाने के अतिरिक्त जेल की सजा भी भुगती थी
चंपारण के किसान आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया था 1974 के अप्रैल में जेपी आंदोलन में भाग लेते हुए उन्होंने कहा था ‘सत्ता प्रतिष्ठान की नीतियों के विरोध में एक जन युद्ध चल रहा है, जिसमें मेरी हिस्सेदारी सिर्फ वाणी की ही नहीं, कर्म की हो, इसलिए मैं आज अनशन पर हूं, कल जेल भी जा सकता हूं नागार्जुन का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिंदी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्रा उपनाम से रचनाएं की थी काशी में रहते हुए उन्होंने “वैदेह उपनाम” से भी कविताएं लिखी थी सन 1936 में सीहल में ‘विद्यालंकार परिवेण’ में ही नागार्जुन नाम ग्रहण किया
नागार्जुन द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद
आरंभ में उनकी हिंदी कविताएं भी ‘यात्री’ के नाम से छपी थी पहली प्रकाशित रचना एक मैथिली कविता थी जो 1929 ईस्वी में लहेरियासराय, दरभंगा से प्रकाशित ‘मिथिला’ नामक पत्रिका में छपी थी उनकी पहली हिंदी रचना ‘राम के प्रति’ नामक कविता थी जो लाहौर से निकलने वाले साप्ताहिक ‘विश्व बंधु’ में छपी थी नागार्जुन ने 1929 से 1997 तक रचना की थी नागार्जुन ने लगभग 68 वर्ष तक रचना की थी
नागार्जुन ने बडला लिखना फरवरी 1978 ईस्वी में शुरू किया और सितंबर 1979 ईस्वी तक लगभग 50 कविताएं लिखी जा चुकी थी कुछ बंगला पत्र-पत्रिकाओं में भी छपी थी नागार्जुन के सबसे प्रिय कवि कालिदास थे और उनकी सबसे प्रिय पुस्तक मेघदूत थी मेघदूत का मुक्त छंद में अनुवाद उन्होंने 1953 ईस्वी में किया था जयदेव के “गीत गोविंद” का भावानुवाद 1948 ईस्वी में किया था
जयदेव संस्कृत साहित्य के सबसे प्रसिद्ध कवि थे कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के उपन्यास “पृथ्वी वल्लभ” का गुजराती से हिंदी में अनुवाद 1945 ईस्वी में किया था इसके बाद1965 ईस्वी में उन्होंने विद्यापति के 100 गीतों का भावानुवाद किया था बाद में विद्यापति के और गीतों का भी उन्होंने अनुवाद किया इसके अतिरिक्त उन्होंने विद्यापति की “पुरुष परीक्षा” की 13 कहानियों का भावानुवाद किया था जो विद्यापति की कहानियां नाम से 1964 ईस्वी में प्रकाशित हुई थी
नागार्जुन को प्राप्त सम्मान और पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार- 1969 (मैथिली में ‘पत्र हीन नग्न गाछ’) के लिए इसके बाद भारत भारती सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा )मैथिलीशरण गुप्त सम्मान( मध्य प्रदेश सरकार द्वारा) राजेंद्र शिखर सम्मान 1994 (बिहार सरकार द्वारा) साहित्य अकादमी की सर्वोच्च फेलोशिप से सम्मानित इसके बाद राहुल सांकृत्यायन सम्मान (पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा )
नागार्जुन की रचनाएं
नागार्जुन ने अपने जीवन में अनेक रचनाएं लिखी जैसे-युग धारा- 1953,सतरंगी पंखों वाली – 1959, प्यारी पथराई आंखें- 1962, तालाब की मछलियां- 1976 ,तुमने कहा था- 1989, खिचड़ी विप्लव देखा हमने-1980, हजार हजार बाहों वाली -1981, पुराने जूतों का कोरस- 1983, रतनगर्भ- 1984, ऐसे भी हम क्या ऐसे भी तुम क्या- 1985, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने- 1986, इस गुब्बारे की छाया में -1990, भूल जाओ पुराने सपने- 1994, अपने खेत में- 1997 आदि नागार्जुन का काव्य मानव जीवन स्वच्छंद है कुछ रचनाओं में उन्होंने सामाजिक विशेषताओं तथा राजनीतिक विद्रूपताओ का व्यंग्य किया है
इस प्रकार प्रगतिवादी विचारधारा के साथ-साथ प्रेम और सौंदर्य का भी चित्रण किया है यह प्रकृति वर्णन में भी रूचि लेते हुए दिखाई देते हैं इनके काव्य में देश प्रेम की भावना विद्यमान है नागार्जुन की कविताएं समाज के ठोस धरातल पर चलती है उनकी कविताएं कल्पना लोक में विचरण नहीं करती उन्होंने अपने दुख के भीतर साधारण लोगों के दुखों को देखा है और उन्हें अपनी कविताओं में वाणि दी है
सर्वहारा वर्ग की व्याख्या एवं पीड़ा को भी अपने काव्य में अभिव्यक्त किया है जनसाधारण के प्रति सहानुभूति उनके काव्य की एक अन्य प्रमुख विशेषता है नागार्जुन जी अभावग्रस्त लोगों के पक्षधर बनकर सामने आए यही कारण है कि उन्होंने अपनी कविताओं में नगर और गांव की गरीब जनता का चित्रण किया है उन्होंने उन्हें एक स्थान पर लिखा है
भाषा शैली-
नागार्जुन के काव्य में कबीर जैसी सहजता और सरलता है नागार्जुन की भाषा खड़ी बोली है लेकिन इन्होंने खड़ी बोली के बोलचाल का रूप भी अपनाया है जनवादी कवि होने के कारण इनकी भाषा में ग्रामीण और देशज शब्दों का भी अधिक प्रयोग किया गया है उन्होंने अपनी कविताओं में श्रृंगार रस तथा करूण तीनों रसों को समाविष्ट किया है इनकी कविताओं में अलंकारों का स्वभाविक प्रयोग है उन्होंने अपने काव्य में गरीब शोषित एवं पीड़ित जनता के दुखों का चित्रण किया है अकाल और उसके बाद कविता में अभाव की स्थिति का अत्यंत हृदय स्पर्शी चित्रण किया गया है
शोषको प्रति घृणा
नागार्जुन जी प्रगतिवादी कवि थे उन्होंने अपने कमरे में जहां अभावग्रस्त लोगों के प्रति सहानुभूति का वर्णन किया है वही शोषको के प्रति घृणा भाव भी व्यक्त किया है उन्होंने पंजी पतियों और राजनीतिज्ञों के प्रति गहरा आक्रोश व्यक्त किया है नागार्जुन पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करके समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते थे इसलिए उनके काव्य में एक और जहां पूंजी पतियों के प्रति आक्रोश प्रकट किया गया है वहीं दूसरी ओर शोषको के प्रति सहानुभूति की भावना भी है
वह अपनी कविता के माध्यम से प्रशासन के निठल्ले पन की ओर संकेत करते हैं नागार्जुन के मन में उस व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना है जो जनता का शोषण करती है वह वर्तमान शासन व्यवस्था से असंतुष्ट है और ऐसी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं उनके काव्य में विद्रोह और क्रांति का स्वरूप तय हुआ है वे वर्तमान समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पाखंड भाई भतीजावाद से घृणा करते हैं वर्तमान प्रजातंत्र के विरोधी है जिसमें अमीर और गरीब की खाई बढ़ती जा रही है
नागार्जुन की मृत्यु
नागार्जुन अपने साम्यवादी विचारधारा के कारण वे कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य भी बने लेकिन चीन द्वारा 1962 में भारत पर आक्रमण करने के विरोध में उन्होंने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया उसके बाद 1971 में उन्होंने मैथिली रचनाकार के रूप में रूस की यात्रा भी की सन 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने का उन्होंने खुलकर विरोध किया था जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा वे समाजवाद और स्वतंत्रता में विश्वास करते थे नागार्जुन की 5 नवंबर 1998 ईस्वी में मृत्यु हुई थी